चुक और गेक - 12
चुक और गेक - 12
12
लेखक: अर्कादी गैदार
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
अब खुशी का माहौल छा गया. अगली सुबह वाचमैन ने वह कमरा खोला, जहाँ उनके पापा रहते थे. उसने भट्टी खूब गरमाई और उनका सामान ले आया. कमरा बड़ा था, खूब रोशनी आ रही थी, मगर सब चीज़ें बेतरतीबी से बिखरी पड़ी थीं.
मम्मा फौरन कमरे को ठीक करने में लग गई. पूरे दिन वह चीज़ों को सही जगह पर रखती रही, घिसती रही, धोती रही, साफ़ करती रही.
और जब शाम को वाचमैन ईंधन का गट्ठा लाया, तो, कमरे के बदले हुए रूप और सफाई को देखकर वह रुक गया और दरवाज़े के भीतर नहीं घुसा.
मगर कुत्ता स्मेली भीतर आ गया.
वह सीधे अभी-अभी धुले फर्श पर चलकर गेक के पास गया और उसके शरीर में अपनी ठंडी नाक गड़ाई : जैसे, कह रहा हो, बेवकूफ, तुझे मैंने ढूंढा था, और इसके लिए तू मुझे खाने के लिए दे.
मम्मा खुश हो गई और उसने स्मेली को सॉसेज का एक टुकड़ा दिया. तब वाचमैन भुनभुनाया और बोला कि अगर तायगा में कुत्तों को सॉसेज खिलाया गया तो मैगपाई को हंसी आयेगी.
मम्मा ने उसके लिए भी आधा टुकड़ा काटा. उसने कहा, “धन्यवाद” और चला गया, किसी बात पर अचरज करते हुए और सिर हिलाते हुए.
ये तय किया गया कि अगले दिन नए साल के लिए क्रिसमस ट्री सजायेंगे.
कैसी-कैसी चीज़ों से उन्होंने खिलौने बनाए!
उन्होंने पुरानी पत्रिकाओं से रंगीन तस्वीरें काटीं. चिंधियों औए रुई से गुड़िया और जानवर बनाए. पापा की दराज़ से पूरा टिशू पेपर निकाला और हरे-भरे फूलों का ढेर लगा दिया.
नकचढ़ा और उदास चौकीदार भी, जब ईंधन लेकर आया, तो बड़ी देर तक दरवाज़े पर रुककर उनकी नई नई तरकीबों पर अचरज करने लगा. वह उनके लिए चाय के पैकेट की चांदी की चमकदार पन्नी और मोम का एक बड़ा टुकड़ा लाया, जो जूतों के काम के बाद उसके पास बच गया था.
ये तो ग़ज़ब हो गया! और अब खिलौनों की फैक्ट्री मोमबत्तियों के कारखाने में बदल गई. मोमबत्तियां बेढब, असमान थीं. मगर वे वैसी ही प्रखरता से जल रही थीं, जैसे खरीदी हुई, सजीधजी मोमबत्तियां जलती हैं.
अब सवाल था क्रिसमस ट्री का. मम्मा ने वाचमैन से कुल्हाड़ी मांगी, मगर उसने इस पर कोई जवाब भी नहीं दिया, और स्की पर सवार होकर जंगल में चला गया.
आधे घंटे बाद वह वापस लौटा.
ठीक है. च
लो, चाहे खिलौने इतने ख़ूबसूरत न हों, चाहे चीथड़ों से सिले खरगोश बिल्लियों की तरह लग रहे हों, चाहे सारी गुड़ियों का चेहरा एक जैसा हो – सीधी नाक और तिरछी आंखों वाला, और चाहे क्रिसमस ट्री के चमकीले कागज़ में लिपटे हुए शंकु, नाज़ुक और कांच के खिलौनों जैसे न चमक रहे हों, मगर ऐसी क्रिसमस ट्री तो मॉस्को में किसी के भी यहाँ नहीं थी. ये थी तायगा की असली खूबसूरती – ऊँची, घनी, सीधी और जिसकी टहनियां सिरों पर सितारों जैसी बिखर रही थीं.
देखते-देखते इस काम में चार दिन पलक झपकते बीत गए. और आई नए साल की पूर्व संध्या. सुबह से ही चुक और गेक को घर भेजना मुश्किल हो गया था. नीली पड़ गई नाक लिए वे बर्फ में खड़े हो जाते, इस उम्मीद में कि अभी-अभी जंगल से पापा और उनके सभी लोग बाहर आयेंगे.
मगर वाचमैन, जो स्नानगृह गरम कर रहा था, उनसे बोला कि वे बेकार ही में बर्फ में सर्दी न खा जाएँ. क्योंकि पूरी टीम सिर्फ खाने के समय तक ही वापस लौटेगी.
और, सचमुच, जैसे ही वे मेज़ पर बैठे, वाचमैन ने खिड़की खटखटाई. किसी तरह गरम कपड़े पहनकर, तीनों बाहर पोर्च में आये.
“अब देखो,” वाचमैन ने कहा, “वे अभी उस पहाड़ की ढलान पर दिखाई देंगे, जो बड़ी चोटी के दाहिनी और है, फिर वे वापस तायगा में चले जायेंगे, और तब आधे घंटे बाद सब घर में होंगे.”
और वैसा ही हुआ. पहले कुत्तों की टीम बाहर उछली, जो स्लेजों से लदी हुई गाड़ी खींच रही थी, और उसके पीछे तेज़ी से भागते हुए स्की-सवार लपके. पहाड़ों की विशालता की तुलना में वे हास्यास्पद ढंग से बेहद छोटे नज़र आ रहे थे, हालांकि यहाँ से उनके हाथ, पैर और सिर साफ़ नज़र आ रहे थे.
वे खुली ढलान पर नज़र आये और जंगल में गायब हो गए.
ठीक आधे घंटे बाद कुत्तों का भौंकना, शोर, चरमराहट, चीखें सुनाई दीं.
घर को महसूस करते हुए, भूखे कुत्ते तेज़ी से जंगल से बाहर लपके. और उनके पीछे, बिना रुके, ढलान पर नौ स्की-सवार बाहर आये. और, पोर्च में मम्मा को, चुक को और गेक को देखकर, उन्होंने भागते हुए ही स्की के डंडे उठाये और जोर से चिल्लाए: “हुर्रे!”
तब गेक अपने आप को रोक न सका, वह पोर्च से उछला और, नमदे के जूतों से बर्फ पर दनदन करते हुए ऊंचे, बढ़ी हुई दाढ़ी वाले आदमी के पास भागा, जो सबसे आगे भाग रहा था और सबसे ऊँची आवाज़ में “हुर्रे!” चिल्ला रहा था.