चुक और गेक - 7
चुक और गेक - 7
7
लेखक: अर्कादी गैदार
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
उन्होंने नहीं सुना कि गाडीवान कैसे निकल गया और कैसे मम्मा भट्टी पर चढ़कर उनके पास लेट गई. उनकी आंख तब खुली जब कॉटेज में पूरी तरह अन्धेरा हो गया था. सभी फ़ौरन उठे, क्योंकि पोर्च में पैरों की आवाज़ सुनाई दी, फिर दालान में गड़गड़ाहट हुई – हो सकता है, कि कोई फावड़ा गिर गया हो. दरवाज़ा खुला, और हाथ में लालटेन लिए वाचमैन भीतर आया, और उसके साथ बड़ा, झबरा कुत्ता. उसने कंधे से राईफल उतारी, मारे हुए हिरन को बेंच पर फेंका और भट्टी की तरफ लालटेन उठाकर पूछा:
“क्या यहाँ मेहमान आये हैं?”
“मैं जिओलोगिकल टीम के प्रमुख सिर्योगिन की पत्नी हूँ,” मम्मा ने भट्टी से नीचे उतरते हुए कहा, “और ये हैं उनके बच्चे. अगर चाहो, तो डॉक्यूमेंट्स देख लो.”
“ये रहे डॉक्यूमेंट्स : भट्टी पर बैठे हैं,” वाचमैन चहका और उसने उत्तेजित चुक और गेक के चेहरों पर लालटेन की रोशनी डाली. “बिलकुल बाप पर गए हैं – एकदम कॉपी! खासकर ये मोटू.” और उसने चुक के बदन में उंगली गड़ाई.
चुक और गेक बुरा मान गए: चुक – क्योंकि उसे ‘मोटू’ कहा गया था, और गेक – इसलिए कि वह हमेशा चुक की अपेक्षा खुद को पापा से ज़्यादा मिलता-जुलता समझता था.
“बताइये, आप किसलिए आई हैं?” मम्मा की तरफ देखकर वाचमैन ने पूछा. “आपसे कहा गया था कि ना आयें.”
“कैसे ना आयें? किसे कहा गया था कि ना आयें?”
“हाँ, ऐसा ही कहा गया था कि ना आयें. मैं खुद सिर्योगिन से टेलीग्राम लेकर स्टेशन गया था, और टेलीग्राम में साफ़-साफ़ लिखा गया था “दो सप्ताह रुक जाओ. हमारी टीम फ़ौरन तायगा जा रही है”. जब सिर्योगिन लिखता है, “रुको” – मतलब रुकना चाहिए था, और आप अपनी मन मर्ज़ी से चल पडीं.”
“कैसा टेलीग्राम?” – मम्मा ने पलट कर पूछा. “हमें कोई टेलीग्राम नहीं मिला. – और, जैसे सहारे की तलाश में, उसने परेशानी से चुक और गेक की ओर देखा.
मगर उसकी नज़र से चुक और गेक डर के मारे आंखें फाड़ कर एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे, और फ़ौरन भट्टी में और भी गहरे घुस गए.
“बच्चों,” मम्मा ने संदेह से उनकी तरफ़ देखते हुए पूछा, - “तुम लोगों को मेरी गैरहाज़िरी में कोई टेलीग्राम मिला था?”
भट्टी के ऊपर सूखी छिपटियाँ, झाडू चरमराने लगे, मगर सवाल का जवाब नहीं आया.
“जवाब दो, दुखदायी!” तब मम्मा ने कहा. “आप लोगों को, शायद, मेरी गैरहाज़िरी में टेलीग्राम मिला था, और आप लोगों ने मुझे नहीं दिया?”
कुछ और पल बीते, और फिर भट्टी से एक सुर में दोस्ताना बिसूरने की आवाज़ सुनाई दी. चुक नीची आवाज़ में, एक सुर में रो रहा था, और गेक पतली आवाज़ में आँसू बहाते हुए.
“तो, ये है, मेरा दुर्भाग्य!” मम्मा चीखी. “यही हैं, जो मुझे कब्र में ले जायेंगे! अब आप भोंपू बजाना बंद करो और साफ़-साफ़ बताओ कि हुआ क्या था.”
मगर, यह सुनकर कि माँ कब्र में जाने की तैयारी कर रही है, चुक और गेक और ज़ोर से बिसूरने लगे, और कुछ ही देर में, एक दूसरे को मारते हुए, और एक दूसरे पर दोष लगाते हुए, उनहोंने अपनी दर्द भरी कहानी बता दी.