गुलमोहर
गुलमोहर
रोज़ की तरह आज भी सबेरे जैसे ही बाल्कनी का दरवाज़ा खोला तो देखा की बारिश हो रही हैं। दिल्ली में अचानक इतनी बारिश और वह भी इस मे के महीने में?
वंडर की ही बात थी। सामने वाले नीचे के घर में एक पेड़ गिरा हुआ था। अरे, यह गुलमोहर का मजबूत पेड़ लाल खूबसूरत फूलों से लदा था।
मुझे यह फूलों से लदे गुलमोहर के पेड़ को देखना हमेशा से ही अच्छा लगता हैं। क्योंकि बिना किसी ख़ौफ़ से इतनी झुलसती और ज़र्द दोपहरी में भी अपने लाल खूबसूरत फूलों के साथ जैसे वह सूरज को आँख दिखाने की जुर्रत करता है।
भला आज की सत्ता क्या यह देख सकती हैं ? नहीं ना? तो फिर क्या? हर सवाल करने की जुर्रत करने वालें को ही मिटा दो।कुछ भी करके …कैसे भी करके…चाहे आँधी ही क्यों न आ जाये?
सत्ता चाहे और कुछ न हो?
आँधी आयी और पीछे लाल फूलों से भरे हरे हरे गुलमोहर के पेड़ों को तोड़ते चली गयी…यहाँ वहाँ गलियों में और रास्तों पर गुलमोहर के लहूलुहान पेड़ बिखरें पड़े थे.....
और सूरज को अक्सर आँख दिखाते वे सारे सुर्ख लाल फूल जहाँ तहाँ बिखरे पड़े थे....
एकदम ख़ुश्क… और बिलकुल बेरौनक़…
