इत्ती सी बात
इत्ती सी बात
पता नहीं आज मुझे वह थोड़ी अपसेट लग रही थी। हम वर्किंग वुमन पब्लिक डीलिंग करते करते न जाने क्यों छोटी से छोटी बात को भी ऑब्ज़र्व कर लेती है....
मैं चाह कर भी उसे पूछ न सकी। बीइंग सॉफिस्टिकेटेड हम एक दूसरे को 'स्पेस' देते है। यह बड़े फायदे का सौदा होता है।इससे सारी चीजें 'मैनेज' हो जाती है। ना कोई बात होती है और ना कोई बात बढ़ती भी है....
इसी बात को ध्यान रखते हुए मै अपने काम में जुट गयी...आजकल ऑफिस का काम भी तो बढ़ गया है...शाम को चाय लेते हुए वह थोड़ी रिलैक्स लगी। हम सब लोग लाइट मूड में थे...चाय का सिप लेकर मैंने युहीं कहा, "मॉर्निंग में तुम कुछ परेशान लग रही थी। क्या हुआ था?" वह हँसते हुए कहने लगी, "तुमने शादी नहीं करके अच्छा किया।" मैंने भी उसी मूड में कहा, "ये अच्छा है तुम मैरिड लोगों का...खुद शादी करके मुझे शादी न करने के फायदें गिनाते रहते हो।" वह थोड़ी हँसी...वही फीकी सी हँसी...(फिर से मेरा पब्लिक डीलिंग वाला ऑब्जरवेशन...)
अमूमन वह जोर से हँसती है...खुल कर हँसती है...बिस्कुट का टुकड़ा तोड़ते हुए वह कहने लगी, "क्या हम औरतें अपनी अलग सोच नहीं रख सकती? क्या हमारा अपना कोई थॉट प्रोसेस नही हो सकता?" मैंने कहा, "क्यों नहीं, हम औरतों का भी थॉट प्रोसेस होता है। चाहे कोई भी हो, हाउस वाइफ या वर्किंग वीमेन !! वर्किंग वीमेन तो फायनैंशियली इंडिपेंडेन्ट भी होती है...और तो और उसमे एक अलग लेवल का कॉन्फिडेंस भी होता है....अपने थॉट प्रोसेस से वह काम भी करती है।" वह जोर जोर से हँसने लगी.."ये जो तुम कह रही हो न, यह एक 'सिंगल वुमन' कह रही है....... हक़ीक़त में क्या ऐसा होता है? बिलकुल नहीं...तुम नहीं जानती हो की कुछ पति कितने ज्यादा डॉमिनेटिंग होते है...हर बात उनके ही एंगल से करने की उनकी ज़िद होती है...अगर मैंने अपने तरीके से कभी कोई काम किया तो उनकी भवें तन जाती है..बढ़ती एज के बच्चों के प्रेजेंस में भी...इवन घर में मेड के होते हुए भी।" मैं फिर कहने लगी, "घर के माहौल को ठीक रखना भी तो औरतों का ही काम माना जाता है।" वह फिर मुझे कहने लगी, "और हम औरतें यह काम करती भी है। हर बार झुक कर और माफ़ी माँग कर...लेकिन कब तक?" मेरे पास इस सवाल का जवाब नही था। मैंने कहा, "चलो, अच्छा हुआ कि मैनें शादी नही की।" हम दोनों ही हँस पड़ी... न जाने क्यों मुझे हम दोनों की हँसी एकदम फ़ीकी सी लगी....आजकल सब तरफ़ देश की आज़ादी के पचहत्तरवे अमृत महोत्सव का शोर है। न जाने कितने सारे अख़बार और टीवी औरतों की आज़ादी और उनके आज़ाद ख़याल अंदाज़ पर बातें करते जा रहे है....
और आप तो जानते ही है कि अख़बारों और टीवी की दुनिया हक़ीक़त की दुनिया से कोसो दूर होती है....