Geeta Upadhyay

Others

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Geeta Upadhyay

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काली बिल्ली

काली बिल्ली

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क्या हुआ बेटा इतनी घबराई क्यों हो? किसी ने कुछ कहा तो नहीं?"

" नहीं मां कॉलेज की छुट्टी के बाद, प्रिया के घर से बुक ली फिर ट्यूशन में भी एक्स्ट्रा क्लास थी, घबराए... मेरे दुश्मन, किसी की क्या मजाल जो मुझे कुछ कहे? मुंह तोड़ दूंगी उसका थक गई हूं। अच्छा मां मैं थोड़ा आराम कर लेती हूं।"


 कहकर चित्रा अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर दिया कमरे में जाकर सोचने लगी, मां के सामने तो शेरनी की तरह दहाड़ रही थी, पर कॉलेज आते जाते छोकरों की फब्तियां सुनकर तो उसकी घिग्गी बांध जाती है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है। पसीना छूटने लगता है। तब यह साहस क्यों नहीं आता? मां है कि कुछ बिना बताए ही सब जान लेती है। उसने कल ही समझाया था "-एक बात गांठ बांध ले बिट्टो जितना डरेगी ये दुनिया तुझे उतना ही डरायेगी। झूठ बोलने से डर ,गलत करने से डर, गलत करने वाले से गलत सहने वाला भी गुनाहगार होता है।"

अब तो पानी सर से ऊपर आ रहा है। बड़ा परेशान हो गई हूं। कल देखती हूं उन छोकरों को, छटी का दूध ना याद दिला दिया तो मेरा नाम भी चित्रा नहीं। थोड़ा रंग ही तो सांवला है। मेरे जैसे तीखे नैन नक्श तो पूरे मोहल्ले में किसी के नहीं। सुंदरता की कद्र ही नहीं जब देखो आते- जाते म्याऊं म्याऊं 

"काली बिल्ली " कहकर छेड़ते हैं कल देख लूंगी सबको।



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