पूजा
पूजा
"सोना,आज तो संडे है ;आज तो मेरे पास थोड़ी देर बैठ जाओ। "
"विकु,आप भूल रह हैं कि मंगलवार को माँ ने सत्यनारायण भगवान् की पूजा रखवाई है। कल तो मुझे ऑफिस जाना है ;तैयारी तो आज ही करनी होगी न। "
"फिर हमारा मूवी देखने का प्लान ?"
"आज तो नहीं हो पायेगा ?"
"सोना,तुम अकेले इस घर की बहू नहीं हो ;देवी भी है। "सोनाली के पति विक्रांत ने झुँझलाते हुए कहा।
सोनाली और विक्रांत के विवाह को 3 वर्ष हो गए थे। सोनाली अपने मम्मी -पापा की इकलौती बेटी थी। वह किशोरी थी,तब उसकी मम्मी की मृत्यु हो गयी थी। पापा ने बड़े ही नाज़ों से उसे पाला था। अपने पापा के साथ अकेले रही सोनाली का हमेशा से एक था कि उसका विवाह एक भरे -पूरे परिवार में हो। बचपन से उसे भाई -बहिन,दादा -दादी आदि किसी का साथ नहीं मिला था। वह परिवार की चुहलबाजी,रूठना -मनाना आदि सभी बचपन से मिस करती आयी थी। फिर हिंदी फिल्मों ने संयुक्त परिवार ही खुशियों का आधार का नारा उसके दिल और दिमाग में फिट कर दिया था।
विक्रांत से शादी के लिए भी उसने यही सोचकर हाँ की थी कि तीन भाई -बहिन वाले परिवार में उसे सभी रिश्तों को जीने का मौका मिलेगा। विक्रांत को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर,साँवली -सलोनी सोनाली देखते ही भा गयी थी। "रहना है तेरे दिल में " विक्रांत की प्रिय मूवी थी और दिया मिर्ज़ा उसकी प्रिय हीरोइन। वह हमेशा से ही एक फाइनेंसियल इंडिपेंडेंट लाइफ पार्टनर चाहता था।
विवाह क बाद सोनाली अपना पूरा समय विक्रांत के परिवार को देना चाहती थी ताकि परिवार से उस वह प्यार और अपनापन मिले,जिसके लिए वह बचपन से तरसती रही थी। कई बार तो वह विक्रांत के हिस्से का समय और प्यार भी उसके परिवार को दे देती थी। सोनाली भावुकता में आकर,विवाह के बाद ही नौकरी छोड़ना चाहती थी,लेकिन विक्रांत ने ही उसे समझाया कि,"दोनों मिलकर परिवार और नौकरी दोनों सम्हाल सकते हैं। "
सोनाली ने परिवार की जिम्मेदारी पूर्णरूपेण अपने कन्धों पर उठा रखी थी। उसके लिए अपने परिवार की ख़ुशी सर्वोपरि थी। विक्रांत ने कई बार सोनाली को समझाने की कोशिश भी की,"सोना तुम्हें अपना ख्याल सबसे पहले रखना चाहिए ;फिर ही तुम परिवार का ध्यान रख पाओगी। "
लेकिन सोनाली न जाने कौनसी मिट्टी की बनी थी। इसी बीच विक्रांत के छोटे भाई विवेक का भी विवाह देवी के साथ हो गया था। सोनाली की देवरानी देवी घर पर ही रहती थी। उसके बावजूद भी न तो सोनाली और न ही उसकी सासू माँ शुभ्रा जी ने देवी को घर की कोई जिम्मेदारी सौंपी। देवी का जब मन करता,तब वह घर का कुछ काम कर देती। जितना मन करता,देवी उतना ही काम करती।
"सोना,अब तो देवी को भी कुछ काम करने दो। "
"विकु,अभी -अभी तो आयी है। घर में नयी -नयी है ;धीरे -धीरे सीख जायेगी। ",सोनाली,विक्रांत की बात को काटती आयी थी।
शुभ्राजी और देवी दिन भर साथ रहते ;गप्पे मारते ;कभी -कभी इधर -उधर घूमने भी चले जाते। सोनाली इन सबसे बेखबर,अपने काम मुस्तैदी से करती।
पूजा में पहनने के लिए,सोनाली अपने साथ -साथ शुभ्राजी और देवी के लिए लाल रंग की चुनरी की साड़ियाँ ले आयी थी। साड़ियों पर उसने फाल -पिको सब करवा लिया था। वह पूजा से एक दिन पहले दोनों को सरप्राइज देना चाहती थी।
"विकु,देवी कहाँ सारी तैयारियाँ कर पाएगी। उसे कहाँ कुछ पता है। मैं मम्मी जी से तैयारियों क बार में बात करके आती हूँ। ",सोनाली अपन कमरे से तीर की तरह निकल गयी थी।
"अरे सोनाली,मैं और देवी पूजा के लिए पीले रंग की गोटापत्ती की साड़ी पहनेंगे। तुम भी अपनी साड़ी,जो भी पहननी हो तैयार करवा लेना। ",कमरे के दरवाज़े पर सोनाली को देखकर शुभ्रा जी ने कहा।
शुभ्राजी की बात सोनाली के कानों में पिघले शीशे सी लगी। मम्मी जी ने उसे अपने से अलग कर दिया था। जब देवी और मम्मी जी ने अपने -अपने लिए साड़ियाँ खरीदी थी तो उसके लिए भी ले लेते। वह तो तीनों के लिए एक सी साड़ी लायी थी। उसकी इतनी तपस्या का कोई फल नहीं मिला। उसके त्याग और समर्पण का छोड़ो,उसकी भावनाओं की भी इन लोगों को कद्र नहीं।
"जी,मम्मी जी।वैसे मैं भी आप दोनों के लिए लाल चुनरी की साड़ी लायी थी। अब वापस कर दूँगी। "
"अरे वापस क्यों करना ? एक अपनी ननद वैशाली को दे देना और एक पूजा में रख देंगे। ",शुभ्राजी ने बेपरवाही से कहा।
"दीदी,आपके पास तो वैसे ही इतनी साड़ियाँ हैं ;इसलिए मम्मी जी आपके लिए साड़ी नहीं लायी। ",देवी न शायद सोनाली की आवाज़ में नाराज़गी को महसूस कर लिया था।
"अरे देवी,सोनाली बहू तो खुद ही कमाती है और खुद ही बाजार आती-जाती रहती तो साड़ी तो खुद ही ले आती। हमारी तरह उसे अपने पति से थोड़े न पैसे माँगने पड़ते हैं। "शुभ्रा जी खिलखिलाकर हँस दी थी।
"मम्मी जी पूजा की पूरी तैयारी मैंने पूरी कर दी है।कैटरिंग और हलवाई के नंबर मैं,अभी देवी को दे दूँगी तो एक बार फ़ोन कर लेना। पूजा का सामान,किराने वाले को लिखवा दिया था। आज शाम तक आ जाएगा,देवी लिस्ट से सामान मैच कर लेगी। पंडितजी से भी बात हो गयी थी ;वह समय पर आ जाएंगे। गेस्ट की लिस्ट डाइनिंग टेबल पर रखी हुई है ;आप और देवी फाइनल करके,सबको आमंत्रित कर लेना। "
"क्यों ? तुम अभी कहीं जा रही हो ?",शुभ्राजी ने पूछा।
"हाँ मम्मी जी,आपको वही तो बोलने आयी थी। विक्रांत ने आज मूवी देखने का प्लान बना रखा है। काफी दिनों से कह रह हैं। "
"हाँ -हाँ,तुम जाओ। बचा हुआ काम मैं और देवी कर लेंगे। हमारे लिए आते हुए गोलगप्पे पैक करवा लाना। "
"जी, मम्मी जी। "
सोनाली की ख़्वाबों की तस्वीर टूट गयी थी। उसने धीरे -धीरे अपने कदम,अपने कमरे क तरफ बढ़ा दिए थे।
"क्या हुआ ? इतनी जल्दी वापस ?"
"विकु,मूवी देखने चलें क्या ?"
"हां -हां,क्यों नहीं ? लेकिन हुआ क्या ?"
"कुछ नहीं। तुम्हारा कहना सही है,अब थोड़ी बहुत जिम्मेदारी देवी को भी उठानी चाहिए। मुझे अपना और तुम्हारा दोनों का थोड़ा ज्यादा ख्याल रखना चाहिये। "
