गलती
गलती
"हम अक्सर अपने कर्मचारियों को पूर्ण स्वतंत्रता देने की बात करते हैं ,लेकिन अगर हम अपने कर्मचारियों को गलती करने की स्वतंत्रता नहीं देते तो ऐसी स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं । यहाँ गलती देने की स्वतंत्रता का अर्थ है कि नासमझी ,जाने -अनजाने में हुई गलतियों को माफ़ करना । छोटी गलती की बड़ी सजा न देना । तब ही आपके कर्मचारी खुश होकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे । ",गिरीश वर्मा जी के ऑफिस की तरफ से आयोजित एक प्रबंधन कार्यशाला में आये एक प्रसिद्ध स्पीकर ने कहा ।
पूरी कार्यशाला के दौरान गिरीश जी के कानों में उसी के शब्द गूँजते रहे । टी ब्रेक के दौरान जब स्पीकर से चर्चा करने का अवसर मिला तो गिरीश जी ने उनसे पूछा भी कि ,"यही बात अपने बच्चों के लिए भी है क्या ? अगर बच्चों को स्वतंत्रता देते हैं तो गलती करने की भी स्वतंत्रता देनी चाहिए । "
"हां ,बिलकुल । ",स्पीकर ने कहा ।
"गलती से बच्चों का नुकसान होगा । ",गिरीश जी ने अपनी चिंता जताते हुए कहा ।
"लेकिन गलती करने से ही बच्चे सीखेंगे । "
"कल को बच्चों के साथ कुछ भी गलत हो जाए तो लोग माता -पिता को ही जिम्मेदार ठहराएँगे । "
'आपका नाम क्या है ?"
"जी ,गिरीश । "
"गिरीश जी ,बच्चों का नुकसान तो कई बार माता -पिता द्वारा लिए गए निर्णयों से भी हो सकता है । निर्णय सही या गलत दोनों हो सकते हैं और इसका पता निर्णय लेने के बाद ही चलता है । लेकिन अगर हम निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं देंगे तो बच्चे निर्णय लेना कैसे सीखेंगे ?"
"बात तो आपकी सही है । "
"गिरीश जी ,कई बार हम अपने अहंकार के चलते ,बच्चों के सही निर्णय को भी गलत मान लेते हैं और उनका साथ नहीं देते । "
गिरीश जी ने अपनी इकलौती बेटी शिवानी को बड़े अरमानों से पाला -पोसा ;उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाई और शिवानी अपने पैरों पर खड़ी भी हो गयी थी । शिवानी को उन्होंने भरपूर स्वतन्त्रता दी और शिवानी ने भी स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए अपना सम्पूर्ण विकास किया । वह पढ़ाई -लिखाई ,खेलकूद,सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि सभी गतिविधियों में अव्वल आती रही और अपनी बेटी की उपलब्धियों पर गिरीश जी का सीना गर्व से चौड़ा होता रहा ।
शिवानी को अपने साथ ही कार्य करने वाला अविनाश भा गया और उसने सबसे पहले अपने पापा गिरीश जी को ही बताया । गिरीश जी इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं थे । उनको लग रहा था कि शिवानी ने स्वतन्त्रता का दुरूपयोग किया है । शिवानी ने उनका अपनी बेटी के लिए वर खोजने के अधिकार को ,उनसे छिन लिया है । अविनाश उन्हें पसंद आ गया था और उसके घरवाले भी उन्हें सुलझे हुए ही लगे थे । उसके बावजूद भी वह इस रिश्ते को हाँ नहीं कह पा रहे थे ।
"पापा ,अब तो गलती हो गयी । मैं अपने आपको समझा नहीं सकी । आप तो इस गलती के लिए मुझे माफ़ कर दो और इस शादी के लिए सहमति दे दो । साथ ही अविनाश को भी स्वीकार कर लो । ",शिवानी न जाने कितनी ही बार गिरीश जी से कह चुकी थी । गिरीश जी की पत्नी अनीता जी भी गिरीश जी को कई बार समझा चुकी थी ;लेकिन गिरीश जी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे । वह अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस कर रहे थे । इसलिए हर समय ,हर स्थान पर उनके दिल और दिमाग में यही बातें चलती रहती थी ।
कभी पुत्री प्रेम का पलड़ा भारी हो जाता और कभी पिता के अधिकार का । आज गिरीश जी ने अपनी पुत्री की गलती को स्वीकार करने का निर्णय ले लिया था । गिरीश जी इसे गलती मान रहे थे ,जबकि यह शिवानी का स्वतंत्र निर्णय था और उसे अपने बारे में निर्णय लेने का अधिकार भी था ।
