अच्छाई
अच्छाई
"क्या लूट मची हुई है ?20/- के आलू सब्जीवाला 200 /- में देके गया है। ये लोग भगवान् से भी नहीं डरते। "
100 /- का सैनीटाईजर अपने कारखाने में बनाकर,600 /-में बेचने वाले उद्योगपति ने अपनी बीवी से कहा।
"पापा ,इसमें भगवान से क्यों डरना । सब्जी वाले अंकल को भी तो अच्छा बनना है । उनके पास जितना ज्यादा पैसा होगा ,वो उतने ज्यादा अच्छे होंगे । आप और मम्मी हमेशा यही तो कहते हो ।
",उनके 7 वर्षीय बेटे ने मासूमियत से कहा ।
"क्या मतलब बेटा ?"
"पापा,जब मैं उषा आंटी के बेटे के साथ खेलता हूँ तो मम्मी कहती है कि अच्छे बच्चों के साथ खेला करो। उषा आंटी हमारे घर काम करने आती हैं और उनके पास पैसे कम हैं जिनके पास पैसे कम होते हैं,वो अच्छे नहीं होते न । "
उनका बच्चा सही तो कह रहा था कि उन्होंने हमेशा इंसान की अच्छाई को उसके पास उपलब्ध धन -दौलत से ही तो तौला है ।
मम्मी को याद आ गया था कि ,"कैसे वह अपने बच्चे को पढ़ने के लिए समझाती है । हमेशा यही कहती रहती कि अगर पढ़ेगा नहीं तो बसों में धक्के खाने पड़ेंगे,बड़ी गाड़ी नहीं खरीद पायेगा । "
घर के कामकाज में मदद करने वालों के साथ घुलने -मिलने से वह हमेशा ही अपने बेटे को यह कहकर रोकती रही कि ,"अच्छे लोग नहीं हैं । हमारे जैसे अच्छे नहीं हैं । "
बेटे ने वही समझा ,जो उन्होंने समझाना चाहा ।
