जादूगरनी और छोटू -नाटू
जादूगरनी और छोटू -नाटू
जादूगरनी और छोटू-नाटू
(रूसी परी कथा)
आ. चारुमति रामदास
एक समय की बात है कि किसी गाँव में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे; उनके कोई बच्चे नहीं थे. उन्होंने सारे उपाय कर लिए, भगवान से कितनी ही प्रार्थना की, मगर बुढ़िया ने किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया.
एक बार बूढ़ा जंगल गया मशरूम लेने; रास्ते में उसे बूढ़ा दद्दू मिला. कहने लगा: “मुझे मालूम है कि तू क्या सोच रहा है: तू, बस, बच्चों के बारे में सोचता रहता है. जा – गाँव में जा, हर घर से एक-एक अंडा इकट्ठा कर और उन अण्डों पर एक छड़ी रख दे; खुद ही देखना कि आगे क्या होगा!” बूढ़ा गाँव लौट आया; उनके गाँव में इकतालीस घर थे; वह सभी घरों में गया, हर घर से एक-एक अंडा इकट्ठा किया और इकतालीस अण्डों पर एक छड़ी रख दी. दो सप्ताह बीत गए, बूढ़ा देखता है, बुढ़िया भी देखती है, - और उन अण्डों से लडके पैदा हुए; चालीस हट्टे-कट्टे, तंदुरुस्त, मगर एक – मरियल और कमजोर रह गया!
बूढ़ा सब लड़कों के नाम रखने लगा; सबके नाम रख दिए, मगर आख़िरी बच्चे के लिए कोई नाम ही न मिला. “ठीक है,” उसने कहा, “तेरा नाम होगा “छोटू-नाटू”!
बूढ़े-बुढ़िया के घर में बच्चे बड़े होने लगे, दिनों से नहीं, बल्कि घंटों से बड़े होने लगे; बड़े हो गए और काम करने लगे, अम्मी-अब्बू की मदद करने लगे: चालीस जवान खेतों में जाते, और छोटू-नाटू घर का इंतज़ाम देखता.
घास काटने का समय आया; भाइयों ने घास काटी, ढेर बनाए, एक सप्ताह काम किया और गाँव वापस लौटे; जो भी खुदा ने भेजा वह खाया, और सो गए. बूढ़ा उनकी ओर देखता है और कहता है : “जवान हैं – अनुभवहीन हैं! खूब खाते हैं, गहरी नींद सोते हैं, मगर काम, शायद, कुछ नहीं किया है!”
“तुम पहले देख तो लो, अब्बू!” छोटू-नाटू ने कहा.
बूढ़ा तैयार होकर घास के मैदान में गया; देखता क्या है – चालीस ढेर बने हुए हैं: “शाबाश, बच्चों! एक हफ़्ते में कितनी घास काटी और ढेर भी बना दिए!”
अगले दिन बूढ़ा फिर से चरागाह की ओर गया, अपनी दौलत देखकर खुश होना चाहता था; आया – मगर एक ढेर नहीं था!
घर आया और कहने लगा: “आह, बच्चों! एक ढेर – गायब हो गया है”,
“कोई बात नहीं, अब्बू!” छोटू-नाटू ने जवाब दिया. “हम इस चोर को पकड़ लेंगे; मुझे सौ रूबल्स दो, और मैं ये काम कर लूंगा”.
उसने अब्बू से सौ रुबल्स लिए और लुहार के पास गया: “क्या तू मुझे ऐसी जंज़ीर बना कर दे सकता है, जो इन्सान को सिर से पैर तक बाँध सके?”
“क्यों नहीं बना सकता!”
“देख, खूब मज़बूत बनाना; अगर जंजीर पक्की हुई – तो सौ रुबल्स दूंगा, और अगर टूट गयी – तो, समझो, तुम्हारी मेहनत बेकार गई!”
लुहार ने लोहे की जंजीर बनाई, छोटू-नाटू ने उसे अपने बदन के चारों ओर लपेटा, खींचा – वह टूट गयी. लुहार ने दोगुना मज़बूत जंजीर बनाई; तो, वह ठीक-ठाक रही. छोटू-नाटू ने वह जंजीर ले ली, लुहार को सौ रुबल्स दे दिए और चला घास की रखवाली करने; ढेर के नीचे बैठ गया और इंतज़ार करने लगा.
ठीक आधी रात को मौसम गर्म हो गया, समुद्र की सतह हिलने लगी, और सागर की गहराई से एक अद्भुत घोडी बाहर निकली, भाग कर पहले ढेर के पास आई और घास खाने लगी. छोटू-नाटू उछला, उसने घोड़ी को लोहे की जंज़ीर से लपेट दिया और उस पर सवार हो गया. घोड़ी उसे घुमाती रही, पहाड़ों पर, घाटियों में; नहीं, सवार को नीचे नहीं गिरा सकी! वह रुक गयी और उससे कहने लगी: “अच्छा, भले नौजवान, जब तुम मुझ पर सवारी करने में कामयाब हो गए, तो मेरे बछेडों को ले लो”.
घोड़ी नीले समुद्र के पास गयी और जोर से हिनहिनाई : तब नीला समुद
्र हिलने लगा, और उसमें से घोड़ी के इकतालीस बछेड़े बाहर निकल कर किनारे पर आ गए; सभी एक से बढ़कर एक थे! पूरी दुनिया छान मारो, मगर ऐसे बछेड़े कहीं नहीं मिलेंगे! सुबह बूढ़े ने आँगन में हिनहिनाहट, टापों की आवाज़ सुनी; बात क्या है? और ये तो उसका बेटा छोटू-नाटू पूरा झुण्ड लेकर आया है.
“ अच्छा,” वह बोला, “भाईयों! अब हम सबके पास एक-एक घोड़ा है, चलो, अपने-अपने लिए दुल्हन ढूंढें”.
“चलो!”
अम्मी-अब्बू ने उन्हें दुआएं दीं, और चल पड़े भाई दूर की राह पर.
वे बड़ी देर तक चलते रहे, आखिर इतनी सारी दुल्हनें कहाँ ढूंढें? अलग-अलग शादी नहीं करना चाहते थे, ताकि किसी को बुरा न लगे; और ऐसी कौन सी माँ है, जो गर्व से कहेगी की उसकी इकतालीस बेटियाँ हैं?
नौजवान हजारों मील का सफ़र कर चुके; देखते क्या हैं, कि एक खड़ी पहाड़ी पर सफ़ेद पत्थर के कमरे हैं, पत्थर की ऊंची दीवार से घिरे हुए हैं, फाटकों के निकट लोहे के स्तम्भ हैं. गिना – इकतालीस स्तम्भ थे. उन्होंने इन स्तंभों से अपने शानदार घोड़ों को बाँध दिया और आँगन में गए. उन्हें मिली जादूगरनी: “आह तुम, बिन बुलाये मेहमानों! तुमने बिना पूछे अपने घोड़ों को बांधने की हिम्मत कैसे की?
“आह, बुढ़िया, चिल्ला क्यों रही है? पहले पानी पिला, खाना खिला, हम्माम में ले चल, बाद में सवाल पूछना.”
जादूगरनी ने उन्हें खाना खिलाया, पानी पिलाया, हम्माम में ले गयी और पूछने लगी:
“क्या नौजवानों, काम पर आये हो, या काम से दूर भाग रहे हो?”
“काम पर आये हैं, दादी!”
“तुम्हें क्या चाहिए?”
“अपने लिए दुल्हन ढूँढ रहे हैं”.
“मेरी लड़कियां हैं”, जादूगरनी बोली, ऊंचे कमरों में गयी और इकतालीस लड़कियों को बाहर लाई.
उन्होंने फ़ौरन सगाई कर ली, खाने-पीने लगे, घूमने लगे, शादी का जश्न मनाने लगे.
रात में छोटू-नाटू अपने घोड़े को देखने गया. शानदार घोड़े ने उसे देखा और मनुष्य की आवाज़ में बोला: “देख, मालिक! जब आप जवान बीबियों के साथ सोने जाओ, तो उन्हें अपने कपड़े पहना देना और खुद बीबियों के कपड़े पहन लेना; वर्ना हम सब ख़त्म हो जायेंगे!”
छोटू-नाटू ने अपने भाईयों से ये सब कह दिया; उन्होंने जवान बीबियों को अपने कपड़े पहना दिए, खुद बीबियों के कपडे पहन लिए और सो गए.
सब गहरी नींद में सो गए, सिर्फ छोटू-नाटू पलक नहीं झपका रहा था.
ठीक आधी रात को जादूगरनी गरजती हुई आवाज़ में बोली: “ऐ, मेरे वफादार नौकरों! बिन बुलाए मेहमानों के घमंडी सिर काट दो”.
वफादार नौकर भागते हुए आए और जादूगरनी की बेटियों के घमंडी सिर काट दिए.
छोटू-नाटू ने अपने भाइयों को जगाया और जो हुआ था, सब बताया. उन्होंने कटे हुए सिर लिए और दीवार के चारों ओर लगी लोहे की छड़ों पर रख दिए, फिर अपने घोड़े जोते और फ़ौरन वहां से निकल गए.
सुबह जादूगरनी उठी, खिड़की से देखा – दीवार के चारों ओर छड़ों से बेटियों के सिर झाँक रहे हैं; उसे बेहद गुस्सा आया, उसने अपनी अग्नि-ढाल मंगवाई, उनका पीछा करने लगी और अग्नि-ढाल से चारों ओर आग लगाने लगी. नौजवान कहाँ छुपें?
सामने नीला समुन्दर, पीछे जादूगरनी – और चारों तरफ़ आग लगा रही है, झुलसा रही है!
सभी को मरना ही था, मगर छोटू-नाटू पहले ही समझ गया था: वह अपने साथ जादूगरनी का रूमाल लाना नहीं भूला था, उसने अपने सामने उस रूमाल को हिलाया – और अचानक नीले समुन्दर में आर-पार एक पुल बन गया; शानदार नौजवान पुल पार करके दूसरी ओर चले गए. छोटू-नाटू ने दूसरी दिशा में रूमाल हिलाया – पुल गायब हो गया, जादूगरनी वापस लौट गई और भाई अपने घर चले गए.
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