जब सब थम सा गया (आठवाँ दिन)
जब सब थम सा गया (आठवाँ दिन)


लॉक डाउन आठवाँ दिन
1.04.2020
प्रिय डायरी,
सुबह सुबह जब नींद खुली तो मन में ये विचार आया की आज कुछ ऐसा करा जाये,जिससे पूरा दिन व्यस्त रहे और कुछ अच्छा काम भी हो जाये। इसी उमंग के साथ उठकर मैं जल्दी जल्दी सारे काम करने लगा। इतने मैं मेरी छोटी बहन उदित ने कहा,"भैया आपसे कोई मिलने आया हैं",मैं सोचने लगा इस समय कौन आया हैं? मैं नीचे जाने ही वाला था,तो फिर मेरी बहन ने कहा,"भैया जल्दी आईये। "
मैंने कहा,"आ रहा हूँ" और जल्दी से मैं नीचे चला गया। मुझे देख कर सब जोर जोर से हँसने लगे। मैंने पूछा कौन आया हैं ?सब एक साथ बोले "अप्रैल फूल"और मैं भी शर्मा कर हँसने लग। दरहसल आज अप्रैल माह का पहला दिन था,लोग अक्सर इस दिन पर सबको मुर्ख बनाते हैं। उसके बाद मैंने माँ दुर्गा की आराधना की और सबने पूजा पाठ किया। नवरात्रि का आज आठवाँ दिन था,वैसे तो आज कन्या भोजन कराया जाता था । लेकिन कोरोना संक्रमन के चलते इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता था । फिर भी हमारे घर में मेरी दोनों बहनें,उदित और प्रियांशी के साथ साथ मेरी भांजी नायरा और भतीजी आरोही ,कुल मिलाकर 4 कन्यायें थी। सबने इन्ही लोगो को भोजन करा के आशीर्वाद लिया।
इस पूरे कार्यक्रम में 11 बज गए। फिर मैं ऊपर आपने कमरे में आया। मोबाइल उठा कर के देखा तो 4 मिस कॉल थे,जो मेरी जीवन संगिनी जी का था। मैंने तुरंत फ़ोन लगाया और पूछा क्या बात हैं। तो उन्होंने कहा,"आज कन्यायों को भोजन करवाना था,कैसे होगा?"मैंने कहा,"जितनी कन्यायें अपने घर में हैं उन्ही को करवा दिया। " वो बोली,"हाँ इस समय यही एकमात्र उपाय था। "
इसके बाद मैंने सोचा की आज सुबह कुछ अच्छा करने का सोच रहा था,तुरंत मेरे मन में विचार आया की क्यों न मैं चित्र बनाऊ। बिना समय गवाये मैंने झट से चित्रकला की कॉपी निकली और कुछ ब्रश और रंग निकाले। फिर क्या शुरू हो गया मैं चित्र बनाने। पहले तो मैंने सोचा क्या बनाऊ?ये देखने के लिए मैं मोबाइल देखने लगा कुछ समझ न आने पर मैंने फ़ोन की गैलरी से एक चित्र देखा जो बहुत ही सुंदर और जीवितं लग रही थी। चित्र और कोई विशेष चीज़ या विषय पर नहीं था,कोरोना संक्रमण पर ही था। चित्र मैं कोरोना वायरस के दो हिस्से दिखाये गए थे। एक हिस्से में किस तरह मानव बर्बाद हो रहे थे,और दूसरी तरफ जानवर और जीव जंतु प्रकृति में सुकून से अपना जीवन जी रहे थे।
3 बजे के लगभग मैंने अपनी पूरी पेंटिंग तैयार कर ली और सब चीज़ समेट के यथा स्थान पर रख दिया। फिर मैं थोड़ी देर के लिए मोबाइल देखने लगा। कोरोना संक्रमित व्यक्तितियो की संख्या बढ़ रही थी। जो चिंताजनक था। लोगो को समझने के बावजूद भी लोग इस बात को नहीं समझ रहे थे की
ये कितना खातरनाक हैं। मैं ये सब देख कर बहुत ही निरास होकर थोड़ी देर के लिए सो गया।
5 बजे जब मेरी आँख खुली तो मैं तुरंत ही उठ कर बैठ गया। मुझे लगा जैसे सुबह हो गयी,फिर जब मोबाइल देखा तो मैं मुस्कुराने लगा और सोचने लगा की मेरा दिमाग अब काम करना बंद कर रहा हैं। मैं उठ कर नीचे आ गया और सबके साथ बैठ कर बात करने लगा। सब कोई बच्चो के साथ खेल रहे थे,शाम को सबने पूजा आराधना करके रात के पूजे की तैयारी करने लगे।
हर वर्ष हमारे घर में रामनवमी की पूजा की जाती हैं जिसमे अष्टमी की रात लगभग 12 बजे से भोजन बनाकर पूजा की जाती हैं। मैं आज तक इस पूजा को समझ नहीं पाया। पूजा से पूर्व पूरे घर में साफ सफाई की जाती हैं ,8 बजे के लगभग हम सबने फलहार करके अपनी वार्तालाप दादीजी के कमरे में चालू की,बात करते करते 9:30 हो गया। वैसे हमारी बातो का विषय हमेशा बदलता रहता हैं,लेकिन इस समय सिर्फ लॉक डाउन और कोरोना संक्रमण।
आज पहली तारीख थी और नया माह प्रारम्भ हो गया हैं। वैसे तो आज से स्कूलों का नया सत्र प्रारम्भ होता हैं,परंतु कोरोना संक्रमण के चलते इस बार सब स्थिर पड़ा हुआ हैं। वैसे हमारे प्राचार्य महोदय ने इस कमी को दूर करने के लिए तकनीक का अच्छा इस्तेमाल हम सबको बताया और व्हाट्सएप्प के जरिये सभी बच्चो तक नए सत्र के लिए प्रतिदिन शिक्षकों द्वारा वीडियो बनाकर बच्चो को उपलब्ध कराया जा रहा हैं। आज उसका भी पहला दिन था । सभी शिक्षकों ने बच्चो के पढाई को ध्यान देते हुए अपना वीडियो बनाकर उपलब्ध कराया। जो की बहुत हद तक उनकी मदद करेगा। इस कार्य के लिए प्रेरणा हमारे प्राचार्य महोदय ने दिया।
10 बजे के लगभग मेरे मित्र एवं भाई राकेश जी का पंजाब से फ़ोन आया। वे अपने आसपास का समाचार दे रहे थे और मैं अपने आसपास का। दरहसल इस गर्मी की छुट्टियों में हम दोनों ने वाराणसी जहा से हम लोग ने अपनी पढाई पूरी की हैं , वही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रावास में अपने पुराने मित्रों और गुरुजनो से मिलने का कार्यक्रम बनाया था। लेकिन कोरोना के चलते सब बेकार हो गया। राकेश जी ने कहा,"कोई बात नहीं हैं भाई सब जल्दी ठीक होगा और अपना कार्यक्रम हम जरूर पूरा करेंगे। " हम दोनों ने एक दूसरे को संतोष दिलाते हुए बात समाप्त किया।
11 बजे मैं एक पुस्तक उठा कर पड़ने के लिये कुर्सी पर बैठ गया,और पुस्तक पढ़ने में इतना लीन हो गया कि 1 बज गया। मैंने उठ कर देखा की एक बज गया हैं। नीचे आवाज आ रही थी तो मैं जाकर देखने लगा तो माँ और चाचीमाँ पूजा कर रही थी। मैं पानी पीने लगा और ऊपर कमरे में आकर बिस्तर पर लेटा और कहानी जिसकी आदत बन गयी हैं लिखकर सो गया।
इस तरह लॉक डाउन का आठवाँ दिन भी समाप्त हो गया। लेकिन कहानी अभी अगले भाग में जारी हैं..........