"रोटी की कीमत"
"रोटी की कीमत"
भगवान ने इस दुनिया की हर वस्तु को बेहद सुंदर ढंग से बनाया है। लेकिन मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकताएँ—रोटी, कपड़ा और मकान—इनमें सबसे पहली और अनिवार्य आवश्यकता है रोटी। क्योंकि बिना भोजन के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भूख सबको लगती है, और इसी भूख को मिटाने के लिए सोनू भी कई दिनों से इधर-उधर भटक रहा था।
यह कहानी उसी सोनू और उसकी एक रोटी की तलाश की है।
बात उन दिनों की है जब मैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा था। अंतिम वर्ष की घटनाओं में से एक, जो आज भी मेरे दिल में गहराई से बसी है, वह है सोनू की कहानी।
सोनू एक छोटा बच्चा था, जो अक्सर मेरे हॉस्टल के पास खेलता दिखाई देता था। लेकिन वह कहाँ रहता था, उसके माता-पिता कौन थे—इसका कोई पता नहीं था। मैं अपने कमरे की खिड़की से जब उसे देखता, तो उसके चेहरे पर फैली मासूमियत और भूख की छाया मुझे भीतर तक झकझोर देती।
एक दिन मैंने उसे बुलाया और हॉस्टल के बाहर बेंच पर अपने पास बैठने को कहा। लेकिन वह डर के मारे मेरे पास नहीं आया और भाग गया। मुझे बहुत बुरा लगा—क्या मैं इतना डरावना हूँ कि एक बच्चा मुझे देखकर भाग जाए?
मैं चुपचाप लौट गया।
कुछ दिन बाद, जब मैं शाम को टहल रहा था, तो देखा कि वही बच्चा बाहर रखे जूठे खाने से कुछ उठाकर खा रहा था। यह दृश्य मेरे लिए असहनीय था। आज जिन लोगों को भोजन सहजता से मिल रहा है, वे उसे बर्बाद कर रहे हैं, और वहीं एक भूखा बच्चा जूठे खाने से अपनी भूख मिटा रहा है।
मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े। मैं उसके पास गया और पूछा,
"बेटा, ये क्या कर रहे हो? जूठे खाने से क्यों खा रहे हो?"
यह सुनकर वह बच्चा रोने लगा और मुझे पकड़कर फूट-फूटकर रोने लगा। मैं भी भावुक हो गया। खुद को संभालते हुए उसे अपने हॉस्टल के कमरे में ले गया और धीरे-धीरे उससे बात करने लगा।
भूख ने उसके शरीर को कमजोर कर दिया था। चेहरा सूखा, आँखें बुझी हुई, और कपड़े मैले। मैंने उसे सबसे पहले कुछ बिस्किट दिए और पानी पिलाया। थोड़ी देर में उसकी साँसें सामान्य हुईं।
मैंने पूछा,
"बेटा, तुम कौन हो और यहाँ हॉस्टल के पास क्यों घूमते हो?"
उसने धीमे स्वर में कहा,
"भैया, मेरा नाम सोनू है। मैंने कई दिनों से खाना नहीं खाया है। क्या आप मुझे खाना खिला सकते हैं?"
उसकी बात सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने तुरंत हॉस्टल के मेस में फोन किया, लेकिन पता चला कि आज मेस बंद है। यह सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ।
मैंने सोनू से कहा,
"चलो बेटा, हम बाहर खाना खाएँगे।"
उसने मेरी ओर देखा और कहा,
"भैया, मुझे बस एक रोटी खिला दीजिए।"
बस एक रोटी... इतनी सी ख्वाहिश। मैं स्तब्ध रह गया।
बिना समय गँवाए मैं सोनू को लेकर पास के एक होटल में गया। वेटर को खाना लगाने को कहा। जब खाना आया और सोनू ने पहला निवाला लिया, तो उसके चेहरे पर जो संतुष्टि थी, वह शब्दों में बयान नहीं की जा सकती।
खाना खाने के बाद हम दोनों घाट पर जाकर बैठ गए। वहाँ सोनू ने अपनी पूरी कहानी बताई।
वह दरअसल एक अनाथ बच्चा था। कुछ दिन पहले उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। पिता बहुत पहले ही उसे छोड़ चुके थे। माँ के जाने के बाद वह अकेला रह गया और उसे समझ नहीं आया कि कहाँ जाए, क्या करे। बस एक रोटी की तलाश में भटकता रहा।
उसकी कहानी सुनकर मैं उसे एक अनाथ आश्रम में छोड़ आया। मैंने उसे अपना नंबर और पता दिया और कहा,
"अगर कभी किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो मुझे बताना।"
लेकिन उसे छोड़ने का मन नहीं कर रहा था। मैं हॉस्टल में रहता था, इसलिए उसे अपने पास नहीं रख सकता था। रात भर मैं ठीक से सो नहीं पाया। बार-बार सोनू का चेहरा आँखों के सामने आता रहा।
सुबह होते ही मैंने तय किया कि सोनू को देखने जाऊँगा। रास्ते में यही सोचता रहा कि कुछ दिन उसे अपने पास ही रख लूँगा और वार्डन से बात कर लूँगा।
मैं खुश था कि अब सोनू मेरे साथ रहेगा।
लेकिन यह खुशी कुछ ही देर में गम में बदल गई।
जब आश्रम पहुँचा, तो पता चला कि सोनू की देर रात मृत्यु हो गई। दरअसल, जो जूठा खाना वह खा रहा था, उससे उसे गंभीर संक्रमण हो गया था। और उसी ने उसकी जान ले ली।
मैं फूट-फूटकर रो पड़ा। सोनू की अंतिम यात्रा में मैं उसके साथ था, लेकिन वह मुझे हमेशा के लिए छोड़ गया।
इस घटना को दस साल हो चुके हैं। लेकिन आज भी जब कोई खाना बर्बाद करता है, मेरा खून खौल उठता है। मेरी आँखों के सामने सोनू का चेहरा आ जाता है—वही मासूम चेहरा, जो बस एक रोटी चाहता था।
आज भी मैं लोगों से यही कहता हूँ:
"अन्न लो उतना थाली में, जो व्यर्थ न जाए नाली में।"
क्योंकि किसी के लिए वो एक रोटी...
पूरे जीवन की आखिरी उम्मीद हो सकती है।
