Charumati Ramdas

Children Stories

4  

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चुक और गेक - 6

चुक और गेक - 6

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लेखक: अर्कादी गैदार 

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 


 

 मम्मा की नींद इसलिए टूटी, क्योंकि उसके दोनों प्यारे बेटे दोनों तरफ से बेचैनी से उसे धकेल रहे थे और करवटें बदल रहे थे.

वह चुक की ओर मुडी और उसे महसूस हुआ कि किनारे से उसके बदन में कोई कड़ी और नुकीली चीज़ चुभ रही है. उसने कंबल के नीचे हाथ से टटोला और जाल वाली स्प्रिंग बाहर निकाली, जिसे किफ़ायती चुक चुपके से अपने साथ बिस्तर में ले आया था.

मम्मा ने स्प्रिंग को पलंग के पीछे फेंक दिया. चाँद की रोशनी में उसने गेक के चहरे की ओर देखा और समझ गई कि उसे परेशान करने वाला सपना आ रहा है.

सपना कोई स्प्रिंग तो नहीं है, और उसे बाहर नहीं फेंक सकते. मगर उसे शांत किया जा सकता है. मम्मा ने गेक को पीठ से एक करवट लिटा दिया और, हिलाते हुए हौले से उसके गरम माथे पर फूंक मारी.

गेक ने जल्दी ही गहरी सांस ली, मुस्कुराया, और इसका मतलब यह था कि बुरा सपना ख़त्म हो गया था.

तब मम्मा उठी और स्टॉकिंग्स में, बिना फेल्ट के जूतों के, खिड़की के पास आई.

अभी उजाला नहीं हुआ था, और आसमान सितारों से भरा था. कुछ तारे काफी ऊंचे चमक रहे थे, और कुछ अँधेरे तायगा के पीछे की ओर, काफी नीचे चमक रहे थे.

और – अचरज की बात थी – वहीं और उसी तरह, नन्हें गेक की तरह, वह सोच रही थी, कि इस जगह से आगे, जहाँ उसका बेचैन पति खिंचा चला आया था, दुनिया में कम ही जगहें होंगी.

अगले पूरे दिन रास्ता जंगल और पहाड़ों से होकर जा रहा था. चढ़ावों पर गाडीवान स्लेज से नीचे कूद जाता और बर्फ पर बगल में चलने लगता. मगर खड़ी ढलानों पर स्लेज इतनी तेज़ी से भागती, कि चुक और गेक को लगता जैसे वे घोड़ों और स्लेज समेत आसमान से सीधे धरती पर गिर रहे हैं.

आखिरकार, शाम को, जब लोग और घोड़े पूरी तरह थक चुके थे, गाडीवान ने कहा:

“तो, लो, आ गए! इस टापू के पीछे मोड़ है. यहाँ, खुले मैदान में उनकी ‘बेस’ है...एय, हो-ओ...! चलो!”

खुशी से चीखते हुए चुक और गेक उछाले, मगर स्लेज ने झटका लिया और वे धम् से फूस में गिर गए.

मुस्कुराती हुई मम्मा ने ऊनी स्कार्फ निकाल दिया और सिर्फ रोएंदार हैट में रह गई.

ये रहा मोड़. स्लेज हौले से मुडी और तीन छोटे-छोटे घरों तक आई, जो हवा से सुरक्षित छोटे से किनारे पर थे.

बड़ी अजीब बात है! ना तो कुत्ते भौंके, ना ही कोई लोग दिखाई दिए. भट्टी के पाइपों से धुआँ भी नहीं निकल रहा था. सारे रास्ते गहरी बर्फ से ढंके थे, और चारों और खामोशी थी, जैसे कब्रिस्तान में सर्दियों में होती है. सिर्फ सफ़ेद किनारी वाले मैगपाई एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुदक रहे थे.

“तू हमें कहाँ ले आया है?” मम्मा ने घबराहट से गाडीवान से पूछा. “क्या हमें यहाँ आना था?”

“जहाँ आना चाहते थे, वहीं लाया हूँ,” गाडीवान ने जवाब दिया. “ये घर कहलाते हैं “एक्सप्लोरेशन- जिओलोजिकल बेस – 3”. खम्भे पर बोर्ड भी लगा है...पढ़िए. हो सकता है आपको बेस – 4 पर जाना है? तो करीब दो सौ किलोमीटर्स एकदम अलग दिशा में जाना होगा.”

“नहीं, नहीं!” बोर्ड की ओर देखकर मम्मा ने जवाब दिया. “हमें यही ‘बेस’ चाहिए. मगर तुम देखो: दरवाजों पर ताले लगे हैं, पोर्च बर्फ से ढंकी है, मगर लोग कहाँ चले गए?”

“मुझे मालूम नहीं कि वे कहाँ जा सकते हैं,” गाडीवान भी हैरान था. “पिछले हफ्ते हम यहाँ सामान लाये थे : आटा, प्याज़, आलू, सभी लोग यहीं थे: आठ आदमी, नौंवा लीडर, वाचमैन समेत कुल दस...ये हुई न फ़िक्र की बात! कहीं भेडिये तो सब को नहीं खा गए...आप रुकिए, मैं वाचमैन के पास जाता हूँ.”

और भेड़ की खाल का ओवरकोट उतारकर गाडीवान बर्फ के टीले पार करते हुए सबसे अंतिम झोंपड़ी की तरफ गया.

जल्दी ही वह वापस लौट आया:

“झोंपड़ी खाली है, मगर भट्टी गरम है. मतलब, यहाँ वाचमैन है, मगर, लगता है कि शिकार पर निकल गया है. खैर, रात तक आयेगा और आपको सब बताएगा.”

“वो मुझे क्या बताएगा!” मम्मा ने आह भरी. “मैं खुद ही देख रही हूँ, लोग यहाँ काफी समय से नहीं हैं.”

“ये तो मुझे नहीं पता, कि वो क्या बताएगा,” गाडीवान ने जवाब दिया. “मगर कुछ न कुछ तो बताएगा, इसीलिये तो वह वाचमैन है.”

बड़ी मुश्किल से वे वाचमैन वाले पोर्च तक आये, जहाँ से एक संकरी पगडंडी जंगल को जाती थी.

वे दालान में आये और फावड़ों, झाडुओं, कुल्हाड़ियों, डंडों, जमी हुई भालू की खाल के करीब से, जो लोहे के हुक से लटक रही थी, झोंपड़ी में गए. उनके पीछे-पीछे गाडीवान उनका सामान खींचकर ला रहा था.

झोंपड़ी में गर्माहट थी. गाडीवान घोड़ों को चारा देने गया, और मम्मा चुपचाप बेहद डरे हुए बच्चो के कपडे उतारने लगी. 

“जा रहे थे पापा के पास, जा रहे थे – लो, आ गए!”

मम्मा बेंच पर बैठकर सोचने लगी. क्या हो गया है, ‘बेस’ खाली क्यों है और अब करना क्या चाहिए? क्या वापस जाएँ? मगर उसके पास तो पैसे सिर्फ इतने ही थे कि गाडीवान का किराया दे सके. मतलब, वाचमैन के वापस आने तक इंतज़ार करना होगा. मगर गाडीवान तो तीन घंटे बाद वापस चला जाएगा, और अगर वाचमैन भी जल्दी वापस न आया तो? तब क्या होगा? और यहाँ से सबसे नज़दीक के स्टेशन तक और टेलीग्राफ ऑफिस तक करीब सौ किलोमीटर्स की दूरी है!

गाडीवान भीतर आया, झोंपड़ी पर नज़र डालकर उसने नाक से गहरी सांस ली, भट्टी के पास गया और फ्लैप खोल दिया.

“वाचमैन रात तक वापस आयेगा,” उसने उन्हें धीरज बंधाया. “भट्टी में गोभी के सूप का बर्तन है. अगर वह लम्बे समय के लिए गया होता, तो वह अपने साथ सूप भी ले जाता...अगर आप कहें तो,” गाडीवान ने सुझाव दिया, “अगर बात ऐसी है, तो मैं कोई ठस-दिमाग़ नहीं हूँ. मैं आपको बिना किराए के स्टेशन तक पहुँचा दूँगा.”

“नहीं,” मम्मा ने मना कर दिया. “स्टेशन पर हमें कुछ नहीं करना है.”

फिर से चाय की केतली गरम की गई, सॉसेज गरम किया गया, खाया, पिया, और, जब तक मम्मा सामान संभालती रही, चुक और गेक गर्माहट भरी भट्टी पर चढ़ गए. यहाँ बर्च की झाड़ियों, गर्म भेड़ की खाल की और चीड़ की छिपटियों की खुशबू आ रही थी. और क्योंकि परेशान मम्मा खामोश थी, तो चुक और गेक भी खामोश ही रहे. मगर देर तक तो खामोश नहीं रह सकते, इसलिए कोई काम न होने के कारण चुक और गेक फ़ौरन गहरी नींद में सो गए.

 


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