Charumati Ramdas

Horror Crime

3  

Charumati Ramdas

Horror Crime

धनु कोष्ठक - २३

धनु कोष्ठक - २३

10 mins
165


लेखक: सिर्गेइ नोसव 

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 

13.07 

 

घुड़सवार. मॉनेस्ट्रीज़. नदी का झुलसा हुआ तल. लकड़ी के खंभे, समान रूप से एक ओर को झुके हुए, स्तेपी से अनंत की ओर बिजली के तारों को खींच रहे हैं...

किनीकिन के पीछे पीछे हॉल में वापस न लौटना पड़े, इसलिए कपितोनव कॉरीडोर में प्रदर्शित तस्वीरों को देखता है. किसी की मंगोलिया यात्रा का विवरण था इन तस्वीरों में. कपितोनव पर्यटन का ख़ास शौकीन नहीं था. वह ख़ास घरघुस्सू है.

हर पर्यटक दो पहियों वाली गाड़ी पर सामान ले जा रहा है – ये सींगों वाले याक हैं: मंगोल एक स्थान से दूसरे स्थान को जा रहा है. फ़ोल्ड किया हुआ तंबू, घरेलू सामान, पोटलियाँ, सोलर-बैटरीज़ और डिश-एन्टेना.

वह जानता था कि वहाँ ख़ूब सारे तालाब हैं, मगर सोचा नहीं था कि वो इतने बड़े-बड़े होंगे. जैसे कोई समुन्दर हो – लहरें चट्टानों से टकरा रही हैं. कहीं पढ़ा था कि मंगोल लोग मछली नहीं खाते. मछली – हमारी दुनिया का जीव नहीं है, दूसरी दुनिया का है.

सुबह की इंटरव्यू-सुन्दरी, “तीन अंकों वाली संख्या”, कपितोनव से पूछती है कि मैथेमेटिक्स की सभी शाखाओं में से उसने कॉन्फॉर्मल ट्रान्सफॉर्मेशन्स को ही क्यों चुना. येव्गेनी गिन्नादेविच, कहीं ये जादू की याद तो नहीं दिलाते? आप वास्तविक वैल्यूज़ से संबंधित हमारे क्षेत्र को काल्पनिक वैल्यूज़ वाली दूसरी दुनिया में ले जाते हैं, क्योंकि लाप्लास ऑपरेटर अपरिवर्तनीय है, और वहाँ वह सब हल करते हैं, जिसे यहाँ करने की अनुमति नहीं है. कहीं इसमें शैमानिज़्म तो नहीं है?

 “वीका (न जाने क्यों उसने तय कर लिया कि उसका नाम वीका है), तुम प्रतिकूल सिद्धांतों का प्रतिपादन कर रही हो.”

 “एव्गेनी गिन्नादेविच, प्लीज़, लाप्लास ऑपरेटर के बारे में बताइए और ये भी बताइए, कि उन जगहों पे असाधारण क्या है...क्या वहाँ मछली होती है?”

 “मैं बहुत बड़ा घरघुस्सू हूँ.”

वह एक पैर से दूसरे पर खड़ा हुआ, गिरते गिरते बचा. आँखें फाड़ कर देखा. नहीं, पैरों पर मज़बूती से खड़ा है.

ये है शमान अपनी लम्बी ढोलक के साथ. दूसरी तस्वीर में – बच्चे और एक बड़ा कुत्ता.

घर से, बाइ द वे, कुछ नहीं आया था – कपितोनव ने देखा कि कोई मैसेज तो नहीं है. माफ़ करने की प्रार्थना की, बेशक, वह उम्मीद नहीं करता, और उसे माफ़ी के लब्ज़ों की ज़रूरत भी नहीं है. मगर जहाँ तक वह आन्ना एव्गेनेव्ना को जानता है, बेटी को चाहिए कि इस परिस्थिति में अपने बारे में याद दिलाये. उदासीनता से. कम से कम उदासीनता से ही सही. मगर चुप्पी साधे हुए है. कहीं कुछ हो तो नहीं गया?

इस बीच अपने समय पर


13.18

मीटिंग ख़त्म हो गई, और कॉन्फ्रेन्स के डेलिगेट्स, भूखे और परेशान, फिर से हॉल से बाहर आ जाते हैं.

अब वे बातें कर रहे हैं, इधर-उधर डोलते हुए – कॉरीडोर में, सीढ़ियों पर, हॉल में (जो वहाँ रह गए थे), मगर फॉयर में नहीं, क्योंकि फॉयर – अब चुनावी गतिविधियों का क्षेत्र बन गया है और चतुर जादूगरों को समय से पहले चुनावी-पेटियों के क़रीब आने की इजाज़त नहीं है. दो मज़बूती से सील की गईं चुनावी पेटियाँ मेज़ों पर रखी गई हैं: एक गिल्ड के बोर्ड के चुनाव के लिए, दूसरी उसके प्रेसिडेंट के चुनाव के लिए. पहली चुनाव पेटी के लिए मत-पत्र छप गये हैं और सेक्रेटरी ने उन पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं, और दूसरी के लिए – अभी-अभी समाप्त हुई मीटिंग के परिणामों के मुताबिक – प्रिंटर मत-पत्र छाप रहा है.

प्रेसिडेंट साथियों का उत्साह बढ़ाता है:

 “महाशय, बस थोड़ा इंतज़ार और कीजिए. अभी वोट देंगे और फिर लंच के लिए जाएँगे!”


डेलिगेट्स सन्देह से चुनाव पेटियों की ओर देख रहे हैं: वे स्टेज-जादूगरों के पारंपरिक बक्सों जैसी ही लग रही हैं. और ऑडिट कमिटी के सदस्य भी संदेह से डेलिगेट्स की तरफ़ देख रहे हैं, जो वोटिंग-पेटियों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

 “चलिए, चलिए. रिबन के अन्दर मत आइये!”

ये रिबन आने जाने के रास्ते को फॉयर – भावी चुनावी-ज़ोन – से अलग करता है.

 “प्लीज़, चुनावी-पेटियों को सम्मोहित न करें. आगे चलिए, प्लीज़.”


मगर हर इन्सान, आगे चलने से पहले चुनावी-पेटियों के बारे में ज़रूर कुछ न कुछ कहता है, - पूछता है कि कहीं उसमें दुहरी तली तो नहीं है, और कहीं उनमें एक-एक लड़की तो छुपी हुई नहीं है, मिसाल के तौर पर, झिलमिलाते स्विमिंग सूट में.


‘तालाब’ ने कपितोनव को सोफ़े के एक कोने में गोबी के रेगिस्तान की तस्वीर के नीचे बैठे हुए देखा.

 “आप चले गए, मैं डर गया था.”

 “मैं कहाँ जा सकता हूँ?” कपितोनव कहता है.

 “मैंने आपका प्रोग्राम-डाइरेक्टर से परिचय करवाया था, मगर लगता है कि वह आपके दिमाग़ में ‘नोट’ नहीं हुआ है.”

 “क्यों नहीं? बिल्कुल नोट हो गया है. और आदमी नहीं, औरत है.”

 “तब, बढ़िया है. पता है, मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है, कि आप अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर ही वोट देंगे, मगर, इसलिए, कि मेरी अंतरात्मा मुझे न कचोटे, मैं आपको बताऊँगा, कि आपके दोस्त, जिनमें, उम्मीद करता हूँ, कि मैं पहला हूँ, कैसे वोटिंग करते हैं.”

किनीकिन से बात करने के बाद कपितोनव के दिल का बोझ हल्का हो गया था, इसलिए उसे इससे कोई फ़रक नहीं पड़ता था कि कैसे वोटिंग की जाए. मगर, नहीं. वह इतना भी नीचे नहीं गिरेगा कि ताशबाज़ों और हाइपरचीटर्स के साथ कल हुए झगड़े के बाद उनको वोट दे दे, और यहाँ वह तालाब के सम्पर्क में है. वह वादा करता है कि सही सही वोट देगा.

 “क्या आपके पास नेक्रोमैन्सर का फ़ोन नंबर है?” कपितोनव पूछता है.

 “आपको किसलिए चाहिए?” ‘तालाब’ चौकन्ना हो जाता है.

 “उसके पास मेरी ब्रीफ़केस है. वापस लेना चाहता था.”

 “फ़ोन नंबर नहीं दे सकता. मगर आप परेशान न हों, वह अभी आ जाएगा. एक भी वोट खोना नहीं चाहिए. उसने अभी-अभी मुझे फ़ोन किया है.”

 “और वह गया कहाँ था, क्या उसने कुछ बताया?”

 “मैंने नहीं पूछा.”

 “सच? वह पूरे दिन सेशन्स में नहीं था, और आपने नहीं पूछा?”

 “जब वह आएगा, तो आप ख़ुद ही पूछ लीजिए. मगर ये बुरी सलाह है. अच्छी ये है: बेहतर है, कि किसी भी बारे में न पूछें. जैसे कि मैं. क्या आपके लिए ये ज़रूरी है?”

 “क्या मैं कम से कम इतना जान सकता हूँ कि नेक्रोमैन्सर महाशय का नाम क्या है. मैण्डेट कमिटी के प्रेसिडेण्ट ने कहा कि ये कोई सीक्रेट नहीं है.”

 “तब आप मैण्डेट कमिटी के प्रेसिडेण्ट से ही पूछ लेते.”

 “इन्नोकेन्ती पित्रोविच, है ना?”

 “मैं मैण्डेट कमिटी का प्रेसिडेण्ट नहीं हूँ. बाइ द वे, आपने मुझसे वादा किया था कि पार्टीशन के पीछे मुझे अपना प्रोग्राम दिखाएँगे.”

 “ ‘बाइ द वे’?” कपितोनव दुहराता है. “क्या कोई संबंध है?”

 “कैसे नहीं है? हमारी दुनिया में हर चीज़ संबंधित है, हरेक चीज़ से.”


कपितोनव प्रतिवाद करना चाहता है: उसे लगता है कि हमारी दुनिया में रैण्डम-फ़ैक्टर बहुत बड़ा है, मगर तभी घोषणा होती है कि सब तैयार है और शुरू करने का समय आ गया है.

13.25

 

चुनाव अनुशासित रूप से सम्पन्न होते हैं, बिना किसी गड़बड़ी के.

वोट दे चुके लोग सड़क के पार वाले कैफ़े में लंच के लिए जाते हैं.

कपितोनव अपने वादे के मुताबिक़ जिसका नाम काटना है, काट देता है, और अपना भी (वह भूल गया था, कि वह भी एक उम्मीदवार है, और उसे अपना नाम बुलेटिन में देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ था).


13.58

 

कैफ़े सड़क के पार ही है. खाना वैसा ही है.

और ये ‘खाना’ क्या होता है? नहीं, ये तो समझ में आता है कि ‘खाना’ क्या होता है, ये समझ में नहीं आता कि ‘खाने’ के साथ क्या करते हैं – किस क्रिया को वह अपने ऊपर होने देता है?

’खाना’ खाया जाता है, - और ‘खाने’ के बारे में सब कुछ सही-सही बताया जा सकता है, मगर फिर भी, ज़्यादा एब्स्ट्रेक्ट रूप में कहें, तो ‘खाने’ के साथ क्या होता है, अगर ‘खाना’ शब्द से मेज़ पर हो रही लम्बी प्रक्रिया के बारे में सोचें, जिसमें भोजन की नितांत आवश्यकता होती है?

‘खाना’ लम्बा खिंच रहा है? ‘खाना’ हो रहा है? क्या ‘खाने’ के होने की कोई जगह होती है?

आम तौर से, ’खाना’, जिसमें कपितोनव हिस्सा लेता है, उसकी एक जगह है, निःसंदेह, उसका अस्तित्व है, वह लम्बा खिंचता है, चलता है, पूरा होता है – दोस्ताना और सुकून भरे ‘दोस्तों के खाने’ के वातावरण में.

‘खाना’ अच्छी तरह खाया जाता है.

कपितोनव को याद आया, कि ‘खाने’ के बारे में क्या कहते हैं: ‘खाना’ चल रहा है.

इस दृष्टि से ‘खाना’ जीवन की याद दिलाता है.

या जीवन ‘खाने’ की याद दिलाता है.

14.00                  

 

ये है कपितोनव, वो ठण्ड़ा वेजिटेबल सूप खा रहा है. डेलिगेट्स को लंच के दो विकल्प दिए गए थे – पहले में सामान्य सूप, दूसरे में ठण्डा सूप. कल हरेक ने अपने व्यक्तिगत मेन्यू में ‘सही’ निशान बनाया था. सर्दियों के कारण ज़्यादातर लोग गरम सूप ले रहे थे. इस कॉन्फ़्रेन्स में देर से आने के कारण कपितोनव के पास सीमित विकल्प हैं. ऊपर से उसे ठण्डा सूप अच्छा लगता है. सर्दियों में भी.

खाना, या डिनर कह लीजिए – मेज़ों पर हो रहा है: यहाँ छह-छह सीटों वाली मेज़ें हैं. नीले लबादे में ईवेन्ट्स-आर्किटेक्ट और कपितोनव को, कॉन्फ़्रेन्स में देर से पहुँचने के कारण, आख़िरी, लम्बी मेज़ पर बैठना पड़ा. इस तंग मेज़ पर उनके साथ बैठे थे – हेराफ़ेरी वाला पित्रोव और माइक्रोमैजिशियन अदिनोच्नी. दो कुर्सियाँ ख़ाली थीं.

हेरा फेरी वाले पित्रोव ने सूप का एक चम्मच चखकर नेक्रोमैन्सर के बारे में दिलचस्पी दिखाना शुरू किया.

 “नेक्रोमैन्सर महाशय,” ईवेंट्स-आर्किटेक्ट जवाब देता है, “शायद ही आए.”

 “ऐसा क्यों?” कपितोनव चौकन्ना हो गया.

 “क्योंकि यहाँ मैं हूँ,” ईवेंट्स-आर्किटेक्ट जवाब देता है.

 “और काल-भक्षक?” अदिनोच्नी पूछता है.

 “काल-भक्षक किसी अन्य कारण से नहीं आएगा.”

वे खा रहे हैं.

खाने के दौरान हर जगह बातचीत चल रही है. आवाज़ें आती हैं:

 “काश, आपको पता होता, कि इंडिया में हमें कैसे खिलाया गया था – फ़कीरों के फ़ेस्टिवल में!”

 “क्या कोई फ़िश-मीटबॉल्स को चॉकलेट-ट्रफ़ल्स में बदल सकता है?”

 “ये सवाल श्राम के लिए है, उसे ‘सम्मोहन’ की क्रिया आती है.”

 “मीशा, तुम तो गए!”

 “ट्रफ़ल्स, ट्रफ़ल्स!”

 “मगर, सब के लिए!”

 “साथियों, जो भी आपको दिया जा रहा है, खाइए,” श्राम जवाब देता है. “आप तो समझ सकते हैं कि फ़िश-मीटबॉल्स और ट्रफ़ल्स की क़ीमत में कितना फ़र्क होता है? ये बड़ी महंगी चीज़ है.”

खाने ने सबको शांत कर दिया है – खाने के दौरान सबके पास एक ही काम है: खाने पर काम करना.

 “दोस्तों, अटेन्शन! मैक्सिम नेगराज़्दक, अपना जादू दिखा रहे हैं!”

 “ये ढिबरी देख रहे हैं?” मैक्सिम नेगराज़्दक उठ कर खड़ा हो गया. “बड़ी, भारी. अब मैं इसे निगल जाऊँगा.”

ढिबरी तर्जनी पर चढ़ी हुई थी. हेराफेरी वाला – निगलखोर मैक्सिम नेगराज़्दक फ़ोर्क से ढिबरी पर मारता है, धातु की आवाज़ दिखाते हुए. ढिबरी से मेज़ पर ठकठक करता है, लकड़ी की आवाज़ प्रदर्शित करते हुए. मुँह खोलता है, वहाँ ढिबरी घुसाता है, और कुछ रुक कर निगल लेता है.

उसकी आँखें सामान्य रूप से बाहर निकलती हैं, और कपितोनव समझ नहीं पाता, कि क्या ये आर्टिस्टिक ट्रिक थी या शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया. 

मैक्सिम नेगराज़्दक क्रैनबेरी-जूस पीकर ढिबरी को अन्दर धकेल देता है.

लोग तालियाँ बजाते हैं, मगर सब नहीं.

 “क्या वह सचमुच में निगल गया है?” कपितोनव अपने साथ खाना खा रहे व्यक्तियों से पूछता है.

 “जोकर ही जाने,” माइक्रोमैजिशियन अदिनोच्नी कहता है. “अगर मेरे बस में होता, तो मैं अखाद्य वस्तुओं वाले प्रोग्राम पर रोक लगा देता.”

 “ऐसा नहीं हो सकता,” हेराफ़ेरी वाला पित्रोव कहता है. “इसके पीछे बड़ी परंपरा है. तलवार खाने वाले, कांच खाने वाले...”

फ़िश-मीटबॉल्स के बदले फ़िश का एक और प्रकार पेश किया जाता है, ‘कॉड’ भरे आलू वड़े.

 “साथियों,” मोबाइल हटाते हुए ‘तालाब’ उठकर कहता है. “गुड एपेटाइट, मगर मेरे पास दो ख़बरें हैं, और दोनों ही अच्छी हैं. पहली : ऑडिट कमिटी साढ़े तीन बजे तक काम पूरा कर लेगी. और दूसरी : अभी अभी पक्की ख़बर आई है कि हॉटेल का फ़ायरप्लेस वाला हॉल हमारे पास रहेगा. ग्राण्ड-डिनर सही समय पर और अपनी ही जगह पर होगा!”

डेलिगेट्स यंत्रवत् तालियाँ बजाते हैं, और उनके मुँह से “हुर्रे” भी निकलता है. और कोई व्यक्ति चिल्लाता है:

 “माफ़ किया!”

खाने के दौरान हेराफ़ेरी वाला पित्रोव ईवेंट्स-आर्किटेक्ट को कनखियों से देख लेता था, आख़िर में उसने पूछ ही लिया:

 “मैं समझ नहीं पाया कि आप करते क्या हैं, मगर मुझे ये जानने में दिलचस्पी है, कि अपनी कला के बारे में आपकी ख़ुद की क्या राय है? क्या आप समझते हैं कि उसका जादूगरी से कोई संबंध है?”

 “मतलब, आप कहना चाहते हैं कि जादू के खेलों से?” अपने ओवर-ऑल का स्ट्रैप ठीक करते हुए ईवेंट्स-आर्किटेक्ट उसे सुधारता है.

 “हाँ, आपकी कला के लिए इस शब्द का प्रयोग करने से मैं घबरा रहा था.”

“ ‘जादू’ शब्द से मुझे डर नहीं लगता. प्रोफ़ेशनल क्षेत्र में हालाँकि वह काफ़ी घिसापिटा हो गया है. मगर जब हम ‘जादू’ शब्द का प्रयोग करते हैं, तो हमें इस महान शब्द के सारे अर्थों पर ध्यान देना होगा. ”

 “ख़ासकर आपके मुँह से ये सुनकर ख़ुशी हुई.”

 “और फिर, ऐसी चीज़ लेते हैं, जैसे युनिवर्स. युनिवर्स का प्रादुर्भाव, ये बड़ा जादू नहीं तो और क्या है. वह, जिसे हम ‘बड़ा-विस्फ़ोट’ कहते हैं, उसे ‘बड़ा-जादू’ कहना चाहिए.”

 “और क्या कोई विस्फ़ोट हुआ था? कुछ लोग ये मानते हैं कि कोई विस्फ़ोट-बिस्फ़ोट नहीं हुआ था.”

 “हो सकता है कि ये ध्यान बंटाने का तरीक़ा हो?” माइक्रोमैजिशियन अदिनोच्नी बातचीत में कूद पड़ा

 “युनिवर्स के संदर्भ में ‘ध्यान हटाने का तरीक़ा’ कहना, निःसंदेह अपमानजनक है. मगर पहली बार में ऐसा भी कह सकते हैं. आप सही कह रहे हैं, सबको ‘असाधारणता’ में दिलचस्पी है. मगर इसकी कोई गारंटी नहीं है, मुख्य बात – कुछ और ही है.”  



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