Deepika Kumari

Abstract Crime Thriller

4.5  

Deepika Kumari

Abstract Crime Thriller

हमारा कोई नहीं

हमारा कोई नहीं

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सीमा 7 दिन की बच्ची को गोद में लिए नीचे फर्श पर फटी सी चटाई पर बैठी अपने पति के आने का इंतजार कर रही थी। काफी रात हो गई थी अक्सर तो शाम तक उसका पति आ ही जाता था पर आज ना जाने इतनी देर क्यों हो गई, यही सब सोचकर उसका मन घबरा रहा था। अचानक दरवाजे पर किसी के गिरने की आवाज आती है। वह घबराकर बच्ची को चटाई पर सुला देती है और खुद खड़ी होकर दरवाजे की ओर बढ़ती है। प्रसव पश्चात की पीड़ा और जच्चा होने के कारण उसका शरीर बहुत कमजोर है उसके कदम लड़खड़ाते हुए दरवाजे की ओर जाते हैं। वह दरवाजे पर पहुंचती है तो देखती है कि उसका पति खून से लथपथ दरवाजे पर बेहोश पड़ा है। वह उसे इस हालत में देखकर डर जाती है। वह उसे उठाने का प्रयास करती हुई कहती है, " सुनो जी, आंखें खोलो यह क्या हुआ तुमको उठो ना आंखें खोलो।"

अपनी इस कोशिश में असफल होने के बाद वह लड़खड़ाते हुए फिर घर के अंदर जाती है और पानी का एक गिलास लेकर वापस आती है। वह पानी के छींटे उसके मुंह पर मार कर उसे होश में लाने का प्रयास करती है। इस बार उसकी कोशिश कुछ सफल होती नजर आती है। रामू अपनी आंखें खोलता है और खुद को सीमा की गोद में पाता है। वह दीवार के सहारे से खड़ा होता है और पत्नी का सहारा लेकर घर में प्रवेश करता है।

प्यास के कारण सूखे और रूंधे हुए गले से उसका स्वर निकलता है, "प.......पा........नी"।

सीमा झट से पानी का गिलास उसे पकड़ाती है और पूछती है ," यह सब कैसे हुआ? किसने मारा आपको? और क्यों मारा? कितना खून निकल रहा है चलो डॉक्टर के पास चलते हैं।"

रामू पानी पीकर कुछ तसल्ली महसूस करता है पर सीमा के किसी भी सवाल का जवाब नहीं देता।

सीमा फिर पूछती है, " क्या हुआ? कुछ बताओगे भी? काम मिला कि नहीं? आज के खाने का इंतजाम हुआ कि नहीं? ये सब कैसे हुआ? आप तो काम ढूंढने गए थे ना फिर ये सब?"

रामू, " आज तो पानी पीकर ही पेट भरना पड़ेगा। मैं जिंदा वापस आ गया यही काफी नहीं है।"

सीमा, "जख्म तो बहुत गहरे हैं। चलो पहले डॉक्टर के पास पट्टी करवा आते हैं।"

रामू, " कौन करेगा मेरी पट्टी? सरकारी अस्पताल तो 5 कोस दूर है। पैदल चलने की तो ना मेरी हालत है और ना तेरी। रिक्शे के लिए पैसे है नहीं। और आसपास के प्राइवेट क्लीनिक तो हमें अंदर भी घुसने नहीं देंगे। फिर कौन करेगा मेरी पट्टी?"

सीमा, "तो फिर ऐसा करती हूं मैं हल्दी का लेप लगा देती हूं जख्म जल्दी भर जाएंगे।"

रामू धीमी सी मुस्कान के साथ पूछता है, "हल्दी है?"

सीमा इधर-उधर देखने लगती है और फिर खामोश हो जाती है।

रामू, " कल की एक आध रोटी बची हो तो तुम उसी को खा लो और सो जाओ।

सीमा, "और तुम?"

रामू, "अरे मेरा खाना जरूरी नहीं है। तुम्हारा खाना ज्यादा जरूरी है, तुम भूखी रहोगी तो बच्ची को दूध कैसे उतरेगा?"

सीमा, " कल की एक रोटी बची हुई है आधी आधी खा लेते हैं।"

रामू कुछ तुनक कर, "मैंने अभी जो कहा वह शायद तुम्हारी समझ में नहीं बैठा । है ना। मुझे इस वक्त खाने से ज्यादा आराम की जरूरत है। मुझे बहुत नींद आ रही है अब मुझे परेशान मत करो सो जाओ और मुझे भी सोने दो।"

सीमा अब आगे उससे कुछ नहीं कहती। अगली सुबह रामू उठता है तो सीमा के सवाल फिर शुरू हो जाते हैं, " अब बताओ कल क्या हुआ था? किसने मारा था तुम्हें और क्यों? "

रामू, "क्या करोगी जानकर, क्या तुम्हें नहीं पता हम गरीबों का कोई ईमान नहीं जिसका जब जी चाहा पीट दिया। और अगर फिर भी तुम मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने की सोच चुकी हो तो सुनो। सुबह से काम ढूंढते ढूंढते दोपहर खत्म होने को आ गई थी पर कोई काम नहीं मिला। सोचा भीख मांग कर ही 10 20 रूपए भी अगर मिल जाए तो रात को भूखा ना सोना पड़ेगा। इसलिए भीख मांगने लगा चलते चलते भूख और प्यास के कारण मुझे चक्कर से आने लगे तो मैंने सोचा सड़क के किनारे बैठ कर थोड़ी देर आराम कर लूं। बैठे-बैठे कब मेरी आंख लग गई पता ही नहीं चला। फिर एक जोर से धमाके से मेरी आंख खुली तो देखा कि एक रईसजादा लात घूंसे से मुझे पीटते हुए चिल्ला रहा था,ये बेशर्म लोग सड़क पर ही सो जाते हैं। इन्हें बिल्कुल भी शर्म नहीं आती कितना जाम लगा दिया।वह दूसरों से भी कहता है, " अरे भाइयों यह देखो जाम की जड़ यहां सो रही है। इसकी वजह से हमारा कितना समय बर्बाद हो गया, मारो इसे।"मैं हाथ जोड़कर उनसे माफी मांगता रहा और गिड़गिड़ाता रहा पर उस निर्मम भीड़ ने मुझ पर बिल्कुल भी दया नहीं करी और मुझे तब तक पीटती रही जब तक मैं बेहोश ना हो गया।"

सीमा, "चलो थाने, हम शिकायत दर्ज करेंगे। गरीब हैं तो क्या हम इंसान ही नहीं समझे जाएंगे जानवरों की तरह हमें कुचल दिया जाएगा क्या ?"

रामू इस बात पर हंस देता है और कहता है, " अरी पगली !

तुझे लगता है कि हमारी कोई शिकायत सुनेगा भी। वे फिर से मुझे ही पीट देंगे। अरी, गरीब होना एक अभिशाप है और हमें इसे जीना ही होगा। हमारा कोई नहीं है, ना डॉक्टर, ना पुलिस, ना कानून और ना कोई मददगार। हम अकेले हैं सिर्फ अकेले अपनी गरीबी के साथ।"


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