चुक और गेक - 5
चुक और गेक - 5
लेखक: अर्कादी गैदार
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
लगभग शाम होते-होते, आह-उह करते, ऊंघते हुए तायगा से हैरान होते हुए, बिना किसी की नज़रों में पड़े, वे जा रहे थे. मगर चुक को, जिसे गाड़ीवान की पीठ के पीछे से रास्ता अच्छी तरह नज़र नहीं आ रहा था, बोरियत महसूस होने लगी. उसने मम्मा से पेस्ट्री या ‘बन’ के लिए पूछा. मगर मम्मा ने न तो उसे पेस्ट्री दी, ना ही ‘बन’. तब उसने मुँह बना लिया और कुछ भी न कर सकने के कारण गेक को धक्का देना और किनारे की तरफ दबाना शुरू कर दिया.
पहले तो गेक धीरज से सरकता रहा, मगर फिर उसे गुस्सा आ गया और उसने चुक पर थूक दिया. चुक को बहुत गुस्सा आया और वह लड़ाई पर उतर आया. मगर, चूंकि उनके हाथ भेड़ की खाल के फ़र वाले ओवरकोटों में बंधे हुए थे, इसलिए वे कुछ नहीं कर सके, सिवाय टोपियों से ढंके सिरों से एक दूसरे को धक्का देने के.
मम्मा ने उनके तरफ देखा और हंसने लगी. और तभी गाड़ीवान ने घोड़ों पर चाबुक बरसाया – और घोड़े तीर की तरह भागे. दो झबरे, सफ़ेद खरगोश रास्ते पर उछले और नाचने लगे. गाड़ीवान चिल्लाया:
“ ओय, ओय! ...संभलना: दब जाओगे!”
शरारती खरगोश खुशी खुशी जंगल की तरफ भाग गए. चेहरे पर ताज़ी हवा बह रही थी. और, मजबूरन एक दूसरे से चिपक कर चुक और गेक स्लेज में पहाड़ के नीचे तायगा से और चाँद से मिलने जा रहे थे, जो अब पास ही स्थित नीले पहाड़ों के पीछे से ऊपर आ रहा था.
बिना किसी आदेश के घोड़े एक छोटी-सी बर्फ से ढंकी झोंपड़ी के पास खड़े हो गए.
“रात यहाँ बिताएंगे,” गाड़ीवान ने बर्फ में कूदते हुए कहा, “ये हमारा स्टेशन है.”
झोंपड़ी छोटी थी, मगर मज़बूत थी.
गाड़ीवान ने जल्दी से चाय की केतली गरम की: स्लेज से खाने-पीने के सामान वाली बैग लाये.
सॉसेज तो इतना जम गया था और कड़ा हो गया था, कि उससे कील भी ठोंकी जा सकती थी. सॉसेज को उबलते पानी से अच्छी तरह गरम किया गया, और ब्रेड के टुकड़ों को गरम स्टोव पर रखा गया.
चुक को भट्टी के पीछे एक टेढ़ी-मेढ़ी स्प्रिंग मिली, और गाड़ीवान ने उसे बताया कि यह स्प्रिंग जाल की है, जिससे हर तरह के जंगली जानवर को पकड़ा जाता है. स्प्रिंग पर जंग लगी थी और वह यूं ही बेकार पडी थी. ये बात चुक फ़ौरन समझ गया.
कुछ खाकर, चाय पीकर सो गए. दीवार के पास लकड़ी का चौड़ा पलंग था. गद्दे के बदले उस पर सूखे पत्ते बिछाए गए थे.
गेक को न तो दीवार के पास सोना अच्छा लगता था, न ही बीच में, उसे किनारे पर सोना अच्छा लगता था. और हालांकि वह बचपन से गाना सुनता आ रहा था : “बाय-बाय-लाडले, सोना नहीं किनारे”, मगर फिर भी गेक हमेशा किनारे पर ही सोता था.
अगर उसे बीच में सुलाया जाता, तो वह नींद में सबके कंबल खीच लेता, कुहनियाँ मारता और चुक के पेट पर घुटना मारता रहता.
बिना कपड़े उतारे और भेड़ की खाल वाले ओवरकोटों से खुद को ढंककर, वे सो गए. चुक दीवार के किनारे, मम्मा बीच में, और गेक किनारे पर.
गाड़ीवान से मोमबत्ती बुझाई और भट्टी के ऊपर चढ़ गया. सभी फ़ौरन सो गए. मगर, बेशक, जैसा हमेशा होता है, गेक को प्यास लगी और वह जाग गया.
ऊंघते हुए उसने नमदे के जूते पहने, मेज़ के पास आया, केतली से पानी पिया और खिड़की के सामने स्टूल पर बैठ गया.
चाँद बादलों के पीछे था और, छोटी सी खिड़की से बर्फ के ढेर काले-नीले प्रतीत हो रहे थे.
“इत्ती दूर आये हैं हमारे पापा!” गेक को अचरज हुआ. और उसने सोचा कि शायद, इस जगह से आगे दुनिया में कोई और जगह नहीं है.
गेक ने ध्यान से सुना. उसे लगा, कि खिड़की के बाहर कोई खटखटा रहा है. ये खटखटाहट भी नहीं थी, बल्कि किसी के भारी-भारी कदमों के नीचे बर्फ चरमरा रही थी. ऐसा ही था! अँधेरे में किसी ने गहरी सांस ली, सरसराया, मुड़ गया, और गेक समझ गया कि खिड़की के पास से रीछ गुज़रा है.
“दुष्ट रीछ, तुझे क्या चाहिए? हम इतनी देर से पापा के पास जा रहे हैं, और तू हमें खाना चाहता है, ताकि हम उन्हें कभी भी न देखें?...नहीं, भाग जा, वरना लोग तुझे किसी बढ़िया बन्दूक या तेज़ धार वाली तलवार से मार डालेंगे!”
गेक यह सब सोच रहा था और बडबड़ा रहा था और उत्सुकता से तंग खिड़की के बर्फ जमे कांच से माथा सटा रहा था.
मगर तेज़ी से भागते हुए बादलों के पीछे से चाँद तेज़ी से बाहर आया. काले-नीले बर्फ के टीले नर्म मटमैली आभा से चमकने लगे, और गेक ने देखा कि रीछ तो वास्तव में रीछ नहीं है, बल्कि उनका खोला गया घोड़ा स्लेज के चारों ओर घूम रहा है और चारा खा रहा है.
चिड़चिड़ाहट हो रही थी. गेक पलंग पर चढ़ कर ओवरकोट के नीचे दुबक गया, और चूंकि उसने अभी-अभी बुरी बातों के बारे में सोचा था, इसलिए उसे सपना भी निराशाभरा ही आया.
गेक को आया अजीब सपना!
मानो भयानक तुर्वारोन
उगल रहा है, उबलता थूक,
धमका रहा है फौलादी मुट्ठी से.
चारों और है आग! बर्फ पर हैं निशान .
जा रही हैं फ़ौजी टुकड़ियां.
खींच रही हैं दूर से
टेढा-मेढा फासिस्ट झंडा और सलीब.
“रुको!” गेक ने चिल्लाकर उनसे कहा. “आप गलत जगह जा रहे हैं! यहाँ आना मना है!”
मगर कोई नहीं रुका, और किसी ने भी गेक की बात नहीं सुनी,
तब गेक ने गुस्से से टीन का सिग्नल-पाईप उठाया, वो, जो चुक के जूतों के डिब्बे में पड़ा था, और उसे इतने ज़ोर से बजाया कि लोहे की बख्तरबंद ट्रेन के विचारमग्न कमांडर ने सिर उठाया, तैश में हाथ हिलाया – और उसके भारी और भयानक हथियार फ़ौरन आग उगलने लगे.
“अच्छा है!” गेक ने तारीफ़ की. “सिर्फ और फायर कीजिये, वरना एक ही बार फायर करना उनके लिए कम होगा....”