मेरी सहेली
मेरी सहेली


निशा को अपनी सहेली से बहुत प्यार था। वह उसके बिना रह ही नहीं सकती थी । वह जहां भी जाती उसे हमेशा अपने साथ ले जाती । आज वह एक अध्यापिका के रूप में एक सरकारी विद्यालय में कार्यरत थी। वह नौकरी पर जाती तो भी अपनी उस सहेली को साथ ले जाती। बस में उसके साथ समय बिताती। हमेशा उसी में खोई रहती। वह अपनी सहेली से बहुत प्यार करती थी ।उससे दूरी उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं थी। जानते हैं उसकी सहेली कौन थी ? आप सब उसे अच्छे से जानते हैं । हम सब ने उसके साथ अपने जीवन का कुछ भाग जरूर बांटा है । उससे बहुत कुछ सीखा है, उसी के दम पर ही हम आज इतने काबिल हो पाए हैं। यदि वह हमारा साथ ना देती तो हम गवार अनपढ़ ही रह जाते हैं । वह सहेली है- किताब ।
निशा की मां निशा की इस सहेली से बहुत परेशान थी ।निशा ऑफिस से घर आती तो फिर अपनी सहेली में खो जाती। मां कहती, " दिनभर इन किताबों में लगी रहती है। क्या पढ़ती है अब तू? अब तो छोड़ यह पढ़ाई लिखाई ।अब तो तेरी नौकरी भी लग गई। कम से कम अब तो इन किताबों का पीछा छोड़ दे । घर के कुछ कामकाज सीख ससुराल जाएगी सब को क्या किताब ही बना कर खिलाएगी। खाना बनाना भी तो आना चाहिए ना । लड़की की जात है कल को तेरे ससुराल वाले मुझ ही को ताना मारेंगे कि बेटी को कुछ सिखा कर नहीं भेजा।"
निशा , "आप कह देना बेटी को नौकरी लगा कर भेजा है यह क्या कम है। बाकी काम आप सिखा दो।"
मां, " जो कल सीखना है वह अभी सीख ले ना कि कल को ताने सुनने ही ना पड़े।"
निशा, " मां, आप चिंता मत करो मैं सब कर लूंगी। जिन किताबों ने मुझे इतना सिखाया है, वह मुझे खाना बनाना भी सिखा ही देंगी। आपको पता है जीवन की राह में एक ना एक दिन सब साथ छोड़ जाते हैं। कोई साथ नहीं छोड़ता तो वह है यह किताबें। इनके बातें, इन की सीख , यह किताबें हमें दुनिया में सब कुछ दिला सकती हैं । हमें हर मुश्किल से बाहर निकाल सकती हैं । जीवन के हर मुकाम तक पहुंचा सकती हैं ये किताबें । अब आप ही बताओ भला मैं इन्हें कैसे छोड़ दूं।"
निशा की शादी हो जाती है और देखते ही देखते उसकी शादी को 5 साल बीत जाते हैं । पर उसे कोई संतान नहीं होती। अब बाहर के लोगों के साथ-साथ घर वाले भी संतान ना होने के लिए चिंता जताने लगते हैं। निशा भी मां बनना चाहती है पर क्यों नहीं बन पा रही है ये उसे भी मालूम नहीं। निशा और उसका पति डॉक्टर से भी सलाह लेते हैं और दोनों के इलाज के बाद भी वे निसंतान ही रहते हैं । पर इन सबके बीच भी निशा अपनी पढ़ाई जारी रखती है । वह अपनी सहेली को अभी भी नहीं छोड़ती ।वह कुछ दिनों के लिए मायके चली जाती है। एक दिन वह दोपहर में एक किताब पढ़ रही होती है कि तभी उसकी मां कहती है, " तू तो कहती थी कि किताबें हमेशा इंसान का साथ देती हैं । वह जीवन की हर समस्या का समाधान कर सकती हैं तो पूछ लेना इन्हीं से अपनी समस्या का समाधान की मां कैसे बनुं । जरा मैं भी तो देखूं , कैसे तेरी किताबें तेरी मदद करती हैं।"
मां की बातें सुनकर निशा को मानो अपनी समस्या के समाधान का रास्ता मिल गया हो वह कहती है, " ठीक कहा मां इस बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। वह उसी वक्त अपने पड़ोस में बनी नेशनल लाइब्रेरी जाती है और रोज वहां जाने लगती है। वह वहां गर्भधारण व गर्भाशय की समस्याओं से संबंधित किताबों का अध्ययन करने लगती है । उसे कई आयुर्वेदिक किताबें भी मिलती हैं जिनका वह अध्ययन करने लगती है । उन किताबों के अध्ययन से उसे अपने गर्भाशय को मजबूत करने के लिए अनेक व्यायामों के बारे में पता चलता है । वह घर आकर उन व्यायामों को करती है। आयुर्वेद की किताबों में गर्भधारण करने के लिए शरीर में बनने वाले आवश्यक हारमोंस को किस तरह से बढ़ाया जाता है उसके लिए देसी नुस्खे भी दिए होते हैं जिन्हें वह अपने जीवन में प्रयोग करने लगती है । प्राकृतिक जड़ी बूटियों व नुस्खों की सहायता से उसके शरीर की शक्ति बढ़ने लगती है। 6 महीने के भीतर ही निशा गर्भवती हो जाती है । जो काम डॉक्टरी सलाह व दवाई नहीं कर सकी, वही काम आयुर्वेद की किताबों ने कर दिखाया । निशा का जैसे सपना पूरा हो गया हो। वह मां से कहती है, " देखा मां ,आखिर किताबों ने ही मेरा साथ दिया ना ।
मां उसकी इस बात में सहमति से अपना सिर हिला कर मुस्कुरा देती है।