मिट्टी से ईश्क़
मिट्टी से ईश्क़
किसी ने क्या खूब कहा है कि "कभी कुम्हार को भी पसन्द कर लिया करो, देश की मिट्टी से देश बनाता है "मिट्टी - एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर ही रोम - रोम रसीला हो जाता है। मैं इसीलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं जब इस तरह से लिखूँगा तो आप मिट्टी से प्यार करेंगे , या फिर इस तरह से आप मिट्टी को पसंद करेंगे ।
कहने से कुछ नहीं होता है , आप हकीकत में कभी अकेले में बैठे हो ,और तब आप मिट्टी के बारे में सोचकर देखिये।यकीनन वो महसूस जरूर करेंगे जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है ।और उसी महसूस की गईं सांसों को अगर मिट्टी से ईश्क़ कहे तो गलत नहीं होगा ।सिर्फ मेरे कहने से न मैं इसे महसूस करूँगा और न आप।
लेकिन कभी दुःखी हो तो मिट्टी से बात जरूर करना । क्योंकि मैं बहूत बार करता हूँ । और मुझे हर बार एक सकारात्मक विचार से भरपुर एक तोहफा मिलता है । जो मुझे कोई भी मोटिवेशनल स्टार नहीं दे सकता है । और इसे ही मिट्टी से ईश्क़ कहना पसन्द करूँगा।दीपावली के दीपक हो या पानी की मटकी , मिट्टी के हर बर्तन में वो सुगन्ध जरूर होती है। जो आपकी दिल की गहराई तक को नाप लेती है ।अगर में कहूँ कि आप में से कितने लोग है जिन्होंन
े मिट्टी के चूल्हे की रोटी खाई है, तो शायद काफी लोग कहेंगे कि मैंने खाई है , लेकिन उस स्वाद का मजा हर कोई नहीं बता सकता है , सिवाय उनके जिन्होंने उस चूल्हे को देखकर या उस चूल्हे पर पके परांठे खाये है ।
अगर आपने खाये है तो आपकी जिंदगी के हसीन पल हसीन तरह से गुजरे है । हाँ अगर नहीं खाई हैतो कोई बुराई नहीं कहुँगा क्योंकि हमें मिट्टी का चूल्हा विरासत में मिला है ।क्योंकि हमारी जेब में इतनी गर्मी नहीं थी कि वो उस चूल्हे की गर्मी को दबा सके।बढ़ती आधुनिक तकनीकी गतिविधियों की बात करेंतो बहूत कुछ है जो बदल रहा है और बदल जायेगा । लेकिन वो मिट्टी के घर जिनमें न जाने किस कोने में तिजोरी होती थी और किस कोने में दराज । बहूत सारे मकान जिनके अंदर भी मकान बना लेते थे ।
पहले अशिक्षित इतना मजबूत बना देते थे कि हजारों साल तक किसी मौसम में इतनी ताकत नहीं कि एक टुकड़ा भी हिला सके। और फिर आये शिक्षित इंजीनियर जो बना तो देते है लेकिन एक मौसम की मार से बिल्डिंगे ढह जाती है।ये मिट्टी का ईश्क़ मुझे मुबारक ।