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Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

तीर्थयात्रा

तीर्थयात्रा

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हाथ में किताब थी,लेकिन जानकीजी वर्षों पीछे का जीवन देख रही थीं। 

"माँ ,मेरे सभी दोस्त मेला देखने जा रहे हैं। मुझे भी जाना है। "

पति की मृत्यु के बाद जानकीजी जैसे -तैसे अपने बच्चे को पाल रही थी। मेले में आने -जाने के लिए ताँगे का और मेला घूमने का खर्चा कहाँ से लाएगी ? पिछले 2 सालों से वह प्रसाद को जैसे -तैसे फुसला रही थी; लेकिन कब तक फुसलाये।

"माँ ,मुझे केवल मेला देखना है। मैं वहाँ कोई ज़िद नहीं करूँगा। बाबा होते तो जरूर लेकर जाते।"

जानकीजी ने एक मजबूत कपड़ा लेकर बेटे को पीठ से बाँध लिया और दोनों माँ -बेटे मेले में पहुँच गए। मेला देखकर नन्हे प्रसाद की आँखें चमक उठी थी। मेले से आने के कई दिनों बाद तक, मेले की बातें होती रही थी। 

जानकीजी ने प्रसाद को पढ़ाया -लिखाया । प्रसाद भी पढ़ने में होशियार था और हर साल वजीफा पाता था । पढ़ाई पूरी होने के बाद जल्द ही ,शहर में कलेक्टरी में बाबू बन गया ।

प्रसाद का विवाह हो गया और जानकीजी जल्द ही दादी भी बन गयी। जानकीजी की इच्छा चार-धाम की यात्रा पर जाने की थी । बेटे-बहू के सामने उन्होंने इच्छा जाहिर की। 

"अम्माजी ,पैसे पेड़ पर नहीं लगते। तीर्थयात्रा पर जाने की क्या जरूरत है। मन चंगा तो कठौती में गंगा। दर्शन के लिए भगवान की फोटो होनी चाहिए बस।", बहू ने किताब पकड़ा दी थी।

माँ बेटे को पीठ पर भी दुनिया घुमाकर ला सकती है, लेकिन बेटा नहीं। पिछली बातें याद कर, किताब देखते हुए जानकी जी की आँखें छलछला आयी। 


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