दिलों के रिश्तें
दिलों के रिश्तें
इस बार मुंबई में मेरा ठीक ग्यारह साल बाद जाना हो रहा है। जब मैं नौ साल की थी तब पापा का मुंबई से ट्रान्सफर दिल्ली हो गया था... तब से हम दिल्ली में ही है। यहाँ लोग कहते है, "दिल्ली है दिलवालों की"...लेकिन जितना मुझे मुंबई से लगाव है उतना मुझे कभी दिल्ली में अपनापन नही लगा। आज मैं बीस साल की हुँ। कॉलेज में फाइनल ईयर में....पढ़ाई का प्रेशर तो है ही लेकिन कुछ भी हो इस बार तो मुंबई जाना ही होगा क्योंकि दिल्ली के क्रेच जिसे मुंबई में बेबी सिटिंग कहते है...बेबी सिटींग वाले राहुल भैया की शादी है।
सपनो की नगरी मुंबई में मैं दस महीने की उम्र से उस बेबी सिटिंग में रहती थी। मम्मी पापा दोनो जॉब में थे... और घर मे कोई बड़ा नही था तो मुझे मुंबई में उस बेबी सिटींग में रहना पड़ा था। मेरे मानस पटल पर बचपन की न भूलने वाली वे सारी यादे अभी भी ताज़ा हैं। सुकीर्ति दीदी, राहुल भैया और इनसे भी आगे बढ़कर क्रेच वाले अंकल और आँटी...
मैंने मम्मा को कह दिया की इस बार मुंबई में जाना ही है। मुझे बेबी सिटींग वाले अंकल और आँटी से मिलना ही है। इस बार राहुल भैया की शादी में स्पेशली अंकल आँटी ने फोन कर कहा कि हम सब ने शादी में आना होगा।
मैंने अपने बचपन के दिन याद कर मम्मा से कह दिया, "हम सभी जगह जाएंगे मम्मा जहाँ आप मुझे घुमाने ले जाती थी..." मम्मा ने मेरी बातों को हँस कर हामी भर दीl लेकिन मम्मा को देखकर मुझे लगा की मेरी बाते सुनकर वह भावुक हो गयी है। मेरा भी मन भर आया...
मुझे मेरे बचपन याद आ गया। मम्मा बताती है क्योंकि एक वर्किंग वुमन होने के कारण और घर में देखभाल के लिए कोई न होने के कारण उन्होने मुझे दस माह में ही बेबी सिटिंग में रखना शुरू किया था और पूरे नौ साल की होने तक वह उसी बेबी सिटिंग में रही...
बचपन मे उस बेबी सिटिंग के अंकल आँटी और उनके परिवार के सभी लोगों से मुझे बेहद प्यार मिला। उस प्यार को क्या मैं कभी भूल पाऊँगी? शायद कभी नहीं...
उन्होंने हमे कभी भी यह महसूस नहीं होने दिया कि हमारा कोई रिश्तेदार मुंबई में नहीं है...
मम्मा कहती है एक वर्किंग वुमन होने के कारण उन्हें मुझे पालने के लिए कठिनाईयाँ आयी लेकिन हर बार बेबी सिटिंग के अंकल आँटी और उनके परिवार के कारण सब कुछ आसान होता गया।
हम सब लोग शादी में गये। मुझे देखकर वे सब खुश हो गये। उनकी वह नन्ही मिताली अब बड़ी हो गयी थी। अब तो कॉलेज के फाइनल ईयर में आ गयी है।
परिवार के सभी सदस्य से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ग्यारह साल के लंबे अंतराल के बाद भी उन्होंने मुझे उसी तरह प्यार दिया। अब अंकल नही रहे...मुझे उनकी कमी महसूस हुयी...
देखा जाये तो आज की दुनिया मे बेबी सिटिंग वालों को या फिर क्रेच वालों को कौन याद रखता है भला?
लेकिन जैसे कि अंकल आँटी ने बताया था कि मैं उनके बेबी सिटिंग में आयी हुई पहली बच्ची थी तो जाहिर है कि उन्होंने मुझे बेहद प्यार दिया।
सच मे रिश्ते सिर्फ़ रिश्तेदारों से नही बनते... रिश्तें वहाँ भी पनपते है जहाँ प्यार और खुलूस मिलता है...और वे दिल कि गहराई तक उतर जाते है और निभाये भी जाते है...