हॉस्टल का बंद कमरा-2
हॉस्टल का बंद कमरा-2
राज और सतीश गार्ड की कहानी सुनकर सन्न रह गए थे। राज, जो अभी तक मज़ाक उड़ाता रहा था, अब एकदम चुप था। उसके चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था। सतीश की आँखें गार्ड की आँखों में कुछ खोज रही थीं—कुछ ऐसा जो कहानी से परे था।
"अंकल, ये सिर्फ़ कहानी थी… या कुछ और?" सतीश ने धीमे स्वर में पूछा।
गार्ड ने मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, कहानी ही समझो।"
लेकिन उस मुस्कान में एक अजीब सी थकावट थी—जैसे कोई पुराना ज़ख्म फिर से हरा हो गया हो।
रात गहराने लगी। हॉस्टल की दीवारें जैसे साँसें लेने लगीं। हर कोना, हर दरवाज़ा, हर खिड़की जैसे कुछ कहने को बेचैन थी।
राज ने कहा, "चलो कमरे में चलते हैं।" लेकिन सतीश की नज़र उस बंद कमरे की ओर चली गई। दरवाज़ा अब भी बंद था, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे कोई अंदर से देख रहा हो।
"राज," सतीश ने कहा, "क्या तुमने कभी सोचा है कि अगर वो लड़का आज भी यहीं हो?"
राज ने हँसने की कोशिश की, "अब तू भी डराने लगा?"
लेकिन सतीश गंभीर था। "मुझे लगता है हमें उस कमरे के पास जाना चाहिए।"
राज ने विरोध किया, "तू पागल हो गया है क्या? अंकल ने मना किया था।"
"शायद हमें जानना चाहिए कि सच्चाई क्या है," सतीश ने कहा।
आधी रात के करीब, दोनों चुपचाप उस कमरे के पास पहुँचे। दरवाज़ा जंग लगा था, लेकिन बंद नहीं था। सतीश ने धीरे से हैंडल घुमाया। दरवाज़ा चरमराया… और खुल गया।
कमरे के अंदर घुप अंधेरा था। एक पुरानी मेज़, टूटी कुर्सी, और दीवारों पर उखड़ी हुई पेंटिंग्स। लेकिन सबसे डरावनी चीज़ थी—एक पुरानी डायरी, जो मेज़ पर खुली पड़ी थी।
सतीश ने उसे उठाया। पहला पन्ना पढ़ते ही उसकी साँसें थम गईं:
"आज फिर उन्होंने मुझे डराया। मैं जानता हूँ, मैं अकेला हूँ। लेकिन मैं हार नहीं मानूँगा। अगर मैं मर भी गया, तो मेरी कहानी यहीं रहेगी…"
राज ने कहा, "चलो यहाँ से चलते हैं।" लेकिन तभी कमरे में दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया।
दोनों चौंक गए। सतीश ने टॉर्च जलाने की कोशिश की, लेकिन बैटरी खत्म हो चुकी थी।
फिर अचानक… दीवारों पर खरोंचने की आवाज़ें आने लगीं। जैसे कोई अंदर ही अंदर कुछ लिख रहा हो।
राज चिल्लाया, "कौन है वहाँ?"
कोई जवाब नहीं आया। लेकिन डायरी के पन्ने अपने आप पलटने लगे।
अंतिम पन्ने पर लिखा था:
"अब मैं अकेला नहीं हूँ। कोई मेरी कहानी सुनने आया है। अब मैं उन्हें भी अपना हिस्सा बना लूँगा…"
राज और सतीश ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वो जाम हो चुका था। कमरे का तापमान गिरने लगा। साँसें जमने लगीं। और फिर… एक धीमी सी फुसफुसाहट सुनाई दी:
"तुमने दरवाज़ा खोला… अब तुम कभी बाहर नहीं जा पाओगे…"
और उस बंद कमरे का दरवाज़ा… फिर से बंद हो चुका था।
सुबह जब गार्ड ने हॉस्टल का चक्कर लगाया, तो सतीश और राज का कमरा खुला मिला। उनके बैग, किताबें, और मोबाइल वहीं थे—जैसे वे अभी-अभी उठकर बाहर गए हों। लेकिन कमरे में कोई नहीं था।
गार्ड ने पूरे हॉस्टल में उन्हें ढूँढा, आवाज़ लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। फिर उसकी नज़र उस बंद कमरे की ओर गई। दरवाज़ा… फिर से बंद था। लेकिन इस बार, दरवाज़े पर एक नया निशान था—जैसे किसी ने अंदर से नाखूनों से खरोंच कर कुछ लिखा हो।
"अब दो और आ गए हैं..."
गार्ड का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने तुरंत दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन हैंडल जाम था। अंदर से एक ठंडी हवा बाहर आई—इतनी ठंडी कि उसकी साँसें जमने लगीं। उसने पीछे हटते हुए दरवाज़ा फिर से बंद कर दिया।
उस दिन के बाद, हॉस्टल में अजीब घटनाएँ शुरू हो गईं।
रात के समय, उस कमरे के पास से गुज़रने वाले छात्रों को किसी के फुसफुसाने की आवाज़ें सुनाई देतीं। कभी-कभी ऐसा लगता जैसे कोई दरवाज़े के पीछे खड़ा है, साँसें ले रहा है। कुछ छात्रों ने दावा किया कि उन्होंने सतीश और राज को देखा—लेकिन उनके चेहरे अजीब थे, आँखें खाली, और शरीर जैसे धुंध से बने हों।
एक बार एक नया छात्र गलती से उस कमरे के पास चला गया। अगले दिन उसकी आँखों में डर था, और वह बोलने की हालत में नहीं था। उसने बस इतना कहा:
"वो लोग अब अकेले नहीं हैं... वहाँ और भी हैं..."
कॉलेज प्रशासन ने उस कमरे को हमेशा के लिए सील कर दिया। लोहे की चादरें लगाई गईं, ताले बदले गए। लेकिन हर रात, उस कमरे से धीमी-धीमी दस्तकें आतीं। जैसे कोई अंदर से बाहर निकलना चाहता हो।
गार्ड अब किसी से उस कहानी का ज़िक्र नहीं करता। लेकिन कभी-कभी, जब वह अकेला होता है, तो उसकी आँखें उस कमरे की ओर टिक जाती हैं।
एक रात, जब बिजली चली गई और पूरा हॉस्टल अंधेरे में डूब गया… उस बंद कमरे का दरवाज़ा फिर से खुला।
लेकिन इस बार, दरवाज़ा सिर्फ खुला नहीं था—वह धीरे-धीरे खुद-ब-खुद खुलता गया, जैसे किसी ने भीतर से उसे धकेला हो। हवा में एक अजीब सी गंध फैल गई—जली हुई किताबों, पुराने लोहे और किसी अनजाने डर की। गार्ड ने दूर से देखा, लेकिन उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे। वह हिल भी नहीं पाया।
कमरे के भीतर से एक परछाई निकली—धुंधली, अस्पष्ट, लेकिन मानवीय आकार में। वह धीरे-धीरे हॉस्टल की गलियों में घूमने लगी। सीढ़ियों पर किसी के चलने की आवाज़ें आईं, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। दीवारों पर नमी की लकीरें बन गईं, जैसे किसी ने रोते हुए उन्हें छुआ हो।
अगली सुबह, हॉस्टल के नोटिस बोर्ड पर एक नया नोट चिपका मिला—किसी ने हाथ से लिखा था:
"जो कहानी सुनते हैं, वे लौट सकते हैं।
जो सवाल पूछते हैं, वे खो जाते हैं।
जो दरवाज़ा खोलते हैं… वे कभी बंद नहीं कर पाते।"
कॉलेज प्रशासन ने उस नोट को तुरंत हटा दिया, लेकिन कुछ छात्रों ने उसकी तस्वीर खींच ली। धीरे-धीरे वह नोट वायरल होने लगा। लोग हॉस्टल की कहानी को अफवाह मानते रहे, लेकिन हर साल, एक या दो छात्र रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते।
कभी-कभी, रात के सन्नाटे में, उस बंद कमरे की खिड़की से दो चेहरे झाँकते हैं—एक सतीश का, एक राज का। उनकी आँखें अब खाली नहीं हैं… उनमें एक दहकता हुआ सवाल है:
"अब अगला कौन होगा?"
धीरे-धीरे, वो कमरा सिर्फ़ एक जगह नहीं रहा… वो एक इंतज़ार बन गया—हर नए छात्र के लिए, हर अनजाने कदम के लिए, एक ऐसा दरवाज़ा… जिसे खोलना अब सिर्फ़ जिज्ञासा नहीं, एक शाप था।

