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Deepika Kumari

Abstract

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Deepika Kumari

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मेहनत कभी बेकार नहीं जाती

मेहनत कभी बेकार नहीं जाती

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विवेक और राहुल घनिष्ठ मित्र थे । परंतु दोनों के परिवारों की पृष्ठभूमि एक दूसरे से भिन्न थी । विवेक रहीस परिवार का इकलौता बेटा था तो राहुल एक मध्यम परिवार में रहने वाला साधारण सा लड़का था । कई बार भिन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण उनके विचारों में मतभेद भी होता था परंतु इससे उनकी मित्रता पर कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ता था । दोनों ही सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे। विवेक पढ़ाई में अच्छा नहीं था ।राहुल पढ़ाई में तेज था परंतु पढ़ाई के लिए अच्छे साधन उपलब्ध ना होने के कारण वह इतना अच्छा नहीं कर पा रहा था। दोनों ही सब इंस्पेक्टर की नौकरी के लिए आवेदन करते हैं और एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हैं और मेहनत से लिखित परीक्षा में दोनों ही उत्तीर्ण भी हो जाते हैं। परंतु अभी एक परीक्षा और होती है जिसे पास किए बिना नौकरी के लिए अपनी योग्यता सिद्ध नहीं की जा सकती थी , वह थी शारीरिक परीक्षा। जिसमें वजन उठाना व निश्चित दूरी तक निश्चित समय सीमा में दौड़ना, जैसी परीक्षाओं को पास करना था।

विवेक ने राहुल से कहा , "यार इसे पास करने के लिए तो हमें बहुत प्रेक्टिस करने पड़ेगी।"

राहुल, " हां, मैं सोच रहा हूं कल से ही सुबह जल्दी उठकर दौड़ लगाना शुरू कर दूं और वजन उठाने का प्रयास घर पर ही शुरू कर दूं।"

विवेक, " देख यार मुझे लगता बस यूं ही दौड़ने से काम नहीं चलेगा। हमें जिम ज्वाइन करना पड़ेगा। यह परीक्षा तभी पास हो पाएगी।"

राहुल, " क्या जिम ? जिम की फालतू की फीस में पैसे कौन बर्बाद करेगा। यह काम तो हम खुद भी कर सकते हैं ना ।"

विवेक, " मुझे नहीं लगता यह खुद से हो जाने वाला काम है।"

राहुल, "कर्मों? इस काम के लिए सिर्फ मेहनत की ही तो जरूरत है। यह मेहनत हम खुले प्राकृतिक वातावरण में सूर्योदय के समय करें तो प्रकृति के सानिध्य से हमें नई ऊर्जा भी प्राप्त होगी, जो हमारी सफलता में विशेष योगदान देगी।"

विवेक, " पर मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं। फालतू में इतनी सुबह उठ कर अपनी नींद खराब करो । इससे तो अच्छा है आराम से उठो और 10 से 11 जिम करो और शाम को भी एक घंटा जिम करो। तभी कुछ हो सकेगा।"

राहुल, "जिम की मशीनों से अच्छा तो मुझे प्रकृति का सानिध्य अधिक पसंद है। जिम में तो निश्चित अवधि तक ही अभ्यास कर सकते हैं किंतु प्रकृति हम पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती । हम जब तक चाहे जैसे चाहे अभ्यास कर सकते हैं। तो कल सुबह 5:00 बजे मैं तुझे लेने आ जाऊंगा। दोनों दौड़ते हुए खेतों की और चलेंगे, वहीं अभ्यास करेंगे।"

विवेक, " नहीं, राहुल मैं जिम जॉइन कर लूंगा। मुझसे इतनी सुबह नहीं उठा जाएगा ।"

राहुल, " देख यार, कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है । अगर नौकरी चाहिए तो नींद का त्याग तो करना ही पड़ेगा ना । फिर दोपहर में सो लेना।"

विवेक, "सुबह ही तो अच्छी नींद आती है। मैं उसे नहीं खोना चाहता । तू जैसे चाहे कर पर मैं नहीं आ सकता तेरे साथ।"

विवेक जिम जाकर अपनी प्रैक्टिस शुरू करता है और राहुल सुबह जल्दी उठकर प्रकृति के शुद्ध वातावरण में अभ्यास करता है। विवेक शुरुआत से ही आलसी था। वह जिम रोज नहीं जाता था। जब उसका मन करता था तब चला जाता था जिस दिन उसका दिल नहीं करता था उस दिन पूरा दिन फोन चलाते हुए अपने बिस्तर पर पड़े रह कर काट देता था ।"

परीक्षा के दिन दोनों साथ ही परीक्षा देने गए और परीक्षा हॉल से बाहर निकल कर जब फिर मिले तो विवेक कुछ उदास दिखा। राहुल ने पूछा , "क्या हुआ तुम्हारी परीक्षा अच्छी नहीं हुई ?"

विवेक, " नहीं यार, मैं मेरी दौड़ ठीक समय पर पूरी नहीं कर सका और तुम्हारा क्या रहा ?"

राहुल, " मैंने तो दौड़ समय से पहले ही पूरी कर ली और वजन उठाने की परीक्षा में भी पास हो गया।"

विवेक, " बधाई हो मित्र । शायद मैंने तुम्हारी बात ना मान कर भूल की। तुम सही थे कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, कुछ त्यागना पड़ता है। मुझसे मेरे आलस्य का त्याग नहीं हुआ और इसी के कारण आज मैं फेल हो गया और तुम पास ।"

राहुल, " कोई बात नहीं दोस्त। जिंदगी फिर मौका देगी तब अपनी इस भूल को फिर मत दोहराना क्योंकि पूरी लगन से की हुई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।"


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