हॉस्टल का बंद कमरा-1
हॉस्टल का बंद कमरा-1
बात उन दिनों की है जब सतीश और राज ने कॉलेज में दाख़िला लिया था। दोनों अलग-अलग शहरों से आए थे, लेकिन कॉलेज का माहौल ही कुछ ऐसा था कि हर कोई एक-दूसरे से जल्दी घुल-मिल जाता। संयोग से उन्हें एक ही हॉस्टल में, एक ही कमरा मिला। दोनों बेहद खुश थे।
हॉस्टल में पहुँचते ही उनकी दोस्ती और भी छात्रों से हो गई। धीरे-धीरे सब साथ पढ़ने, खाने और रहने लगे। सतीश और राज भी खुश थे, क्योंकि हॉस्टल के ज़्यादातर छात्र पहली बार घर से दूर रह रहे थे।
पहले सेमेस्टर की परीक्षा के बाद लगभग सभी छात्र छुट्टियों में घर लौटने लगे। लेकिन सतीश और राज साल में सिर्फ एक बार ही घर जा सकते थे। हॉस्टल छोटा था—सिर्फ 50 कमरे। पर उनमें से एक कमरा ऐसा था जो हमेशा बंद रहता था। किसी को उसमें रहने की अनुमति नहीं थी।
यह हॉस्टल केवल प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए था। दूसरे और तीसरे वर्ष के छात्र कॉलेज के पास वाले दूसरे हॉस्टल में शिफ्ट हो जाते थे। परीक्षा के बाद पूरा हॉस्टल खाली हो गया। अब सिर्फ सतीश और राज ही वहाँ रह गए थे।
रात को गार्ड मुख्य द्वार पर आया और पूछा, "बेटा, तुम लोग छुट्टियों में घर नहीं गए?"
सतीश ने जवाब दिया, "अंकल, हमारा घर बहुत दूर है। हम साल में सिर्फ एक बार ही जा पाते हैं।"
गार्ड ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, "बेटा, रात में डरोगे तो नहीं?"
राज ज़ोर-ज़ोर से हँस पड़ा, "अंकल जी, कहीं आप ही न डर जाएँ! मुझे तो किसी चीज़ से डर नहीं लगता।"
गार्ड कई वर्षों से इस हॉस्टल में काम कर रहे थे। उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, "बेटा, तुम लोग बहादुर हो, लेकिन फिर भी अगर डर लगे तो आवाज़ देना। और उस बंद कमरे की तरफ़ भूलकर भी मत जाना।"
राज ने बात को हल्के में लिया, लेकिन सतीश के मन में कुछ खटक गया। वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, "अंकल, उस बंद कमरे में क्या है?"
गार्ड ने टालते हुए कहा, "कुछ नहीं बेटा, बस यूँ ही बंद है।"
लेकिन सतीश समझ चुका था—कुछ तो ज़रूर है।
उसने राज से कहा, "चलो, आज रात गार्ड अंकल के पास ही बैठते हैं।"
राज ने पूछा, "क्यों? वहाँ क्या करेंगे?"
सतीश ने रहस्यमय अंदाज़ में कहा, "पहले चलो, फिर बताता हूँ।"
दोनों ने अपने कमरे में ताला लगाया और गार्ड के पास जाकर कुर्सी खींचकर बैठ गए। सतीश ने कहा, "अंकल, एक विनती है। कृपया हमें उस बंद कमरे की कहानी सुनाइए।"
गार्ड ने पहले मना किया, लेकिन फिर धीरे-धीरे बोलना शुरू किया—"हॉस्टल का बंद कमरा।"
सतीश और राज ध्यान से सुनने लगे।
"बहुत साल पहले की बात है," गार्ड ने कहना शुरू किया, "जब हॉस्टल में चौथे बैच के छात्र आए थे। उन्हीं में एक सीधा-सादा लड़का भी था—शांत, पढ़ाकू, और बड़ा अधिकारी बनने का सपना लिए हुए। लेकिन कुछ शरारती लड़कों को उसका पढ़ना पसंद नहीं था। वे उसे रोज़ परेशान करते।"
"एक रात उन्होंने उसे डराने की योजना बनाई। जब वह पढ़ रहा था, तो वे उसके कमरे का दरवाज़ा पीटने लगे। लेकिन वह समझ गया कि ये वही लड़के हैं, इसलिए दरवाज़ा नहीं खोला।"
"काफी देर तक शोर मचाने के बाद सब शांत हो गया। वह बाहर पानी लेने गया। इसी बीच वे लड़के उसके कमरे में घुसकर छिप गए।"
"वह लौटा, और फिर पढ़ने बैठ गया। तभी कमरे के अंदर से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगीं। वह घबरा गया। उसे लगा शायद नींद की वजह से भ्रम हो रहा है। उसने किताब बंद की और जैसे ही मुड़ा, एक लड़के ने ज़ोर से चिल्लाकर उसे डरा दिया।"
"वह डर के मारे गिर पड़ा और बेहोश हो गया। बाकी लड़के हँसते हुए बाहर निकल गए। उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया और सोचने लगे कि वह थोड़ी देर में उठ जाएगा।"
"लेकिन सुबह जब दरवाज़ा खोला गया… वह मर चुका था।"
राज और सतीश की साँसें थम गईं।
"पुलिस आई, पूछताछ हुई, लेकिन कुछ साबित नहीं हुआ। डॉक्टर ने कहा—दिल का दौरा पड़ा था। तब से वह कमरा बंद है।"
"आज भी जब हॉस्टल में कम छात्र होते हैं, तो आधी रात के बाद उस कमरे से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ें आती हैं…"
कहानी खत्म हुई। राज, जो अभी तक मज़ाक कर रहा था, अब एकदम चुप था। उसके चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था।
सतीश ने गार्ड की तरफ देखा। "अंकल, ये कहानी थी… या सच?"
गार्ड मुस्कराया, "बेटा, कहानी ही समझो।"
लेकिन सतीश ने गार्ड की आँखों में कुछ और देखा—एक ऐसा सच, जिसे शब्दों में नहीं कहा गया था।

