Kunda Shamkuwar

Abstract Inspirational Others

4.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Inspirational Others

अ न्यू बिगिनिंग...

अ न्यू बिगिनिंग...

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इसी महीने उनका रिटायरमेंट था। इतने साल से एक ही ऑफिस में काम करते हुए उनके साथ एक बॉण्ड सा डेवलप हो गया था।

फेयरवेल प्रोग्राम तो एकदम फॉर्मल होता है… ऐसे प्रोग्राम में मन की बातें कहाँ होती है? इसलिए आज सारे काम साइड रखते हुए मैंने उनसे मिलने का मन बनाया और चल पड़ी उनके केबिन की तरफ़...

वह अपने केबिन में बैठ कर पुराने काग़ज़ फ़ाड़ रही थी। मैंने कहा, "शायद मैं ग़लत वक़्त पर आयी हुँ...." हमेशा ही मुस्कुराने वाले अपने अन्दाज़ से उन्होंने कहा, "अरे, नहीं, यह काम तो होते रहेंगे…आप बहुत दिनों बाद आयी है…चाय मँगवाती हुँ…चाय भी होंगी...बातें भी होगी…" इंटरकॉम पर चाय का ऑर्डर देकर हम बातें करने लगे। मैंने कहा, "फाड़ने से पहले आपको हर काग़ज़ को ध्यान से देखना होगा… " "हाँ… सही कह रही है आप। ये सारे काम मेरे रिसर्च के है। उस वक़्त डेटा कलेक्ट करना बेहद डिफिकल्ट हुआ करता था। तब स्कूल में साइंस लैब नही के बराबर होती थी। बीइंग साइंस फैकल्टी मुझे वह सब अखरता था। फिर धीरे धीरे हायर ऑफिसर्स को कनविंस करते हुए और मेरे कुछ एफर्ट्स से उस एरिया के स्कूल्स में लैब बन गयी।" "वेरी गुड..फिर पोस्ट रिटायरमेंट प्लान क्या है आपका?" "साइंस एक्सपेरिमेंट पर कुछ काम करने का सोच रही हुँ...देखते है क्या कर पाती हूँ...इतना काम किया है इस फील्ड में तो नैचुरली आगे भी लिखने पढ़ने वाला ही काम करूँगी…" बातों के दरमियान वह काग़ज़ भी फाड़ रही थी..अचानक मेरे फ़ोन की घंटी बजी..कोई अर्जेंट काम आया था। ओके..फिर मिलते है कहते हुए मैं वापस अपने केबिन में आ गयी। 

रात को मुझे उनका वह काग़ज़ फाड़ने वाला सीन याद आ गया। मेरे जहन में वे सारी बातें याद आ गयी जब कॉलेज ख़त्म होने के बाद मैं हॉस्टल खाली कर रही थी। तब मैंने भी तो इसी तरह से कागज़ फाड़े थे। आज अर्सा हो गया है उन सब बातों के लिए...वह हॉस्टल की बेफ़िक्री वाली जिंदगी..सुनहरे भविष्य के ख़्वाब दिखाती कॉलेज की वह जिंदगी...सब जैसे किसी रील की तरह मेरी आँखों के आगे चलने लगे।

इसी महीने मैडम फ्री हो जाएगी। पुराने कागज़ फाड़कर अब कुछ नए कागज़ बनेंगे...एक बार फिर से नयी शुरुआत होगी... 

अक्सर ऐसे ही कागज़ फाड़ते हुए हम जिंदगी की नयी शुरुआत ही करते रहते है...नहीं ?


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