दरियादिली Prompt 16
दरियादिली Prompt 16
"अरे कपड़े दे तो दिए, अभी तक यहीं क्यों खड़ा है ?" मेरे घर के कपड़े प्रेस करने वाली राधा का 8-9 साल का सबसे बड़ा बेटा विनायक कपड़े देने के बाद भी नहीं गया तो मैंने कहा।
फिर अचानक से मुझे याद आया ,"ओह्ह तुझे बिस्किट तो दिए ही नहीं ?"
मैंने उठकर उसे डिब्बे में से पारले जी बिस्किट निकालकर दिए और बिस्किट लेते ही वह चला गया।
राधा हमारी कॉलोनी के एक कोने में पीपल के पेड़ के नीचे रहती है। वहीं उसने टिन के नीचे कपड़े प्रेस करने की टेबल लगा रखी है। कुछ सालों पहले तक राधा का पति शंकर प्रेस करता था और राधा कपड़े लाने -ले जाने का काम करते हुए शंकर का हाथ बंटाती थी। कॉलोनी से कुछ दूरी पर ही उन्होंने रहने के लिए कमरा भी ले रखा था। परिवार नियोजन से बेख़बर राधा के एक के बाद एक चार बच्चे हो गए थे। शंकर जब तक काम करता था , तब तक परिवार चैन से दो रोटी खा लेता था। लेकिन शंकर को शराब की लत ने ऐसा जकड़ा कि परिवार का जीना मुहाल हो गया।
शंकर दिन रात शराब के नशे में धूत रहने लगा। अब शराब के अलावा उसे कुछ और कहाँ याद रहता ?धीरे -धीरे उसने कपड़े प्रेस करना बंद कर दिया। अब राधा के ऊपर घर और बाहर दोनों की पूरी ज़िम्मेदारी आ गयी थी। हम औरतें भी पता नहीं किस मिट्टी की बनी होती हैं ,जो सहने की अपार क्षमता रखती हैं। खैर में कभी समझ नहीं पायी कि मिट्टी ऐसी है या परवरिश।
राधा भी सब सहकर अपने बच्चों को पाल रही थी। शंकर के रोज़ -रोज़ झगड़ा करने के कारण मकानमालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया था। राधा वहीं पेड़ के नीचे रहने लग गयी थी। चार -चार बच्चे ,राधा को प्रेस के कपड़े भी कम मिलने लग गए थे। राधा जैसे -तैसे अपने गृहस्थी की गाड़ी खींचने लगी। बाद में शंकर को नशा मुक्ति केंद्र भेज दिया गया था। लेकिन पैसे की तंगी के चलते राधा दुबारा कमरा किराए पर नहीं ले पायी थी।
राधा कई बार बच्चों को सुबह खाना भी बनाकर नहीं खिला पाती। ऐसे में विनायक जब भी मेरे घर आता तो मैं उसे कुछ न कुछ खाने की चीज़ दे देती हूँ। गर्म कपड़े ,कम्बल आदि देकर भी मैं इस परिवार की मदद करने की कोशिश करती हूँ।
मैंने एक बात नोटिस की थी कि विनायक को जब भी कुछ खाने को देती हूँ ,वह कभी मेरे सामने नहीं खाता था। एक दिन वह दिन में कपड़े लेने आया और कहने लगा कि ,"बहुत भूख लगी है। "
उस दिन मैं भी कुछ ज़्यादा ही अच्छे मूड में थी तो मैंने विनायक से कहा ,"रुक जा ,तुझे गर्म रोटी ही बनाकर दे देती हूँ। "
मैंने उसे दो रोटी और सूखी सब्जी खाने के लिए प्लेट में दे दी और कहा ,"यहीं बैठकर खा ले। "लेकिन उसने रोटी के बीच में सब्जी रखी और चला गया। आज मैं भी थोड़ा फ्री थी तो उसके जाने के बाद मैं भी घर के दरवाज़े पर जाकर खड़ी हो गयी।
मैं क्या देखती हूँ ,उस भूखे बच्चे ने मेरे द्वारा दी गयी रोटियाँ वहाँ खेल रहे दूसरे बच्चों को बाँट दी। । ये सब बच्चे हमारी कॉलोनी में एक घर में किराए से रहने वाले विभिन्न कामगारों ,मजदूरों आदि के थे। विनायक की दरियादिली देखकर मैं उसके सामने अपने आपको बहुत बौना समझ रही थी।
इस जरूरतमंद परिवार की बहुत थोड़ी सी मदद करके मैं अपने आपको कहीं की बहुत बड़ी मसीहा समझने लगी थी जबकि उस छोटे बच्चे ने अपना हिस्सा भी ख़ुशी-ख़ुशी दूसरों को दे दिया था।
