बचपन की अठखेलियां
बचपन की अठखेलियां
सुनहरा बचपन और सुंदर बचपन हर कोई जीता है ।किस - किस ने किया है - बरसात के पानी में कागज की कश्ती बनाकर तैराना ,जब वो पानी सूख जाता था ,तो कीचड़ की पपड़ी को मिठाई बनाकर दुकान लगाना।सुपारी और खैनी के रिक्त पाउच से पैसे बनाना और जिसके पास सबसे ज्यादा हो वो सबसे रईस कहलाता है।पत्थर के गोल टुकड़ो को गट्टा बनाकर खेलते थे।बारिश से भीगते बचपन को माँ की डांट की छतरी से ढकना एक अलग ही भाव - विभोर समय था।चप्पल को काटकर गोल आकार के टायर बनाते थे , बाँस की लंबी छड़ी से जोड़कर गाड़ी बनाते थे।वो सिर्फ अठखेलियां थी , लेकिन उस समय पुनर्जन्म किसी भी जन्म में नहीं हो सकता है।
यकीनन वो समय हम आने वाले पीढ़ी को नहीं दे पाएंगे।क्योंकि अंतरा जाल में इतने फंस चुके हैं कि जाल में अंतर नहीं देख पा रहे हैं।कहीं न कहीं डूबती आनंद की कश्ती में जो छेद है उसे बंद नहीं कर पा रहे हैं।संस्कृति और सभ्यता के मध्य मैं उतना ही अन्तर मानता हूँ जितना बचपन और बच्चों के बीच होता है।
बचपन में सब बच्चे होते है लेकिन सब बच्चों में बचपन नहीं होता है।समझदारों में बच्चों का होना कोई ख़ास बात नहीं है।लेकिन बच्चों में समझदारों का होना एक खास है वो इसलिए नहीं कि बच्चा समझदार हैं वो इसलिए कि समझदारी जब समझौता बन जाये तो सच बोलने की आवश्यकता है ।