इश्क़ ....दुआ या सजा!
इश्क़ ....दुआ या सजा!
शमा हूं मै मुझे बुझने का डर नहीं है।
लेकिन शमा के परवाने तुम्हे बचाने के लिए मुझे बुझना भी मंजूर है।
ये दो लाइन प्रेम में डूबी हुई एक लड़की की है जो
नदी के किनारे प्रकृति की वादियों में अपने प्रेमी के साथ हाथ से हाथ पकड़े हुए खड़ी है।।दोनों की आंखे आंसुओ से सराबोर है और होंठ निशब्द!!पूर्णत मौन। आंखो में पुनः मिलन का इंतजार है लेकिन साथ ही विरह की घड़ी आ जाने के कारण असीम वेदनाओ से भरी हुई है जो कुछ देर पहले घटी घटनाओं को याद कर बरस रही है। हृदय उस पाक प्रेम अगन में जल रहा है जिसे समाज के ठेकेदारों ने दागदार बना दिया है..!लड़की के सीने को गोलियों से छलनी कर दिया गया है ....! क्यूंकि उसनेगलती की है।एक कोशिश की है लीक से अलग हटकर चलने की।इस पुरुष प्रधान समाज में अपने मन से किसी को चुनने का गुनाह किया है उसने।और गुनाह हुआ है रोहित से...! जो उस लड़की से बेइंतहा इश्क की वजह से उसे खोने के डर से गले लगाए बैठा रहा....! सिर्फ इसीलिए कि उसकी प्रेमिका ठीक हो जाए....!
कुछ घंटों पहले ---;
एक कोचिंग सेंटर से क्लास छूट चुकी है।बहुत से छात्र छात्राएं अपने अपने घर के लिए निकल रहे है।इन्हीं छात्र छात्राओं में से एक है रानी और रोहित।
दोनों अपनी अपनी साइकिल पर चलते चले आ रहे है कि तभी रोहित की नजर सामने से आ रहे घने काले बादलों पर पड़ी।
रोहित :: रानी!! आज मौसम बहुत खराब है।देखो न आसमान में दूर तलक फैली ये काली घटाएं आज कुछ ज्यादा ही शोर कर रही है।तू थोड़ा कोशिश कर और सायकिल तेज चला तो हम समय से घर पहुंच जाएंगे।नहीं तो एक बार बारिश शुरू हो गई फिर तो घर पहुंचना ही मुश्किल हो जाएगा।
मै जानती हूं रोहित।इसीलिए पहले से ही कोशिश कर रही हूं।लेकिन इससे ज्यादा तेज मुझसे नहीं चलेगी। अगर चलाई भी तो गश खाकर गिर पड़ूंगी।रानी ने कहा।
रोहित आगे कुछ कहता तब तक बारिश अपना खेल शुरू कर देती है।झमाझम बारिश होने लगती है और देखते ही देखते रानी और रोहित दोनों ही इस बारिश में भीग जाते हैं।बारिश के साथ साथ ठंडी हवाएं भी चल रही है।
रानी :: रोहित अब मुझसे साईकिल नहीं चलाई जाएगी।तुम्हे तो पता ही है कि मुझे बारिश के पानी से कितनी जल्दी सर्दी होती है।दो मिनट भी नहीं रुक सकती मै इन बूंदों में। उस पर ये हवा......ये। छपाक...! बारिश के पानी से भरी सड़क पर रानी सायकिल से गिर पड़ती है।वो बेहोश हो जाती है।
रानी ...! रोहित साईकिल पर बैठे बैठे ही चीख पड़ता है।रानी जो पानी में मूर्छित अवस्था में पड़ी है उसे देख रोहित घबरा जाता है।वो साईकिल से उतर उसे स्टैंड पर खड़ी करता है और रानी के पास जाता है।रोहित रानी को उठा लेता है और सड़क ले दोनों ओर देखता है।लेकिन दूर दूर तक उसे कोई घर नहीं दिखता है।
रानी! तुम मुझे सुन रही हो न।सब ठीक हो जाएगा ये बारिश कुछ ही देर के लिए तो आती है।रानी! मेरी बात तुम सुन रही हो न।।
लेकिन रानी कुछ नहीं कहती।रोहित को जब कोई रास्ता समझ नहीं आता तो वो वहीं पास ही खड़े बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे लेकर जाता है।जहां पानी की बूंदे उन तक आसानी से नहीं पहुंचती है।
रोहित रानी को वहीं बरगद के पेड़ के पास साफ़ जगह में लेटा देता है।वो कभी उसके हाथ तो कभी पैर दोनों को बारी बारी से रगड़ने लगता है।लेकिन जब जब तक शरीर पर पहने हुए वस्त्र ही गीले हो सर्दी कैसे जाएगी।रोहित बहुत कोशिश करता है रानी को मूर्छा से उठाने की लेकिन कामयाब नहीं हो पाता है।रानी को देख उसका कलेजा मुंह को आ जाता है।जब कुछ नहीं सूझता तो रानी को उठा अपने गले से लगा लेता है।जब तक बारिश बंद नहीं हो जाती वो वैसे ही गले से लगाए ही बैठा रहता है।
रानी उठ जाओ।बहुत देर हो गई है।अब तो तुम्हारी ये चुप्पी मुझे ड
रा रही है रानी प्लीज़ उठ जाओ।रोहित धीरे धीरे रानी से कहता है।उसकी आवाज में दर्द और रानी के लिए चिंता दोनों होती है।
बाली उमर का प्रेम कहां प्रैक्टिकल होता है।वो तो बस दिल से भावनाओ से जुड़ा होता है।उसे कहां सही गलत का पता होता है।उस समय तो बस ये मायने रखता है कि जैसे भी हो बस मेरा चाहने वाला ठीक हो। बाली उमर के इश्क में ठहराव और समझदारी कहां होती है।
यही रोहित के साथ हो रहा था रानी को ऐसे देख धीरता कहां से धारण करता।उसे कहां पता था कि सर्दी से बेहोश होने पर आग का भी इंतजाम किया जाता है।कहां समझ होती है इतनी कि इस समय रोने की जगह समझ दारी से काम ले रानी को घर ले जाए।या ऐसी जगह ले जाए जहां सर पर पक्की छत हो।कहां समझता था रोहित कि किताबो में जरूरतमंद की मदद करने का पढ़ाया जाने वाला पाठ और वास्तविकता में मदद करने के पैमाने दोनों अलग होते है।
अब बरगद का पेड़ किसी मकान की पक्की छत थोड़े ही है जो बारिश के पानी को नीचे नहीं आने देना।उसकी रानी को भीगने से बचा लेगा।
रानी को गले से लगाए हुए क्षणों में रोहित और रानी दोनों को ही बारिश में सड़क पर ड्राइव करते हुए कुछ लोग देख लेते हैं।जो उन दोनों के चरित्र को गिरा हुआ समझ तमतमाते हुए उनके पास आते हैं।
आते ही उन्हें बहुत कुछ सुनाते है।वो लोग आकर रोहित और रानी को घेर चारो ओर खड़े हो जाते है। रोहित उन सब से अनजान बस बंद आंखो से रानी के होश में आने की दुआ कर रहा है।
उनके आने के बाद भी दोनों ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया।रोहित और रानी की इस हरकत को वो अपना अपमान समझ बैठते है।उनमें से एक व्यक्ति तमतमाते हुए आगे आता है और एक झटके से रानी को खिंचता है।झटका लगने के कारण रोहित की आंख खुल जाती है।वो कुछ कहता उससे पहले ही इस समाज के हितैषी उस पर बरस पड़ते है।वहीं उनमें से कुछ एक जो उनके जानकार होते है वो बिना देर किए उनके घर पर फोन कर खबर कर देते हैं।जिससे उनके परिवार के सदस्य तमतमाते हुए आ जाते हैं।बारिश अभी तक बंद नहीं हुई है।
घर के सदस्य आ कर बिन उनकी बात सुने वहीं करते है जो अभी तक समाज के हितैषी कर रहे होते है।रानी के घर वाले भी बेहोश रानी पर बरस पड़ते हैं।जिससे उसकी मूर्छा टूट जाती है।सभी को इस तरह टूटते हुए देख रोहित और रानी आस पास खड़े लोगों को धक्का दे वहां से दौड़ पड़ते है।ये देख बाकी लोग भी उनके पीछे गुस्से में भागते है।भागते हुए रानी और रोहित दोनों नर्मदा तट पर पहुंचते है जहां से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं होता है।
दोनों वहीं रुक कर खड़े हो जाते हैं।एक दूसरे का हाथ थामे हुए होते है।लड़की के परिवार के सदस्य न आव देखते है न ताव बस सीधा साथ लाई हुई गन निकालते है और धड़ाधड़ गोलियां बरसा देते है। रानी जो प्रेम में पूरी तरह डूबी हुई होती है उसे ये देख बस ये ख्याल आता है रोहित को कुछ नहीं होने देना है वो रोहित के आगे आ जाती है और वार खुद झेल जाती है।
गोलियों की आवाज सुन समाज के हितैषी वहां से रफा दफा हो जाते हैं। अब वहां सिर्फ दोनों के परिवार के सदस्य होते है जिनका गुस्सा रानी के शरीर से बहता हुए खून देख ठंडा पड़ जाता है।
वहीं रानी रोहित की तरफ देख मुस्कुराते हुए कहती है।इश्क़ में महबूब के लिए खुद को फना करने का सौभाग्य हर किसी के नसीब में नहीं होता है।
रानी के शब्द थम जाते है और वो चली जाती है अंधेरे की उस दुनिया के अनंत के सफ़र पर..! छोड़ जाती है कुछ ऐसे सवाल जिनका जवाब शायद सबके पास होकर भी किसी के पास नहीं है....!
और रोहित बाली उमर के इस इश्क़ की दुनिया में खुद को भूल जाता है!! सिमट जाती है उसकी दुनिया मानसिक चिकित्सालय के कमरे की चाहर दीवारियों के बीच में....! ढूंढ़ते हुए उन सवालों के जवाब....!
समाप्त....!