हमारी डायरी..कुछ किस्से
हमारी डायरी..कुछ किस्से
नये महीने का नया दिन। प्रकृति से गर्म है कड़क धूप थी और इसमे नंगे पैर निकलना मतलब पैरो को कष्ट देना। दो कदम भी ढंग से नही चल पाते। खैर चलना जिंदगी का ही सफर है। हम भी नये दिन का स्वागत करने के लिए बिस्तर छोड़ अलसा कर उठ पड़े आज। वैसे आज उठने का मन नही था लेकिन फिर भी उठना तो था ही नये दिन का स्वागत बिस्तर पर लेटे लेटे थोड़े ही किया जा सकता है। उठ बैठे हम बेमन से। अब समस्या आ खड़ी हुई सबसे पहले करें क्या। क्योंकि अभी दो दिन पहले ही हम नौकरी के सिलसिले में घर से गुरुग्राम शिफ्ट हुए है। सुबह नौ बजे निकलना होता है हमे। अब बैंकर का कार्य भी इतना आसान थोड़े ही होता है।
समय की पाबंदी पहली सीढ़ी है। तमाम लोगों की दिनचर्या हम बैंकर के समय पाबंदी से ही तो जुड़ी होती है। योग के जरिये आलस भगाया फिर उठकर ब्रेकफास्ट तैयार कर रेडी हो भागे हम सीधे अपनी अपॉइंट ब्रांच.. के लिए। सड़क तक पहुंचे ऑटो का इंतजार करने लगे। ऑटो मिलने में भी दोहरा टाइम लग गया। मन में डर बैठ रहा ऑफिस
का दूसरा दिन न जाने कैसा जायेगा। कहीं देरी हो गयी तो आज तो चने के झाड़ से चढ़ कर फांसी लगाना तय है। सोचते हुए खड़े थे कि अगले पल ही ऑटो सामने आ धमका। बिन देर किये झट से बैठ गये हम उसमे। हमने ऑटो को इफ्को चौक पहुंचाने के लिए कहा और अपना मोबाइल उठा के देखने लगे।
आजकल मोबाइल बिन कुछ नही है। सारी दुनिया इस छोटे से हैंडसेट में सिमट आई। रिलेटिव के नम्बर से लेकर बर्थडे तारीख तक सब याद दिलाता है ये हैंडसेट। हम भी यूँही गैलरी में झांक लिए कुछ खास नही था सो जल्द ही बन्द कर रख दिये बैग की जेब में। कुछ ही देर में हम हमारी मंजिल के सामने खड़े थे। घड़ी पर नजर मारी सुबह के दस बजने ही वाले थे और हम समय पर एंट्री ले लिए। अंदर कदम रखते ही जग जीतने जैसा एहसास हुआ। हम अपने केविन में जाकर बैठ गये और कार्य समझने लगे। सुबह से शाम इसी में निकल गयी। कुल मिला कर आज का दिन हमारे लिए मिला जुला रहा। ठीक ठाक सा। एक सबक दे गया हमें थोड़ी और कोशिश करनी चाहिए समय से पहले पहुंचने की।