जब सब थम सा गया (तीसरा दिन)
जब सब थम सा गया (तीसरा दिन)


लॉक डाउन तीसरा दिन
27.03.2020
प्रिय डायरी,
आज सुबह इतनी जल्दी हो गयी पता भी नहीं चला 2 बजे ही सुबह भोर मे मुझे नींद आए थी और 5 बजे उठ गया। दरहसल रात मैं गेट बंद करने के बाद गेट की चाभी गलती से अपने जेब में रखकर भूल गया और सुबह माँ मुझसे पूछने लगी की चाभी कहा हैं। मैं आधी नींद मैं उठा था तो लगा की चाभी तो मैंने वही रखी थी जहाँ रोज रखता हूँ?फिर क्या मैं बिस्तर से उठकर नीचे गया और चाभी खोजने लगा , लगभग 15 मिनट के बाद चाभी न मिलने पर दूसरी चाभी से गेट खोला और सोचा पहली चाभी उजाले में ढूंढूंगा। लेकिन मुझे अब भी नींद जैसा लग रहा था तो मैं वापिस अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेटने ही वाला था कि चाभी मिल गयी। मैं सोच कर हँसने लगा की मेरा दिमाग लगता हैं ख़राब हो रहा हैं अब घर में बैठे बैठे और मैं फिर से लेट गया,सोचा मोबाइल देख लू। मोबाइल डाटा ऑन करती हैं वही कोरोना के मैसेज और वीडियो मैंने सबको नजरअंदाज किया। लेकिन एक बात मुझे दुखी कर गयी की जनता जो अपने घरों से दूर हैं।
ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता वो इस संक्रमण को समझ नहीं पा रही और दिल्ली और अन्य स्थानों से पैदल ही समूह मैं अपने घर को भूखे प्यासे बारिश और अँधेरे मैं अपने घर की और पलायन कर रहे हैं। पूछने पर मीडिया को बताते हैं कि साहब कोरोना से बाद में मरेंगे उससे पहलें हम सब भूख से मर जायेंगे। सुनकर अजीब लगा लेकिन सच तो यही था। एक बात मुझे सोचने पर मजबूर कर रही थी की उस मजदूर ने कहा- "साहब हम तो दिहाड़ी मजदूर हैं,कोरोना संक्रमण विदेश से आया हैं जो लोग विदेश से आये हैं,लेकिन सरकार उनको हवाई जहाज से लेकर आई हैं और हम लोग जो निर्दोष हैं हमे घर जाने की कोई मदद भी नहीं कर रही हैं कैसा समय आ गया साहब"? ये खबर मोबाइल मैं देखकर मुझे कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला। फिर मेरी नींद सुबह 9:45 पर खुली। माँ ने आवाज दी की उठ जा व्रत चल रहा हैं तुम्हारा नाहा धोकर पूजा तो कर लो। मैं उठा और अपनी प्यारी भांजी-नायरा के साथ माता रानी की पूजा के साथ घर में निर्मित शिव मंदिर में भोले नाथ को जल चढ़ाकर सब चीज़ सही हो जाये और सबको सलामत रखने की प्राथना करके अपने कमरे में आ गया,क्योंकि और कर भी क्या सकता था।
थोड़ी देर मैं मेरी प्यारी भतीजी -आरोही मेरे पास आई ,ये अभी मात्र 8 महीने की हैं लेकिन मेरी एक अवाज़ पर उछलने लगती हैं। उसके साथ खेलते खेलते उसको कब नींद आने लगी पता न चला और मेरी प्यारी गुड़िया धीरे से मेरी सीने पर सो गई। मैं उसको सुला कर खिड़की से बाहर का मौसम और सड़क देख रहा था। सब नीरस सा लग रहा था। लेकिन थोड़ी देर पे सुनसान सड़क पर मैंने एक 35 वर्ष के व्यक्ति को मुँह पर रूमाल बंधे और कंधों पर बेग लिये आते देखा,एक पल के लिए लगा की कौन व्यक्ति हैं ये और कहा से आ रहा हैं। मैं ये सोच कर नीचे जा ही रहा था कि वो व्यक्ति सड़क पर दूर निकल गया ,मेरे मन में विचार आने लगा की कही दुसरे राज्य से पैदल आया कोई व्यक्ति तो नहीं? मैं उसका पीछा नहीं कर सकता था क्योंकि लॉक डाउन का आज तीसरा दिन था और प्रधानमंत्री जी की अपील हैं कि घर में ही रहो। तो मैं वापिस कमरे में आ गया और छोटे भाई और सभी से बाते करने लगा। शाम को फिर कैरम खेला गया और इसी बीच खबर सुनाई दी की बहुत से लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के लिए पलायन कर रहे हैं। मैं यही सोच रहा था कि बुखमारी और लाचारी के चलते ये बेचारे करेंगे भी क्या लेकिन क्या ये कोरोना संक्रमण को फैलाने का सबसे खतरनाक कारन तो नहीं साबित होगा? थोड़ी देर में मुझे फ़ोन आया,जो की मेरे सबसे प्रिय मित्र एवं भाई राकेश प्रधान जी का फ़ोन आया जो की केंद्रीय विद्यालय में लाइब्रेरियन हैं। वो भी पंजाब में फंसे थे और अपनी और अपने आसपास की मौजूदा स्थिति बताने लगे। शाम की आरती और पूजा के बाद फलाहार करके मैं अपने कमरे में आ कर अपने विषय की पुस्तक पढ़ने लगा। लगभग 12 बजे मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया।
इस तरह लॉक डाउन का तीसरा दिन भी खत्म हो गया। लेकिन कहानी अभी अगले भाग में जारी हैं.............💐