Geeta Upadhyay

Children Stories

3.5  

Geeta Upadhyay

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मेरी पाठशाला

मेरी पाठशाला

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"जानती हो बाहर कोरोना है ठंड है। ज्यादा घूमने फिरने से बीमारियां होती हैं।दो मिनट दादी, प्लीज थोड़ा सा तो रुक जाओ, आपको कुछ समझाना है ।" नन्हीं खुशी ने बड़े प्यार से कहा

"अरे बेटा मुझे जरूरी काम से जाना है मैं अभी नहीं रुक सकती देर हो रही है।" सुधा बोली ।

"मेरी बात तो सुनो दादी जाने क्यों आज हमारे आंगन में कबूतर भी नहीं आए दाना तो वैसे का वैसे ही पड़ा है। पापा कह रहे थे -बर्ड फ्लू फैल रहा है आपको पता है ,उन्हें दाना मत डालना जाने कहां चले गए सारे के सारे कबूतर।- अरे आप सुन क्यों नहीं रही रुक जाओ ना दादी एक तो स्कूल भी नहीं खुल रहे। मैं करूं तो क्या करूं? बोर हो रही हूं आज मत जाओ ना दादी मम्मा पापा भी घर पर नहीं है। देखो कोई भी घर पर नहीं है मुझे अकेला छोड़ कर जा रही हो। मालूम है बच्चों को अकेला नहीं छोड़ते।" खुशी की मासूमियत देखकर सुधा ने डॉक्टर की अपॉइंटमेंट कैंसिल कर दी। और मुस्कुराते हुए बोली -"लगता है खुशी आज तुमने "मेरी पाठशाला "लगानी है।"



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