वह महिला के घर से रोज़मर्रा की एक-एक चीज़ ले जाता था वह महिला के घर से रोज़मर्रा की एक-एक चीज़ ले जाता था
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद :आ. चारुमति रामदास लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद :आ. चारुमति रामदास
सुमन जब इनकार करती तो कहता अरे राज का दोस्त समझकर ही रख लो सुमन जब इनकार करती तो कहता अरे राज का दोस्त समझकर ही रख लो
पापा मुझे आपने पढ़ाया लिखाया। इस काबिल बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं। पापा मुझे आपने पढ़ाया लिखाया। इस काबिल बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं।
कहीं ना कहीं से तो करना ही पड़ेगा। घर गिरवी रख दूँगा कहीं ना कहीं से तो करना ही पड़ेगा। घर गिरवी रख दूँगा
बाबूजी, मुझे गलत मत समझना। पहले घर पर चलो, फिर सब कुछ बताती हूँ बाबूजी, मुझे गलत मत समझना। पहले घर पर चलो, फिर सब कुछ बताती हूँ