अमावस की रात
अमावस की रात
रोहन एक बारह बरस का किशोर था जो अपनी मां शशि और पापा के साथ रहता था। रोहन के कई शौक थे मसलन खेलना कूदना, गाना जो वो थोड़ा बेसुरा गाता था लेकिन शौक था तो था। हां उसे एक शौक और था लोगों से मिलने जुलने का शौक उनसे बाते कर उनके साथ समय बिताने का शौक। हां थोड़ा अजीब था ये शौक लेकिन अब शौक था तो था। वहीं रोहन की मां शशी थोड़ी ज्यादा धार्मिक प्रवृति की महिला थी और आम भारतीय महिलाओं की तरह वो भी कुछ ज्यादा ही सतर्क रहती थी अपने प्रियजन को लेकर।
हाँ वो सतर्क रहती थीं क्योंकि वो एक ऐसी मां थी जिनकी एक आठ साल की बेटी छुटकी कुछ महीनों पहले बीमारी से चल बसी थी। वो सतर्क रहती थी कि कोई भी अनिष्ट एक बार फिर उनके जीवन में दस्तक न दे सके। इसके लिये वो कभी कभी कुछ छोटी छोटी चीजों पर अक्सर ध्यान देती थी। जैसे कि- उनकी सुबह की शुरुआत होती थी घर के बाहर निम्बू मिर्च की लटकन टांगने से। उसके बाद वो नियम से पूरे घर में घूम घूम कर गुगूल और धूप का धुआं दिखाती थी जिससे रोहन और उसके पिता का खांस खांस कर बुरा हाल हो जाता था लेकिन वो शशि से कुछ कह भी नहीं पाते। ऐसा नहीं था कि वो उनसे डरते थे नहीं बल्कि वो ऐसा सिर्फ उनकी खुशी के लिये सहा करते थे। इस कार्य के बाद शुरू होता था नाश्ता का विकट समय। जहाँ वो हर दिन और तिथि के हिसाब से सबको नाश्ता कराती थीं। मसलन सोमवार को सिर्फ श्वेत रंग की खाद्य वस्तुएं मिलेंगी नाश्ते में। मंगलवार को बिन तला भुना भोजन। एकादशी को चावल से सख्त गुरेज....। रोहन बेचारा ये समझ ही नहीं पाता कि उसकी मां इतनी अजीब क्यूं है वो खुद पर खीझता और बेमन से खाना ठूंस ठांस कर निगल लेता। इतना सब होता तब भी रोहन कहीं तक बर्दाश्त कर लेता लेकिन बात बढ़ती थी आगे जब उसके स्कूल जाने का समय होता। रोहन को जल्दी रहती थी स्कूल जाने की वहीं शशी जी को चिंता होती थी तिथि की। क्योंकि रोहन जिस रास्ते से होकर जाता था वो रास्ता एक श्मशान भूमि से होकर गुजरता था। शशि अमावस, पूर्णिमा, एकादशी, चौदस, सप्तमी आदि तिथियों का ध्यान रखती थी विशेष तौर पर कृष्ण पक्ष का जिसमें रोहन को कुछ विशेष एहतियात बरतने पड़ते थे। जैसे कि वो रास्ते में किसी से भी बात करते हुए उसे चलने को नहीं बोल सकता था। उसे अपने साथ एक मैच बॉक्स, छोटा चाकू रखना ही रखना होता था। रास्ते में अगर बिल्ली रास्ता काट जाये तो फिर घर वापस चले आना, किसी ने अगर टोक दिया हो तो बेवजह दो पल रूक कर पानी के घूंट मुंह में भर लेना। उल्लु दिख जाये तो अपने दायें देख कर कुछ भी बुदबुदाना ऐसे ही जाने कितने नियम थे उसे फॉलो करने होते थे। धीरे धीरे रोहन थोड़ा ज्यादा झुंझलाने लगा था। अपनी समस्या किसी को न कह सकने के कारण वो मन ही मन घुटने लगा। छुटकी जो उसकी हमदर्द थी उसके न होने से वो किसी से कुछ कह नहीं पाता था। अब वो अक्सर अपने कमरे की दीवारों को ताकता रहता था। शशी ने रोहन का ये बदला हुआ व्यवहार महसूस कर लिया था उन्होंने कई बार रोहन से इस बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन रोहन या तो बहुत सीमित शब्दों में उत्तर देता था या फिर चुप रहकर बात को टाल लेता था। कोई संगी साथी न होने की वजह से रोहन ने खुद से ही सवाल जवाब करना शुरू कर दिया। कभी कभी तो उसे लगता कि उसकी छुटकी उसके पास आ चुकी है वो उसे सम्बोधित कर पहरों बुदबुदाता रहता। शशी जी को रोहन के स्वास्थ्य की चिंता होने लगी थी। एक दिन जब रोहन यूं ही बैठे बैठे बिगड़ रहा था तब शशी ने थोड़ी कड़ाई से रोहन से उसके बुदबुदाने का कारण पूछा। जो कारण रोहन ने उन्हें बताया उसे जानकर उनके पैरो तले जमीं ही खिसक गयी। रोहन का कहना था कि वो अपनी छुटकी से बात करता है जो उसके पास आकर कभी आइस्क्रीम तो कभी चॉकलेट की मांग करती है। कभी कभी तो वो आकर उसके बाल भी बिखेर देती है। और तो और वो उसकी वर्क बुक को भी छुपा देती है पूछने पर कहती है खुद ढूंढ लो भैया। और जब मैं ढूंढने जाता भी हूँ तो मिलती ही नहीं।
शशी को यकीन ही नहीं हुआ कि रोहन का जवाब ऐसा भी हो सकता है। उन्होंने रोहन से पूछा क्या उसे नहीं मालूम है कि छुटकी गॉड जी के पास है। शशी जी अंदर ही अंदर डर रही थी ये जानकर कि रोहन के साथ कुछ अजीब घट रहा है। उन्होंने रोहन को ऐसा न करने के लिये डपटा और खुद जाकर मिर्च उठा कर ले आई। वो बिन कुछ कहे रोहन के सर से उन्हें उतारने लगी और जाकर जलाकर बाहर फेंक आई। इस घटना से वो बेहद सहम गयी थीं उनके मन में ख्याल आया क्यूं न एक बार जाकर किसी तंत्र मंत्र करने वाले को दिखा देना चाहिये। ये कोई आम बात तो नहीं थी। उन्होंने तुरंत ही इस बारे में रोहन के पिता से बात की। शशी की बात सुन उन्होंने शशी को समझाते हुए कहा, ‘ऐसा कुछ नहीं है बस बच्चा है यूं ही मजाक में कह दिया होगा तुम कुछ ज्यादा ही विचारधाराओं को मानने वाली हो तो बस इसलिये बच्चे ने कह दिया। लेकिन परेशान मन में कहाँ सांत्वना के दो शब्द ठहर पाते हैं। रोहन के पिता ने उन्हें बता
या कि कल शाम को पड़ोस के शर्माजी ने बेटे के जन दिवस पर भोज के लिये आमंत्रित किया है। शशी को याद आया कल अमावस की रात है और किसी का बुरा चाहने वाले लोग अक्सर ऐसे ही अमावस की रातों का इंतजार किया करते हैं। उन्होंने रोहन के जाने को लेकर न कहने की एक नाकामयाब कोशिश की। रोहन के पिता के तर्को से शशि ने बेमन से इस बात के लिये हामी भर दी। उनका मन तब और भी आशंकित हो गया था जब उन्होंने देखा कि भोज के बाद से रोहन के मूड में और भी बदलाव आने लगे। रोहन की पसंद नापसंद के साथ अब उसके बोलने के लहजे में भी बदलाव आ चुका था। अब रोहन कभी हंसता तो कभी रोता कभी बेवजह ही उसके चेहरे पर मुस्कान होती तो कभी वो घंटों आसमान में निहारता रहता। अक्सर वो रातों को चीखते हुए उठ जाता था। फिर सामने देख कर कुछ इस तरह मुस्कुराता जैसे सामने वास्तव में कोई अस्तित्व में हैं। सबसे कटने लगा था रोहन। लोगों से मिलने जुलने उनसे बात करने जिसमें उसे सबसे ज्यादा आनंद मिलता था अब वो उसी बात से भागता था। शशि ने रोहन के पिता से बात कर उनसे रोहन को किसी पंडित जी को दिखाने को कहा। उन्होंने रोहन के पिता को बताया कि उन्हें लगता है रोहन को किसी बुरी नजर ने अपने कब्जे में ले लिया है। जो रोहन के अस्तित्व पर भारी पड़ने लगी है। रोहन के पिता को बहुत हैरानी हुई ये जानकर कि शशी का विश्वास अब हद से निकल कर अंधविश्वास की ओर बढ़ने लगा था। उन्होंने शशी को टोका लेकिन शशी इस बात पर जोर दिये खड़ी रही। वो रोहन के पिता से बोली- आप घर पर नहीं रहते लेकिन मैं घर पर रहती हूं। रोहन के साथ समय भी मैं ही ज्यादा व्यतीत करती हूं। जब से हम शर्मा जी के यहाँ अमावस की रात का भोज कर के आये है तब से वो अब बहुत अजीब हो चुका है। कहता है मम्मा कौन सा परफ्यूम लगाया कितनी अच्छी खुशबू आ रही है जबकि मैं तो परफ्यूम का यूज तक नहीं करती। कभी कभी तो घर में पूरे टाइम धमा चौकड़ी मचाएगा और कभी तो ऐसे शांत होकर अपने कमरे में बैठ जाएगा जैसे खेलने कूदने में कोई रुचि ही नहीं। आप किसी पंडित से बात कीजिए ना इस बारे में छुटकी को तो पहले ही खो दिए हम अब रोहन के साथ ये क्या ....। कहते हुए वो सुबकने लगी।
रोहन के पिता अपने गुस्से को दबाते हुए बोले, ‘कैसी बात कर रही तो तुम शशी अगर रोहन को समस्या है तो हमें उसे पंडित जी को नहीं डॉक्टर को दिखाना चाहिये। मैं इसे कल ही किसी अच्छे डॉक्टर के पास लेकर जाता हूं और अब तुम ये अपना अमावस की रात का प्रकोप अलापना बंद करो विश्वास अच्छी बात है लेकिन अंधविश्वास ये बहुत गलत है शशी। पहले डॉक्टर उसके बाद कोई और समझ लो तुम अच्छे से।'
शशी और रोहन के साथ रोहन के पिता अगले दिन डॉक्टर के पास गये जहाँ रोहन के पिता ने रोहन के साथ आ रही सारी समस्यायें डॉक्टर के सामने रखी। डॉक्टर रोहन से एक मुद्दे पर बातचीत करने लगा। रोहन पहले तो झिझका लेकिन फिर बाद में वो आनाकनी करते हुए खामोश रह गया। डॉक्टर ने शशी और रोहन के पिता को बताया रोहन के साथ आने वाली समस्या थोड़ी सी गम्भीर है जिसे हम डॉक्टरी भाषा में सीजोफ्रेनिया कहते हैं। इस बीमारी में अक्सर हमें माया भ्रम, ध्वनि भ्रम गंध भ्रम जैसी समस्यायें होती है। इससे ग्रसित व्यक्ति को सारी अजीब चीजें महसूस होने लगती है जिनका वास्तव में कोई अस्तित्व है ही नहीं। डॉक्टर को सुन कर शशि के चेहरे पर थोड़े से परेशानी के भाव उभरे जिन्हें डॉक्टर ने समझते हुए कहा, आप घबराइए मत अभी शुरुआत है तो दवाइयों के इस्तेमाल से रोहन बिल्कुल ठीक हो जाएगा। बस आपको अपने घर का थोड़ा सा माहौल बदलना होगा और बाकी काम ये दवाइयां कर देगी। ठीक है दोनों ने कोरस में कहा तो डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन बना कर दे दिया। डॉक्टरी सलाह के साथ घर के माहौल में लाया थोड़ा बदलाव और दवाइयों के साथ ने कुछ ही महीनों के अंतराल में रोहन को बिल्कुल ठीक कर दिया। इस घटना से शशि के मस्तिष्क में पनपने वाली अनर्गल बाते हमेशा के लिये रफा दफा हो चुकी थी। जिससे अब उस घर में किसी को भी शशि की परवाह के रूप में ज्यादती नहीं सहनी पड़ती थी। सो एक दिन रोहन के पापा बहुत अच्छे मूड में शशि से बोले शशि तुम्हारा अमावस की रात का प्रकोप तो बिना किसी तंत्र मंत्र के चला गया। ....शशी जी जवाब देते हुए बोली, 'जी बिल्कुल अब मैं विश्वास और अंधविश्वास में अंतर समझ चुकी हूं'।
वाह.... क्या सबक दिया है तूने हम सबको एक कहानी के रुप में मजा आ गया'। कॉलेज गार्डन में बैठे हुए कुछ छात्रों में से एक ने एक लड़के से कहा जो उन सबको ये कहानी सुना रहा था। वो आगे बोला, 'ऐसा लग रहा था जैसे ये कोई कहानी नहीं आपबीती हो।'
कहानी सुनाने वाला लड़का बोला, ‘अगर थोड़ा गौर से सोचा जाये तो हर कहानी किसी की कहानी है दोस्तों बस फरक इतना है हम उस कहानी को जीवंत करने वाले किरदार नहीं ढूंढ पाते।'
कहानी पूर्णत काल्पनिक और स्वरचित है।