अहंकार
अहंकार
"दादी ,कहानी सुनाओ न । "
"पीहू,यहाँ आओ;पापा कहानी पढ़कर सुनाएँगे। दादी को पढ़ना नहीं आता। "
"पापा ,दादी तो रोज़ कहानी पढ़कर सुनाती है । "
सुबोध,अपनी माँ कल्याणीजी की तरफ आश्चर्य से देख रहा था।
कल्याणीजी के पिताजी ने उन्हें घर पर ही अक्षर ज्ञान करवा दिया था। कुशाग्र बुद्धि की कल्याणीजी ,अपने पिताजी की किताबें पढ़ती थी। कल्याणीजी के होने वाले पति को सिर्फ अपन नाम लिखना और पढ़ना आता था ।
अपनी माताजी की सलाह पर,अपने पति की अहं तुष्टि के लिए कल्याणीजी ताउम्र निरक्षर ही बनकर रही। जब बहुत मन कर्त तो अपने बच्चों की किताबें पढ़ लेतीं । किताब की लिखी कोई बात कभी कहनी होती तो कहती कि फलाने ने बताया है या सत्संग में सुना है।
कल्याणीजी की बेटी कभी-कभी उन्हें अक्षर ज्ञान करवाने की कोशिश करती तो उनके कुछ कहने से पहले ही उनके पति कहते ,"अब सीखकर क्या करेगी ,तेरी माँ ?"
कल्याणीजी के पति का दो वर्ष पहले निधन हो गया ।
"सुबोध,अब किसी के नाराज़ होने का डर नहीं । अब किसी के अहंकार पर चोट नहीं लगेगी । इसलिए अब से पीहू को कहानी मैं ही सुनाऊँगी । ",कल्याणी जी ने प्यार से किताब को हाथ में लेकर देखते हुए कहा । कल्याणी जी के हाथ में आने के लिए जैसे किताब बरसों से प्रतीक्षारत थी ।
