अधूरा....लेकिन पूरा इश्क..
अधूरा....लेकिन पूरा इश्क..
फाइनली सुरेखा!! कल से कॉलेज खुल जाएंगे और हमें इस बोरियत भरी जिंदगी से निजात मिल जायेगी। तुझे बता नहीं सकती यार कितना मुश्किल रहा इन छुट्टियों वाले महीनों को गुजारना। उफ्फ बहुत बोरिंग है यार। फोन पर अंशिका ने अपनी दोस्त सुरेखा से कहा जो उस समय टेलीविजन के सामने बैठी हुई अपनी आँखे फोड़ रही थी।
"हम्म यार सही कहा तूने हम कॉलेज गोइंग यूथ के लिये ये छुट्टी भरे कुछ दिन सर पर भार भरे ही लगते है। कोई दोस्त नहीं कोई मस्ती नहीं बस घर और किताबे। " सुरेखा टीवी से ध्यान हटाते हुए कहने लगी। सुरेखा और अंशिका कॉलेज की दो सहेलियां जो एक साथ कॉमर्स से अपनी ग्रेजुएशन के दूसरे साल में आ गयी।
'अच्छा अंशिका सुन न क्या तेरे आसपास कोई है'?सुरेखा ने पूछा। तो अंशिका चौंकी। उसकी आवाज में हल्की सी बेचैनी झलकी वो बोली 'क्यों क्या हुआ सुरेखा ऐसे क्यों पूछ रही हो'।
अंशिका को परेशान जान सुरेखा बोली, 'घबरा नहीं मैंने वैसे नहीं पूछा मैं तो बस उसके बारे में बात करने के लिए पूछ रही थी कहीं तेरे आसपास कोई हुआ तो तू खुल कर बात नहीं कर पायेगी इसीलिए। '
सुरेखा को सुन अंशिका के चेहरे पर छाई हंसी काफ़ूर हो गयी वो गम्भीर होते हुए बोली, 'यार सुरेखा तू उसके साथ खुश रह न मुझसे उसका जिक्र छेड़ कर क्यों मेरा खून जलाती है। प्यार भले ही मेरा हो वो लेकिन अब किस्मत तेरी है तू उसे एक्सेप्ट कर और खुश हो आगे बढ़ जा। मुझे कल भी कोई दिक्कत नहीं थी आज भी नहीं है। '
अंशिका! सुन तो पहले सुरेखा कुछ कहने को हुई तब तक अंशिका ने फोन रख दिया। उसकी आँखें भर आई और वो चुपचाप अपने कमरे में रखे कबर्ड के पास गयी। उसने एक रिपोर्ट निकाली और उसे खोलकर बैठ गयी। उसकी आँखें भर आई। मन की तकलीफ आंखों के जरिये बहने लगी। कुछ देर में मन में भरा गुबार निकल गया तो वो टुकुर टुकुर उन सफेद पन्नों को ताकने लगी जिसने उसकी जिंदगी बदल कर रख दी। यूँही ताकते हुए उसका मन भटक गया एक साल पहले जब वो और सुरेखा पहली बार कॉलेज आई थीं। तब कॉलेज में रैगिंग बैन होने के बावजूद भी कुछ सिरफिरे सीनियर ने कॉलेज के छात्रों के साथ रैगिंग के नाम खूब परेशान किया था। परेशान क्या किया था उन्हें मेन गेट से कॉलेज के कॉरिडोर तक दौड़ने का आदेश दिया था वो भी तीन राउंड। अब स्कूल की छात्रा हो तो एक बारी वो ये कर भी दे लेकिन कॉलेज में कैसे करे सोचते हुए ही उन दोनों को झुरझुरी महसूस हुई और वो तुरंत ही नानुकुर करने लगी। वो छात्र भी आताताई तुरंत ही जिद पकड़ कर बैठ गये करना त
ो यही पड़ेगा चाहे जो हो।
"ऐसे कैसे करना पड़ेगा" यही अल्फाज सुने थे मैंने उसके मुंह से सबसे पहले। हां यही तो कहा था उसने बिल्कुल चाशनी जैसे मीठे से मालूम पड़े थे। वैसे तो लड़को की आवाज बहुत कड़क होती है थोड़ी भारी सी भी लेकिन उसकी मुझे कतई ऐसी नहीं मालूम पड़ी थी। ठीक ठाक दिखता था वो लेकिन कुछ तो विशेष लगा मुझे और मुझमें हिम्मत दौड़ पड़ी थी उसके इन शब्दों से ही। खड़ी हो गयी मैं और कुछ शब्द फूट पड़े थे मुंह से,'नहीं करूँगी जो करना है कर लो! ज्यादा तंग किया हमें तो हम दोनों जाकर मैनेजमेंट से शिकायत कर देंगी' ! हम दोनों ने कहा और डटकर खड़ी हो गयी। वहीं तो पता चला था मुझे उसका नाम। जिसके शब्दों ने मुझमें हिम्मत भर दी थी उसका नाम भी निराला निकला आदेश..!! जैसा नाम वैसे गुण! स्वभाव से कड़क वो अक्सर सबको आदेश देता रहता। उस दिन आदेश से दोस्ती करने में हम दोनों ने बिल्कुल भी देर नहीं लगाई थी दोस्ती कर ऐसा महसूस हुआ मानो दुनिया भर की खुशी मिल गयी हो। अब चूंकि हम दोस्त बन चुके थे तो कॉलेज के सारे कार्य साथ में करते थे। लेक्चर अटैंड करना, कॉलेज बंक कर मटरगस्ती करना, बन्दरो को चिढ़ाना और फिर उनके चिढ़ने पर एक साथ नौ दो ग्यारह हो जाना। लेक्चरर की डांट का प्रसाद मिलने पर मिल बांट कर डकार लेना। सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था पिछली साल। ये साथ न जाने कब हमेशा की ख्वाहिशों में बदल गया और हमारे दिल निकल कर भाग खड़े हुए किसके मन में कौन था ये न मुझे पता चला न सुरेखा को और न ही आदेश को। वो प्यार भरा सप्ताह चल रहा था जब मेरे हाथ में सफेद पन्ने आ धमके। कारण था उसे अक्सर सर दर्द के साथ चक्कर आने की शिकायत रहना। और वो इसे कमजोरी समझ इग्नोर करती रही थी। ऐसे ही एक दिन अपने घर के बाथरूम से निकल अंशिका कमरे की ओर बढ़ रही थी कि तभी उसका सर घूमा और वो फिसल कर गिर पड़ी। जब होश में आई तो सामने आई थी ये रिपोर्ट जिसने उसकी जिंदगी की घड़ियां ही गिन कर रख दी। दर्द उसे तब हुआ जब आदेश ने उसके सामने से आकर प्रेम प्रस्ताव दिया था। और दूसरी ओर से उसके सामने हाथों में बुके पकड़े आंख में आंसू लिए सुरेखा खड़ी थी। तब उसने मजबूरी में अपने कदम पीछे खींच लिए थे और आदेश को अपने प्रेम का वास्ता दे जोड़ दिया था सुरेखा के साथ उसने। और खुद चली आई थी उन्हीं घड़ियों को गिनने जो आज भी बदस्तूर जारी है। और वो चाह कर भी ये सच अपने दोस्तों को नहीं बता सकती सब कुछ सहना है उसे अकेले तब तक जब उसकी सांस में सांस है। निर्णय करते हुए वो उठी और एक बार फिर से जुट गयी झूठ का लबादा पहन कॉलेज की तैयारी में।
समाप्त..