परछाई
परछाई
सहज , सरल और मैत्रीपूर्ण व्यवहार वाला विकास आज कठोरहृदय और शत्रुता का पर्याय बन गया था।समाज में अच्छी-खासी तस्वीर थी , सबसे प्यार से बात करता था और कोई भी ऐसा शख्स नहीं था जिसने विकास को सराहा नहीं था ।बस एक कमी थी , वो भी उसकी नहीं थी बस उसे उस कमी की वजह से तानों में धकेला जा रहा था ।
उसके पिताजी शराबी थे ,वो हर दिन उस आदत की वजह से वो दुःखी था ।एक दिन किसी बात पर झगड़ा हो गया , और घर से दूर चला गया ।
कुछ दिन दुःखी और मारा मारा फिरने लगा ,और एक दिन अचानक उसके मन में ख्याल आया कि सिर्फ ये परछाई है जिसने मेरा साथ नहीं छोड़ा , क्यों न मैं इसका साथ छोड़ दूँ।
रेलवे स्टेशन पर ट्रेन आने में अभी पाँच मिनट शेष थे ,जैसे जैसे वो मिनट व्यतीत हो रहे , विकास की मानसिक परछाई खत्म हो रही थी ।
अनन्त ट्रेन आयी और विकास की परछाई के साथ गुजर गई , जो फिर कभी नहीं बनेगी।