पानी पर लिखी इबारत
पानी पर लिखी इबारत
आज कितने दिन के बाद वह शाम याद आयी।
संडे की शाम...
वह दोनो ही पास की झील में गये थे….शहर की इकलौती झील…आज यहाँ झील में कुछ ज्यादा ही भीड़ थी..उस भीड़ से अलग वे दोनों कुछ दूर बैठ गये..छोटे छोटे पत्थर डालकर पानी में बनते उन गोलों को देखना शुरू से ही भाता था। शायद उन गोलों का बनकर दूर जाना और अंत में ख़त्म होना उसे अपनी ज़िंदगी की तरह ही लगता था।
उन दोनों में कुछ बातें हुयी...जिसमे कुछ वादें थे...न भूल जाने के इरादें थे...याद रखने की कसमें थी...
वह पानी मे उँगलियों से उसका नाम बार बार लिख रही थी...लेकिन पानी मे लिखी इबारत भला कितनी देर ठहरती है ? लिखते ही वह इबारत मिट जाती थी...दूसरी लहर के आने तक भी ठहरती नही थी…
आज की इस सुरमयी शाम में अब यहाँ इस झील के किनारे पानी की लहरें बस आ जा रही है...वे वादें, इरादें, कसमें सब कुछ कही खो से गये थे..धर्म और जातियों के फेर में अदल बदल से गए थे...
वह शायद उधर किसी और शहर में मसरूफ़ रहा होगा क्योंकि फिर कोई भी राब्ता क़ायम नहीं हो पाया था।मैं यहाँ अपनी गृहस्थी में मशगुल हो गयी हुँ...
ज़िंदगी अमूमन ऐसे ही तो चलती रहती है…
आज न जाने क्यों यह सब ज़हन में ताज़ा हो गया…इस नये शहर में झील नयी थी…पानी भी नया ही था...आज भी वह पानी में वही नाम बार बार लिख रही थी लेकिन पानी का कैरेक्टर कही बदलता है भला? पानी का कैरेक्टर तो वही था…पानी पर लिखे नाम की वह इबारत लिखने के फ़ौरन बाद मिटती जा रही थी…लहर आने से पहले ही वह नाम वाली इबारत मिटती जा रही थी...