अनजान सफर-भाग -2
अनजान सफर-भाग -2


सुबह लगभग 5 बजे हम सभी लोग उठ गए और सारा सामान इकठ्ठा करके आगे के सफर पर चल दिए ! एक घंटे के चढ़ाई के बाद हम पहाड़ पर पहुँच गए और उसी समय सूर्योदय हो रहा था ,बगल में झरना और प्रकृति की सुंदरता देखते ही बन रही थी !
सभी लोग कुछ देर के लिए प्रकृति की सुंदरता देखने में एक दम से मगन हो गए ! दरहसल इस जगह पर आने का मुख्य कारण यही सुंदरता देखना था ! हम लोग इस बार अतुल भैया के कहने पर इस अनजान जगह पर आये हैं !
मैंने कहा "अतुल भैया बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी जगह लाने के लिए " सुधीर भैया और राकेश ने भी अतुल भैया की बहुत तारीफ़ की !
अतुल भैया ने कहा "अभी देखते जाओ आगे आगे और भी बहुत सी चीज़े देखने को मिलेगी !"
कुछ देर आराम करने के बाद हम लोग आगे बढ़ने लगे ! वास्तव में ये जंगल बहुत ही सुन्दर था,इसके पीछे का कारण ये था की यह जंगल शहर से दूर था और सुनसान होने के कारण ज्यादा लोग यहाँ पहुँच ही नहीं पाते थे!
हम लोग का इस जंगल में आने का मकसद कुछ और भी था ! दरहसल अतुल भैया 'पेरानॉर्मल इन्वेस्टीगेशन में अनजान जगहों के विषय' में पीएचडी कर रहे थे और सुनसान जगह का रहस्य उजागर करने में माहिर थे! बस उनकी एक बात मुझे अच्छी नहीं लगती थी, वो थी ईश्वर पर आस्था का न होना ! लेकिन ये उनका स्वतंत्र विचार था,इसलिए मैं उनके इस विषय पर कुछ भी नहीं बोल सकता था !
आज शाम तक जहा पहुंचना था वो अभी भी दूर था दोपहर का समय हो गया था और सभी को भूख भी लगी थी !
सुधीर भैया ने कहा-" चलो कुछ देर आराम कर लेते हैं और मैं सबके लिए कुछ बना देता हूँ ! बर्तन और जरुरी सामान हम लोग साथ में लेकर ही चल रहे थे और अतुल भैया ने भी पहले ही गाँव वालो से बात करके इस जंगल के बारे में पता किया था !
वैसे तो इस जगह का क्या रहस्य था वो तो अतुल भैया ही उजागर कर सकते थे, बाकी सुधीर भैया मैं और राकेश तो बस घूमने का आनंद लेने आये थे! हम लोग बस कुछ ही देर बाद मैगी खा कर निकल पड़े क्यूंकि अँधेरा होने से पहले हमे उस स्थान पर पहुंचना था ! अँधेरा होते होते हम लोग अपनी मजिल पर पहुँच गए ! लेकिन वहा पहुँच कर हमने देखा तो सब के सब कुछ देर के लिए एकदम से चकित रह गए!
सुधीर भैया ने कहा "अरे ये क्या इस जंगल में ये गुफा ? कौन आता होगा यहाँ ?"
अतुल भैया खुश थे क्यूंकि गाँव वालो ने उन्हें सही बताया था लेकिन इस जगह पर आने के लिए मना भी किया था !लेकिन ये बात केवल अतुल भैया ही जानते थे !
मैं, राकेश और सुधीर भैया इस सच से अनजान थे ! अतुल भैया ने कहा कुछ नहीं ये एक पुराने गुफा में मंदिर हैं और गाँव वालो ने बताया था की यहाँ सिर्फ महाशिवरात्रि और श्रावण में ही लोग दर्शन करने आते हैं !
ये बात अतुल भैया ने हम सब से झूट बोला था,क्यूंकि वो जानते थे इस डरावने गुफा के बारे में और इस गुफा में कोई मंदिर नहीं था ! लेकिन जब मेरी नज़र धागो और सिंदूर से बने उलटे स्वस्तिक पर पड़े तो मेरे मन में कुछ बुरे संकेत आने लगे !
अँधेरा हो चूका था ! अतुल भैया ने कहा आज हम यही रुकेंगे! मेरा मन तो बिलकुल भी नहीं कर रहा था लेकिन सबको साथ में रहना बहुत जरुरी था ! लेकिन मैंने कहा भैया- "जहा रुकना हैं वह मैं और राकेश देख कर आते हैं और आप लोग लकड़ियों की व्यवस्था कीजिये !"
गुफा से कुछ दुरी पर मैंने और राकेश ने दोनों टेंट लगा दिए क्यूंकि जंगल में हर जगह आप टेंट नहीं लगा सकते हैं ! कुछ देर बाद अतुल भैया और सुधीर भैया भी टेंट के पास लकड़ी लेकर आ गए ! लेकिन राकेश पहले दिन की घटना के बाद से ही कुछ डरा हुआ सा लग रहा था और उस रात की घटना का जिक्र फिर से नहीं करना चाहता था ! हम सभी लोग ने रात के भोजन की तैयारी चालु कर दी और भोजन करके सोने की तैयारी करने लगे !तभी मैंने देखा की अतुल भैया गुफा के द्वार के तरफ खड़े हुए थे ! अतुल भैया बस उस गुफा को देख रहे थे और मुस्कुराये जा रहे थे मेरे से रहा नहीं गया तो मैंने अतुल भैया से पूछा
"भैया आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं? आपको तो मंदिर और ईश्वर में आस्था नहीं हैं फिर यहाँ क्यों रुके हैं ?"
"आपको भी डर लग रहा हैं क्या ?" मैंने हँसते हुए भैया से कहा,
अतुल भैया हँसते हुए बोले-"सो जाओ बाबू कल इसका जवाब तुम्हे मिल जायेगा !" मेरे कुछ समझ नहीं आया और मैंने ज्यादा दिमाग लगाने की कोशिश भी नहीं की फिर
हम दोनों अपने अपने टेंट में चले गए !
शेष कहानी अगले भाग में जारी हैं