नाला नाला जिंदगी
नाला नाला जिंदगी
कितनी प्यारी लगती है न ये बूंदे जब चेहरे से टकराती है तो कितनी खुशी देती है।आज ये बारिश की बूंदे उस पर आपका साथ और साथ में बाइक राइडिंग एक साथ सारे ख्वाब पूरे हो गए हमारे।वर्षा ने सुशांत की पीठ पर सर टिकाते हुए कहा।उसके हाथ सुशांत के सीने पर थे और सर सुशांत की पीठ पर।
"सुशांत जी समय कितनी जल्दी पंख लगा कर उस जाता है न।एक वर्ष भी हो गया हमारी मुलाकात को इसी बारिश ने हमें मिलाया था और आज हम साथ है सदैव के लिए।सब कुछ सपने जैसा लगता है न।"
"हां लेकिन ये सपना हकीकत में सच हो गया वर्षा।सच में ये मौसम हम पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है - कहते हुए सुशांत और वर्षा दोनों मुस्कुराने लगते हैं।"
बातों ही बातों मेंदोनों शहर के उस हिस्से से गुजरे जहां जिंदगी के कुछ अलग ही रंग शामिल थे।वो रंग जो जिंदगी ने उन्हें दिए थे।खुशी का रंग शामिल तो था ही लेकिन उनके साथ शामिल थे कुछ अनदेखे रंग गमों के साथ साथ संघर्ष। जिंदगी को सुकून से जीने की कवायद।ख्वाहिशों को पंख लगा उड़ना शुरू करने का संघर्ष।संघर्ष ही तो था उनकी जिंदगी में। जिंदगी ने जैसे कदम कदम इम्तिहान ही लिखे हो उनके लिए।वो मलिन बस्ती, उसमे गुजर बसर करने वाले वो कुछ परिवार।जिनके बच्चे सड़कों पर फैले कचरे में जीवन यापन का समान ढूंढ रहे होते हैं।सड़कों पर घूमते उस बस्ती के बच्चे जिनके हाथ में किताबों के थैले होने के बजाय प्लास्टिक बीनने के लिए बड़ी सी बोरी होती है।वहीं पास ही में थोड़ी दूर एक नाला बह रहा होता है।जिसकी दुर्गंध सुशांत और वर्षा महसूस करते है और उनकी नजर सहसा उस नाले पर जाती है।जहां से कुछ कदमों की दूरी पर वो बच्चे घूम रहे है।बारिश में भी उन बच्चो को काम करता देख उन्हें हैरानी होती है।सुशांत बाइक रोक देता है और वर्षा से वहीं रुकने को कहता है।
"ठीक है सुशांत जी" - कह वर्षा बाइक के पास खड़ी हो जाती है।सुशांत उन बच्चो के पास चला जाता है।
"अरे आप लोग यहां क्या कर रहे हो"? सुशांत उन बच्चो के पास जा मुस्कुराते हुए पूछता है।बच्चे एक पल को तो सुशांत को देखते हैं और फिर अपने काम लग जाते है।शायद अजनबियों से बात करना उन्हें पसंद नहीं था या हो सकता है कि हर माता पिता की तरह उन्हें भी उनके माता पिता ने अजनबियों से बात न करने की हिदायत दी हो।
बच्चो का रूखापन देख सुशांत एक बार फिर से कोशिश कर कहता है - अरे बच्चो! बताओ तो सही आप लोग यहां क्या कर रहे है? इस कूड़े के ढेर में क्या ढूंढ रहे है?एक बच्चा वहीं दूर से चिल्लाते हुए कहता है।साहब जी हम लोग तो यहां काम कर रहे है।वो पास ही की फैक्ट्री के साहब ने हमें प्लास्टिक बीन कर लाने का काम दिया है।तो हम वही कर रहे है।सुशांत ये सुन हैरान होता है।तो आप सबके माता पिता क्या कर रहे हैं, वो लोग काम नहीं करते?
"अरे साहब!वे काम भी करते हैं न उसी फैक्ट्री में काम करते है।"
"जब माता पिता काम करते हैं तो फिर तुम लोग पढ़ने क्यों नहीं जाते?" सुशांत उन बच्चो के थोड़ा और पास जाता है।उन सबकी बात सुन उसकी जिज्ञासा और बढ़ जाती है।
पढ़ाई की बात सुन बच्चा उदास होते हुए कहता है "साहब,हम भी पढ़ना चाहते हैं साहब।लेकिन पढ़ने के लिए स्कूल में दाखिला भी तो मिलना चाहिए।किताबे भी तो होनी चाहिए। लेकिन हमें कोई भी स्कूल में दाखिला नहीं देता क्योंकि हम सब मलिन बस्ती से है न।"
सुशांत उनकी बात सुन हैरान रह जाता है वह पूछता है- तो किसी भी सरकारी स्कूल में दाखिला नहीं मिला।
"नहीं साहब!सुशांत को ये बात सुन बहुत हैरानी होती है और कुछ सोचते हुए वो बच्चो से पूछता है बच्चो ये बताओ यहां कहीं आसपास स्कूल कहां है।"
"वो बच्चा स्कूल की तरफ इशारा करता है जो वहां से उत्तर दिशा में कुछ ही दूरी पर होता है।"
"सुशांत तो आप सब स्कूल जाकर पढ़ना चाहेंगे? "- सुशांत सभी से पूछता है।
"जी साहब हम पढ़ना चाहते है।हम भी फैक्ट्री के साहब के बच्चो की तरह स्कूल जाना चाहते है।क्योंकि साहब मां कहती है कि पढ़ने लिखने से ही बड़ा आदमी बना जा सकता है।एक अच्छा इंसान बन सकते है।तभी तो मां जितना जानती है उतना हमें घर पढ़ाती है।"
"ये तो बहुत अच्छा है तो फिर ये बताओ आप सब अभी स्कूल जा सकते है? मै स्कूल जाकर वहां के अध्यापकों से बात करूंगा बस तुम सब वहां मौजूद रहना।ठीक है किताबों की चिंता नहीं करना स्कूल की लाइब्रेरी होगी।ठीक है और फीस आप सब से अभी नहीं लगेगी।"
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सुशांत की बात सुन बच्चे खुश होते हुए कहते है - "सच साहब! हम सब स्कूल जा सकेंगे।"
सुशांत बच्चो के चेहरे की मुस्कुराहट देख कहता है - "हां बिल्कुल जा सकते हो। बस अभी के लिए आप सब स्कूल पहुंचे मै आप सब का दाखिला करवा कर आता हूं।"
सुशांत बच्चो से कहता है और बाइक के पास जा बाइक स्टार्ट कर वर्षा से बैठने को कहता है।वर्षा बैठ जाती है तो सुशांत स्कूल के जाकर बाइक रोक देता है।जहां बच्चे पहले से ही मौजूद होते है।बारिश बंद हो चुकी है।सुशांत और वर्षा दोनों बाइक से उतरते है।
सुशांत स्कूल के अंदर जाता है और वहां के प्रधानाचार्य से मिलता है एवं उन्हें आने का कारण बताता है।बारिश के कारण सुशांत के कपड़े भीग चुके होते है और उन पर थोड़ी बहुत गदगी भी लगी होती है।जिसे देख उसे उन्हीं बच्चो के कोई रिश्तेदार समझ लेते है और प्रधानाचार्य कहते है जब वो बच्चे पढ़ना ही नहीं चाहते तो हम क्या कर सकते है।
सुशांत - "लेकिन सर उन बच्चो का कहना है कि आप लोग उन्हें दाखिला ही नहीं देते और किसी को दाखिला देते भी हो तो फीस भरने किताबे लेने ड्रेस बनवाने के नाम पर उन्हें परेशान करते हो।"
सुशांत की बात सुन प्रिंसिपल कहते है हां तो अगर विद्यालय है तो ये सब करना तो सामान्य बात है।फीस तो भरनी ही पड़ेगी न।पढ़ने के लिए किताबे भी चाहिए होंगी।और ड्रेस तो हर बच्चे को बनवानी ही होती है।
"ओह।तो क्या सर आप मुझे बता सकते है कितनी फीस भरनी होती है एक बच्चे को?" सुशांत पूछता है।
"फीस तो जो एक बच्चे कि होती है करीब पचास रुपए।एक प्राइमरी के बच्चे की, वो भी एक महीने की।उसके बाद क्लास के हिसाब से फीस भी बढ़ती जाती है।वो क्या है न सरकारी स्कूल है इसीलिए फीस कम है तो आपको तो पता ही होगा प्राइवेट कॉलेज की फीस तो हजारों में पहुंचती है।"
प्रिंसिपल की बात सुन सुशांत मुस्कुराते हुए कहता है "जानता हूं सर और आप भी ये बात जानते होंगे कि अपने भारत में एक अप्रैल 2010 से (R TE) ACT
लागू हो चुका है जिसके अन्तर्गत सरकारी स्कूलों में छह वर्ष से लेकर चौदह वर्ष के बच्चो को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है और मै इन बच्चो से मिल चुका हूं इन्हे देख कर लगता नहीं कि किसी की भी उम्र चौदह वर्ष से ज्यादा होगी।तो अब आप बताइए कि इनसे फीस लेकर या किताबो के लिए परेशान कर या ड्रेस के लिए फोर्स कर आप अपने लिए परेशानियां खड़ी करना चाहेंगे।"
सुशांत की बात सुन प्रिंसिपल सकपका जाता है जिसे देख सुशांत कहता है "सर मै खुद पेशे से एक सरकारी अध्यापक हूं।और भारतीय संविधान के शिक्षा का अधिकार कानून की जानकारी भी रखता हूं।आप इन बच्चो को दाखिला देने से मना नहीं कर सकते।अगर बच्चे स्कूल नहीं आते है तो ये स्कूल प्रशासन का दायित्व बनता है इस बात की जानकारी रखना कि बच्चे स्कूल क्यूं नहीं आ पा रहे है।आगे आप समझदार है अब आप जो भी निर्णय ले मुझे बता सकते है।एक बात और भेदभाव के लिए भी भारतीय संविधान में प्रावधान है "समानता का अधिकार"। शायद आपने पढ़ा होगा इसके विषय में।"
सुशांत का अभिप्राय समझ प्रधानाचार्य सुशांत को बच्चो के एडमिशन करने का आश्वासन देते हैं और किसी भी तरह के भेदभाव न करने का भी कहते है।सुशांत बाहर जा कर सभी बच्चो का दाखिला करा देता है एवम् बच्चो के साथ वहां से बाहर चला आता है।और कल से स्कूल जाने का को कहता है।बच्चे ये सुन कर बहुत खुश होते है सभी सुशांत को धन्यवाद कहते है।वर्षा को सुशांत की अच्छाई देख खुद पर फक्र महसूस होता है।वो अपनी पलके झपका उसे धन्यवाद कहती है। एक बार फिर सुशांत बाइक स्टार्ट करता है और वर्षा उसके पीछे बैठती है दोनों निकल पड़ते है घर जाने के लिए।
"सुशांत जी आज फिर आपकी अच्छाई देख हमारा हृदय भर आया।सच में आप बहुत बहुत अच्छे इंसान हैं " - वर्षा सुशांत से कहती है।
"एक ही जिंदगी है वर्षा।भला दूसरो के काम न आए तो कैसा जीवन।इंसान वहीं जो इंसान के काम आए।उन बच्चो की जिंदगी संवर जाएगी अब।नाले के किनारे छोड़ अब कलम का साथ मिलेगा उन्हें।बीच बीच में मै उनसे मिल कर आता रहूंगा जिससे उनकी पढ़ाई बीच में ही न रुक जाए" सुशांत कहता है।तब तक बारिश फिर से शुरू हो जाती है।
जी जरूर।वर्षा कहती है और सुशांत की पीठ से सर टिका आंखे बंद कर महसूस करने लगती है इन टिप टिप करती बारिश की बूंदों को।