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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

रिश्ता माँ बेटी का

रिश्ता माँ बेटी का

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" माँ आप दुःखी न हो, मैं बहुत खुश हूँ।" रिया ने अपनी माँ सुमित्रा की गोद में सिर रखते हुए कहा। 

" बेटा, मुझे माफ़ कर दे, आज मेरी वज़ह से तेरा प्यार तुझसे दूर चला गया।" सुमित्रा ने रिया के सिर पर हाथ फेरते हुए भर्राई आवाज़ में कहा। 

" नहीं माँ, कारण तो आज मैं ज़िंदा हूँ। अपने पैरों पर खड़ी एक आत्मनिर्भर लड़की हूँ।" ऐसा कहते हुए रिया ने सुमित्रा की आँख से टपकते हुए आँसुओं को पोंछ दिया था। 

" बेटा, न तो मैं कभी अच्छी बेटी बन सकी और न ही अच्छी माँ। मेरी वजह से हमेशा मेरे अपनों ने कष्ट ही उठाया है।" सुमित्रा रूँधे गले से कहा। 

" नहीं माँ, आप बहुत ही बेहतरीन इंसान हो। अगर इस दुनिया के सारे मनुष्य आपके जैसे हो जाए तो दुनिया बहुत ही खूबसूरत हो जायेगी।" रिया ने अपनी माँ के गले लगते हुए कहा। 


" अब चलो भी माँ मेरे लिए मेरी फेवरेट अदरक की चाय और पकोड़े बना दो। आपने तो आज मुझे भूखा मारने की पूरी योजना ही बना डाली थी। इतने मैं घर की साफ़ -सफाई कर लेती हूँ।" रिया ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा। 

" ठीक है बेटा।" सुमित्रा किचन में चली गयी थी। 

" घर की सफाई के साथ -साथ मुझे आज अपने दिल और दिमाग की सफाई भी करनी है। वहां से उस कायर शख्स का नाम हमेशा -हमेशा के लिए मिटाना है।" डस्टिंग करते हुए रिया सोच रही थी। 

सुमित्रा पकौड़े बनाने के लिए आलू -प्याज काटने लगी थी। चॉपिंग बोर्ड पर उनके हाथ बहुत तेज़ी से चल रहे थे। सुमित्रा ने बेसन भी घोल लिया था। बेसन घोलकर, उन्होंने एक तरफ कढ़ाही में तेल चढ़ा दिया था और दूसरी तरफ चाय का पानी। 

आज भी सुमित्रा में उतनी ही फुर्ती थी, जितनी आज से 25 साल पहले। उनकी माँ कहती थी कि, " इस लड़की के पैरों में तो चक्कर है, कहीं टिकती ही नहीं। " अपनी माँ और बाबूजी को याद करते हुए सुमित्रा की आँख पनीली हो आयी थी। अपने माँ -बाबूजी की लाडली बेटी एक ही दिन में एक जिम्मेदार माँ बन गयी थी। 

सुमित्रा को माँ -बाबूजी ने पढ़ने के लिए शहर भेज दिया था। कॉलेज ख़त्म होने के बाद सुमित्रा छुट्टियाँ बिताने के लिए अपने गांव लौट रही थी। सुमित्रा के गांव के लिए शहर से सीधे ही बस चलती थी। अल्हड़ और मस्त सुमित्रा टिकट लेकर बस में बैठ गयी थी। बस अभी चली नहीं थी। सुमित्रा के पास एक युवा महिला आकर बैठ गयी थी और उस युवा महिला की गोद में एक छोटा सा बच्चा था एवं महिला ने घूंघट कर रखा था, बच्चा बड़ा ही प्यारा था। सुमित्रा बच्चे से खेलने लगी और उसने महिला से पूछा, " लड़का या लड़की। "

महिला ने कहा, " लड़की। "

" नाम क्या रखा है ?" सुमित्रा ने पूछा। 

" अभी तो कुछ सोचा नहीं। आप ही कोई सुझाव दे दो।" महिला मुलायम स्वर में कहा। 

" रिया रख दो।" सुमित्रा ने ऐसे ही कहा। 

" बड़ा अच्छा नाम है। आज से तुम्हारा नाम रिया है।" उस महिला ने मुस्कुराते हुए अपनी बेटी को चूमते हुए कहा। 

" क्या आप थोड़ी सी देर इसे रखेंगी ? मैं अभी आती हूँ।" ऐसा कहकर महिला ने अपनी बेटी को सुमित्रा को पकड़ा दिया था। 

सुमित्रा के कुछ बोलने से पहले ही वह महिला बस से उतर गयी थी। सुमित्रा बच्ची को खिलाने लगी। कुछ ही देर में बस कंडक्टर ने ड्राइवर को बस चलाने के लिए बोल दिया। 

तब ही सुमित्रा ने कहा कि, " भैया, अभी रुको। इस बच्ची की माँ अभी आ रही हैं। १०-१५ मिनट इंतज़ार और किया, लेकिन वह नहीं आयी। तब कंडक्टर ने कहा कि, " आप एक बार उतरकर चेक करके आ जाओ। "

सुमित्रा ने बच्ची को एक दूसरी महिला को पकड़ाया और बस से उतर गयी। सुमित्रा ने पूरा बस स्टैंड छान मारा, लेकिन वह घूंघट वाली महिला उसे नहीं दिखाई दी। सुमित्रा वापस बस में आ गयी थी और उसने बच्ची को ले लिया। बस रवाना हो गयी थी और सुमित्रा बच्ची को अपनी गोद में लिए किंकर्त्तव्यविमूढ़ थी। उसके दिल और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। 

बस उसके गंतव्य स्थल यानी कि उसके गांव पहुँच गयी थी। बस स्टैंड पर उसे लेने आये उसके बाबूजी, उसकी गोद में एक छोटे से बच्चे को देखकर हक्के-बक्के थे। 

सुमित्रा ने सिर्फ इतना कहा, " बाबूजी, मुझे गलत मत समझना। पहले घर पर चलो, फिर सब कुछ बताती हूँ। "

घर पर पहुँचकर सुमित्रा ने अपने माँ -बाबूजी को पूरी कहानी ज्यों की त्यों सुना दी। 

" बेटा, तुझे तब की तब पुलिस स्टेशन जाना था। शहर में ही इस बच्ची की माँ को पुलिस ढूंढ लेती। अब वापस शहर चलते हैं, वहीं कम्प्लेन लिखवाते हैं।" सुमित्रा के बाबूजी ने कहा। 

किराये पर टैक्सी लेकर सुमित्रा और उसके बाबूजी शहर के पुलिस स्टेशन पहुँचे। पुलिस वालों ने उनकी शिकायत लिख ली थी। बच्ची की माँ ने घूंघट कर रखा था, इसीलिए सुमित्रा उसका हुलिया बता नहीं पायी थी। 

" आपकी बताई जानकारी से इस महिला को ढूंढ़ना बड़ा मुश्किल है, लेकिन हम कोशिश करते हैं।" पुलिस अधिकारी ने कहा। 

" तब तक इस बच्ची का क्या करें ?" सुमित्रा के बाबूजी ने पूछा। 

" आप चाहे तो बच्ची को अपने पास तब तक रख लीजिये क्यूँकि अनाथालय से आपके पास इसकी ज्यादा बढ़िया देखभाल होगी। लेकिन अगर आप कहेंगे तो हम इसे अनाथालय भेज देंगे।" पुलिस अधिकारी ने कहा। 

सुमित्रा बच्ची से एक लगाव महसूस करने लगी थी, उसने कहा, " नहीं, रिया को हम अनाथालय नहीं भेजेंगे। यह हमारे साथ ही रहेगी। "

सुमित्रा की मनोदशा समझकर उसके बाबूजी ने भी कुछ नहीं कहा। उन्होंने सुमित्रा और उस बच्ची का वहीं शहर में रहने का इंतज़ाम करवा दिया था। माँ -बाबूजी कभी -कभी उसके पास आकर चले जाते थे। 

दिन, सप्ताह में और सप्ताह महीने में बदल गए, लेकिन उस महिला का कुछ पता नहीं चला। 

" बेटा, तुम एक अविवाहित लड़की हो। हमें इस बच्ची को अनाथालय में छोड़ना पड़ेगा। हम किस -किस को तुम्हारी पवित्रता का प्रमाण देते रहेंगे। इस बच्ची के साथ रहते, कौन पुरुष तुम्हारा हाथ थामेगा ?" एक दिन बाबूजी ने समझाते हुए कहा। 


" नहीं बाबूजी, यह मेरी बेटी है। मैं इसे अनाथालय में नहीं डाल सकती।" सुमित्रा ने रिया को गले से लगाते हुए कहा। 

" क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है ?" बाबूजी ने पूछा। 

" हाँ।" दृढ़ शब्दों में सुमित्रा ने कहा। 

" तुम्हें इस बच्ची और हममें से किसी एक को चुनना होगा ?" ,बाबूजी ने भी सधे शब्दों में कहा। 

चुनाव आसान नहीं था, लेकिन सुमित्रा तो कब की ही एक माँ बन चुकी थी। उसने कहा, " बाबूजी, एक माँ के लिए उसके बच्चे से बढ़कर कुछ नहीं होता। अपनी इस बेटी को माफ़ कर देना। "

बाबूजी बिना कुछ बोले निकल गए थे। सुमित्रा की कॉलेज की पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी। कुछ दोस्तों की मदद से उसे दूसरे शहर के एक स्कूल में नौकरी मिल गयी और सुमित्रा दूसरे शहर में शिफ्ट हो गयी थी। वहीं रहते हुए सुमित्रा ने B Ed भी कर लिया था। रिया धीरे -धीरे बड़ी होने लगी और अब वह अपने पापा के बारे में पूछती थी, सुमित्रा ऊपर आसमान की तरफ इशारा कर देती थी। कभी -कभी वह अपने पापा की तस्वीर दिखाने की ज़िद करती, तब सुमित्रा रोने लग जाती। 

" मम्मी, मत रोओ। मुझे तस्वीर नहीं देखनी।" रिया सुमित्रा के आँसू पोंछते हुए कहती। 

सुमित्रा रिया को उसकी सच्चाई बताना चाहती थी, लेकिन उसकी हिम्मत ही नहीं होती। 

रिया अब 12 साल की हो गयी थी। एक दिन सुमित्रा को उस शहर के बाज़ार में अपने बाबूजी के एक अज़ीज़ दोस्त दिख गए। सुमित्रा तुरंत उनके पास पहुंची और उनके चरण छूए। 

वह अनजान शहर में एक महिला की इस हरकत से थोड़े अचंभित थे। " चाचाजी मैं सुमित्रा।" सुमित्रा ने कहा। 

" अरे, बेटा, तू यहाँ कैसे ? खुश रह।" चाचाजी ने कहा। 

" मैं यहीं रहती हूँ। चलो, मेरा घर पास ही है। वहीं चलकर बात करते हैं।" सुमित्रा ने कहा। 

" चलो, बेटा, ठीक है।" चाचाजी ने कहा। 

सुमित्रा चाचाजी को अपने घर लेकर गयी। सुमित्रा का घर छोटा था, लेकिन व्यवस्थित था। रिया चाचाजी को टुकुर -टुकुर देख रही थी। 

" बेटा, यह मेरे अंकल है और तुम्हारे नानाजी।" सुमित्रा ने बताया। 

" प्रणाम, नानाजी।" रिया ने कहा और अंदर किचन में पानी लेने चली गयी। 

" माँ -बाबूजी कैसे हैं ?" सुमित्रा ने पूछा। 

" अब इस दुनिया में नहीं रहे। अंत समय में तुम्हें बहुत याद करते थे।" चाचाजी ने कहा। 

" मैं अभागन उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकी।" सुमित्रा ने अपनी रुलाई रोकने की भरसक कोशिश करते हुए कहा। 

" नानाजी, पानी पीजिये।" रिया ने ट्रे आगे करते हुए कहा। 

" क्या हुआ मम्मी ?" रिया ने पूछा। 

" कुछ नहीं बेटा, आँख में कुछ गिर गया था। तुम जाकर पढ़ाई करो।" सुमित्रा ने रिया से कहा। 

रिया अपने कमरे में चली गयी थी। " तुम्हारे बाबूजी कहते थे कि एक पराये खून के कारण, उनका अपना खून उन्हें छोड़ गया। " चाचाजी ने कहा। 

" मैं मजबूर थी चाचाजी। इस नन्ही जान को अनाथालय कैसे छोड़ आती। शायद इसकी जन्मदात्री माँ ने इसे मेरे पास इसीलिए छोड़ा था कि वह जान गयी थी कि मैं इस बच्ची की देखभाल करूँगी। " सुमित्रा ने कहा। 

" भगवान् और उसकी लीला।" चाचाजी ने कहा। 

चाचाजी, सुमित्रा और रिया ने साथ -साथ लंच किया और चाचाजी दोनों को आशीर्वाद देकर चले गए थे। 

चाचाजी के जाने के बाद रिया ने कहा, " मम्मी, आप मेरी असली मम्मी नहीं हो न ?"

रिया के इस सवाल से सुमित्रा एकदम चौंक गयी थी, " नहीं, बेटा। मैं ही तुम्हारी माँ हूँ। तुम्हें यह किसने कहा ?"

" सॉरी, मम्मी, मैंने आपकी और नानाजी की बातें सुन ली थी।" रिया ने कहा। 

सुमित्रा ने रिया को पूरी कहानी सुना दी थी और कहा कि, " बेटा, अब मैं ही तुम्हारी माँ हूँ और तुम मेरी बेटी। मैंने तुम्हारे असली माँ -बाप को ढूंढने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन मुझे वो नहीं मिले। "

" आप ही मेरी मम्मी हो।" ऐसा कहकर रिया सुमित्रा के गले लग गयी थी। समय के साथ रिया और सुमित्रा का रिश्ता मजबूत होता गया था। पढ़ाई-लिखाई में अच्छी रिया का MBA पूरा होते ही, उसे अच्छी नौकरी मिल गयी थी। अब सुमित्रा रिया की शादी कर देना चाहती थी। तब ही रिया ने अपने साथ काम करने वाले परितोष से सुमित्रा को मिलवाया। सुमित्रा को परितोष अच्छा लगा, वैसे भी रिया की ख़ुशी में ही सुमित्रा की ख़ुशी थी। 

रिया ने परितोष को अपने बारे में सब सच बता दिया था। इसलिए परितोष ने सुमित्रा के पैर छूते हुए कहा था कि, " आंटी, आप सही में देवी हैं, जिसने एक अनजान बच्ची के खातिर अपना पूरा जीवन होम कर दिया। "

कल परितोष अपने माता-पिता को रिया और सुमित्रा से मिलवाने लाया था। परितोष ने शायद अपने माता -पिता को रिया की सच्चाई नहीं बताई थी। बातों -बातों में जब सुमित्रा ने उन्हें रिया की सच्चाई बताई तो वे एकदम बौखला गए थे। वह एकदम उठकर चले गए थे। परितोष भी उनके पीछे -पीछे गया था और एक घंटे बाद वे तीनों आ गए थे। 

" आंटी, मम्मी -पापा शादी के लिए तो तैयार हैं, लेकिन उनकी एक शर्त है।" परितोष ने कहा। 

" क्या शर्त है ?" सुमित्रा ने नहीं रिया ने पूछा। 

" बस यही कि शादी के बाद रिया आपसे कोई वास्ता नहीं रखेगी। आपकी बीती ज़िन्दगी के कारण वे आपको स्वीकार नहीं करेंगे। उन्हें आपकी कहानी झूठी लगती है। उन्हें लगता है कि रिया किसी की नाज़ायज़ औलाद है।" परितोष ने कहा। 

" तड़ाक।" रिया की पाँचों उँगलियाँ परितोष के गालों पर थी। 

" मेरी मम्मी के बारे में इतनी घटिया बात तुमने कही कैसी। मुझे न तो तुम्हारी शर्त स्वीकार है और न ही तुम। अभी के अभी यहाँ से चले जाओ।" रिया ने कहा। 

" भाईसाहब -भाभी जी रिया तो बच्ची है, इसे माफ़ कर दीजिये। मुझे आपकी सब शर्तें मंजूर हैं। आप बैठिये। परितोष बेटा तुम तो समझो।" सुमित्रा ने जाते हुए मेहमानों को रोकने की कोशिश की। 

" जाने दो मम्मी इन्हें। शर्तों पर रिश्ते नहीं बनते। इनकार करने का यह इनका नया बहाना था। मैं इतने घटिया इंसान से प्यार कैसे कर सकती हूँ ?" रिया ने कहा। 

परितोष और उसके मम्मी -पापा उनके घर से चले गए थे। 

" मम्मी, और कितना टाइम लगेगा ?मैंने तो सफाई भी कर दी। कल बहुत गंदगी फ़ैल गयी थी। "


" मम्मी, और कितना टाइम लगेगा ?मैंने तो सफाई भी कर दी। कल बहुत गंदगी फ़ैल गयी थी।" रिया ने किचन में प्रवेश करते हुए कहा। 

अपने विचारों से बाहर आते हुए सुमित्रा ने कहा, " बेटा, बस हो गया। तुम टमाटो सॉस और मग्स निकाल लो। "

" ठीक है मम्मी। आप कल के बारे में ज्यादा मत सोचो। मैं बिलकुल ठीक हूँ।" रिया ने सुमित्रा के गले लगते हुए कहा। 



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