वहां कोई नहीं था
वहां कोई नहीं था


दौड़ -भाग,शोर-शराबे इस रफ्तार उलझन भरी जिंदगी सब कुछ छोड़कर।सुकून की सांसे लेने को आज दिल किया।ना घर पर किसी को कुछ कहा चुपचाप लॉन्ग ड्राइव पर मैं निकल पड़ा। ना रास्ते की खबर ना मंजिल का पता कभी न खत्म होने वाली सड़क पर चला ही जा रहा था। दिमाग शुन्य कुछ भी नहीं सुझा। भूख वह भी जाने कहां गायब थी।सुबह से शाम हो गई अंधेरा फ़ैल चुका था। चारों तरफ तभी गाड़ी के आगे एक छोटा सा बच्चा देख कर मैंने ब्रेक लगाया। रुका बाहर निकला तो वह जोर-जोर से रो रहा था।मैंने चारों तरफ देखा तो वहां जंगल ही जंगल। मुझे मम्मा पास जाना है उसने अपने हाथ इशारे से कहा- "उधर "
अब मुझे होश आया कि मैं कहां हूं।इतने भयानक घने जंगल में फस गया हूं। सुकून की तलाश में निकला था सब कुछ छोड़ कर वह तो हाथ नहीं आया और घर से भी कितनी दूर पहुंच गया। जाने का रास्ता भी पता नहीं इस बच्चे को घर कैसे पहुंचाऊंगा? अब सारी रात जंगल में ही गुजारनी होगी ये सोचकर मेरी रूह कांप गई। और रोंगटे खड़े हो गए।बच्चा मुझे उधर चलो कहकर जिद कर रहा था।बिन कुछ कहे जहां जाने को कह रहा था उधर ही गाड़ी चला दी। रात का समय था सड़क खाली थी। पूरी स्पीड से कुछ समय बाद उसने कहा मेरा घर आ गया। मैंने गाड़ी रोकी और उसे उतारा देखा तो मैं अपने घर के आगे खड़ा था। मैंने उससे कहा यह तो मेरा घर है पर
"वहां कोई नहीं था"