हॉस्टल का बंद कमरा-अंतिम भाग
हॉस्टल का बंद कमरा-अंतिम भाग
कॉलेज में नया सत्र शुरू हुआ। नए छात्र आए, पुराने चले गए। लेकिन हॉस्टल की एक कहानी अब अफवाह नहीं रही—वह एक चेतावनी थी, एक रहस्य, और एक सवाल।
हर साल, जब नए छात्र हॉस्टल में आते, उन्हें एक कमरे के बारे में बताया जाता—एक बंद दरवाज़ा, एक पुरानी डायरी, और दो छात्र जो कभी लौटे नहीं। कुछ इसे मज़ाक समझते, कुछ डर जाते, और कुछ... बस चुप हो जाते।
लेकिन इस साल, एक नया छात्र आया—नाम था आरव। शांत स्वभाव, गहरी आँखें, और किताबों से गहरा लगाव। उसने पहली ही रात उस कमरे की कहानी सुनी। बाकी छात्र सहम गए, लेकिन आरव की आँखों में डर नहीं था—वहाँ जिज्ञासा थी।
आरव ने उस कहानी को अफवाह मानने से इनकार कर दिया। उसने गार्ड से बात की, जो अब बूढ़ा हो चला था और ज़्यादा कुछ नहीं बोलता था। लेकिन उसकी आँखों में कुछ था—जैसे कोई बोझ, कोई अधूरी बात।
आरव ने लाइब्रेरी में पुराने रिकॉर्ड खंगाले। उसे एक पुराना फाइल मिला—जिसमें दो नाम थे: राज और सतीश। और एक तीसरा नाम, अधूरा लिखा हुआ—"वो लड़का"।
वह लड़का, जिसकी डायरी मिली थी—वह अकेला था। उसे तंग किया गया, डराया गया, और अंत में वह गायब हो गया। उसकी चीखें किसी ने नहीं सुनीं। उसकी कहानी किसी ने नहीं पढ़ी।
आरव ने डायरी की प्रतिलिपि बनाई। उसने उसे पढ़ा, समझा, और महसूस किया। हर पन्ना जैसे किसी की आत्मा की पुकार थी।
एक रात, आरव ने हॉस्टल के छात्रों को बुलाया। उसने सबको एक मोमबत्ती दी, और उस बंद कमरे के सामने खड़ा किया।
"हम डरने नहीं आए हैं," आरव ने कहा। "हम सुनने आए हैं।"
उसने डायरी के पन्ने पढ़े। हर शब्द जैसे हवा में गूंजता रहा। कोई फुसफुसाहट नहीं थी, कोई परछाई नहीं। बस एक शांति थी—जैसे किसी ने माफ कर दिया हो।
अगली सुबह, गार्ड ने देखा कि उस कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला था। अंदर कोई नहीं था। लेकिन मेज़ पर डायरी बंद थी। दीवारें साफ़ थीं। और एक नया संदेश लिखा था:
"धन्यवाद। अब मैं अकेला नहीं हूँ।"
कॉलेज प्रशासन ने उस कमरे को फिर से सील नहीं किया। उन्होंने उसे एक नया नाम दिया—"कहानी कक्ष"।
अब हर साल, नए छात्र वहाँ जाते हैं। वे अपनी कहानियाँ लिखते हैं, दूसरों की सुनते हैं। डर अब भी है, लेकिन वह डर अब अकेलापन नहीं है—वह समझ है, संवेदना है।
राज और सतीश की तस्वीरें उस कमरे में लगी हैं। नीचे लिखा है:
"वे जो सुनने आए थे। वे जो खो गए, लेकिन हमें रास्ता दिखा गए।"
अब वह कमरा सिर्फ़ एक जगह नहीं है। वह एक वादा है—कि कोई भी कहानी अनसुनी नहीं रहेगी। कि हर आवाज़ सुनी जाएगी। और कि जो दरवाज़ा एक बार खुला था… वह अब बंद नहीं होगा।
लेकिन आरव की जिज्ञासा अभी पूरी नहीं हुई थी। एक दिन, उसने डायरी के अंतिम पन्ने को ध्यान से देखा। वह अधूरा था—जैसे किसी ने लिखते-लिखते छोड़ दिया हो।
उस पन्ने पर बस इतना लिखा था:
"अगर कोई मेरी कहानी पूरी कर दे, तो शायद मैं मुक्त हो जाऊँ..."
आरव ने तय कर लिया कि वह उस कमरे की सच्चाई को समझेगा। लेकिन वह अकेला नहीं गया। उसने दो और छात्रों को साथ लिया—अन्वी और कबीर। तीनों ने मिलकर डायरी के पन्नों को पढ़ा, हर शब्द को महसूस किया।
उस रात, बिजली चली गई। हॉस्टल अंधेरे में डूब गया। आरव, अन्वी और कबीर उस कमरे के पास पहुँचे। हवा में एक अजीब सी गंध थी—जैसे जली हुई किताबों और लोहे की।
दरवाज़ा अब भी बंद था, लेकिन जैसे साँसें ले रहा हो।
आरव ने धीरे से कहा, "हम डरने नहीं आए हैं। हम सुनने आए हैं।"
तभी दरवाज़ा खुद-ब-खुद चरमराया… और खुल गया।
कमरे के अंदर घुप अंधेरा था। लेकिन इस बार, दीवारों पर खरोंच नहीं थे—बल्कि शब्द थे। जैसे किसी ने अपनी कहानी दीवारों पर उकेरी हो।
"मैं अकेला था। मुझे कोई नहीं समझता था। लेकिन अब… कोई आया है।"
अचानक, कमरे का तापमान गिरने लगा। अन्वी ने काँपते हुए कहा, "क्या ये वही है?"
एक धीमी सी फुसफुसाहट आई—जैसे कोई बहुत दूर से बोल रहा हो।
"तुमने मेरी कहानी सुनी… क्या तुम उसे पूरा करोगे?"
आरव ने डायरी खोली, और अधूरा पन्ना देखा। उसने कलम उठाई, और लिखना शुरू किया:
"कोई अकेला नहीं होता, अगर कोई सुनने वाला हो।"
जैसे ही उसने अंतिम शब्द लिखा, कमरे की हवा बदल गई। दीवारों पर लिखे शब्द धीरे-धीरे मिटने लगे। एक हल्की रोशनी कमरे में फैल गई—न गर्म, न ठंडी, बस शांत।
दरवाज़ा धीरे-धीरे बंद हो गया। लेकिन इस बार, वह डरावना नहीं था। वह जैसे किसी ने धन्यवाद कहकर बंद किया हो।
अगली सुबह, हॉस्टल में एक नई हलचल थी। कहानी कक्ष के बाहर एक नया नोट चिपका मिला—किसी ने हाथ से लिखा था:
"जो कहानी सुनते हैं, वे लौट सकते हैं।
जो सवाल पूछते हैं, वे खो जाते हैं।
जो दरवाज़ा खोलते हैं… वे उसे बंद नहीं करते।
लेकिन जो कहानी पूरी करते हैं… वे सबको मुक्त कर देते हैं।"
कॉलेज प्रशासन ने उस नोट को नहीं हटाया। उन्होंने उसे फ्रेम करवा कर कहानी कक्ष के अंदर लगा दिया।
अब वह कमरा एक परंपरा बन गया है। हर साल, छात्र वहाँ जाते हैं—कुछ डर के साथ, कुछ उम्मीद के साथ। वे अपनी कहानियाँ लिखते हैं, दूसरों की सुनते हैं। और कभी-कभी, खिड़की से दो चेहरे झाँकते हैं—राज और सतीश।
लेकिन उनकी आँखों में अब डर नहीं है। वहाँ एक दहकता हुआ उजाला है।
वे मुस्कुरा रहे हैं।
और दीवार पर एक नया संदेश उभरता है:
"अब अगला कौन सुनेगा?"

