चुक और गेक -9
चुक और गेक -9
9
लेखक: अर्कादी गैदार
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
सुबह, पौ फटते ही, वाचमैन ने अपनी थैली उठाई, बन्दूक ली, कुत्ते को साथ में लिया, स्की पर चढ़ा और जंगल में चला गया. अब सब कुछ खुद ही करना था. तीनों मिलकर पानी लाने गए. खड़ी चट्टान वाली पहाडी के पीछे बर्फ के बीच झरना था. पानी से घनी भाप निकल रही थी, जैसे चाय की केतली से निकलती है, मगर जब चुक ने धार के नीचे उँगली रखी, तो पता चला कि पानी तो खुद बर्फ से भी ज़्यादा ठंडा है.
फिर वे ईंधन के लिए लकडियाँ घसीटते हुए लाये. मम्मा को रूसी भट्टी जलाना नहीं आता था, इसलिए लकडियाँ बड़ी देर तक नहीं जलीं. मगर जब वे जल उठीं, तो लौ इतनी गरम थी, कि सामने वाली दीवार की खिड़की पर जमी बर्फ फ़ौरन पिघल गई. और अब कांच से जंगल की सारी किनार पेड़ों समेत दिखाई दे रही थी जिस पर मैगपाई फुदक रहे थे, और नीले पहाड़ों की चोटियाँ भी नज़र आ रही थीं.
मम्मा को मुर्गियां छीलना तो आता था, मगर खरगोश को छीलने की नौबत अब तक नहीं आई थी, और उसने इस काम में इतना समय लगाया, कि उतने में बैल या गाय को भी खाल निकालकर काटना संभव था.
गेक को यह खाल निकालने का काम बिल्कुल पसंद नहीं आया, मगर चुक ने खुशी-खुशी मम्मा की मदद की, और इसके लिए उसे खरगोश की पूंछ इनाम में मिली, इतनी हल्की और रोएंदार कि अगर उसे भट्टी से फेंको, तो वह आराम से पैराशूट की तरह तैरते हुए फर्श पर गिर जाती.
खाने के बाद वे तीनों घूमने के लिए निकले.
चुक मम्मा को मना रहा था कि वह साथ में बंदूक ले ले, या कम से कम बन्दूक की गोलियां ही रख ले, मगर मम्मा ने बन्दूक नहीं ली.
बल्कि, उसने जानबूझकर बन्दूक को एक ऊंचे हुक से टांग दिया, फिर स्टूल पर चढ़ गई, बन्दूक की गोलियों को शेल्फ के सबसे ऊपर वाले खाने पर घुसा दिया और चुक को चेतावनी दी, कि अगर उसने एक भी कारतूस को हाथ लगाया, तो फिर कभी अच्छी ज़िंदगी की उम्मीद न रखे.
चुक का चेहरा लाल हो गया और वह फ़ौरन वहाँ से दूर हो गया, क्योंकि उसकी जेब में एक कारतूस पहले से ही पड़ा था.
आश्चर्यजनक थी यह सैर! वे एक के पीछे एक, संकरे रास्ते से झरने की ओर चले. उनके ऊपर ठंडा, नीला आसमान चमक रहा था; परी कथाओं के महलों और टॉवर्स की तरह, नीले पहाड़ों की नुकीली चट्टानें आसमान को छू रही थीं, बर्फीली खामोशी में उत्सुक मैगपाई तीखी आवाज़ में चहचहा रहे थे. देवदार की घनी शाखाओं के बीच भूरी, फुर्तीली गिलहरियाँ फुदक रही थीं. पेड़ों के नीचे, नरम, सफ़ेद बर्फ पर अनजाने जानवरों और पंछियों के पैरों के विचित्र निशान थे.
तायगा में कुछ कराहा, गुनगुनाया, और टूट गया. हो सकता है कि टहनियों को तोड़ते हुए पेड़ की चोटी से जमी हुई बर्फ का पहाड़ गिर पडा हो.
पहले, जब गेक मॉस्को में रहता था, तो उसे ऐसा लगता था, कि पूरी धरती बस मॉस्को से ही बनी है, मतलब, रास्तों से, बिल्डिंगों से, ट्रामों से और बसों से.
मगर अब तो उसे ऐसा लग रहा था, कि सारी धरती ऊंचे, ऊंघते हुए जंगल से बनी है.
और वैसे, अगर गेक के ऊपर सूरज चमक रहा होता, तो उसे यकीन हो जाता कि पूरी धरती पर न कहीं बारिश है, ना बादल.
और अगर वह खुश होता, तो वह सोचता, कि दुनिया में सभी अच्छे हैं, और खुश है.