ड्युअल फेस…
ड्युअल फेस…
"अधूरी ख्वाहिशें और अधूरे हक़ के साथ औरतें अपनी पूरी ज़िंदगी जीती है…लोगों को बस उनकी काजल लगी गहरी आँखें और लिपस्टिक से सजे लाल होंठ नज़र आते है…
सच में औरतें किसी भी रंग में रंग जाती है…"
लेखक ने क्या खूब लिखा हैं। औरतों की ज़िंदगी में ढेर सारे विरोधाभास होते है यूँ कहे की उनकी ज़िंदगी ही विरोधाभासों से भरी होती है…
गर्भ में अगर पता चल गया की कन्या है तो उसकी भ्रूण हत्या करने में घर के सबसे नियर और डियर ही आगे रहते है… और फिर ताउम्र उसे पढ़ाया जाता है की नारियों को पूजा हमारी संस्कृति का अटूट रिश्ता है…ना जाने उसे कितनी ही देवियों के बारें में बताया जाता है… दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी और भी कई सारी…
कहने को बचपन में वह प्रिंसेस होती है…रानी बिटिया…लेकिन उसका अपना कोई घर…?
वह बड़ी हैरानी से देखती रहती है की भाई तो पब्लिक स्कूल में जाता है और वह पता नहीं क्यों गवर्नमेंट स्कूल में जाती है? थोड़ी बड़ी होने पर वह इसमें शामिल इकोनॉमिक्स को आसानी से समझ जाती है…
आजकल तो एक और चीज़ देखी जा रही है…लड़कियाँ पढ़ लिख कर नौकरी कर रही है…और शादियों के मेट्रीमोनियल कॉलम में भी लिखा रहता है की नौकरी करनेवाली लड़कियों को वरीयता दी जाएगी…
सही में लगता है की लड़के की फ़ैमिली कितनी ओपन माइंडेड और लिबरल है…लेकिन बच्चें होने के बाद और मैटरनिटी लीव के बाद जब उसे ऑफिस जॉइन करना होता है तब बच्चे को मायके में रखना ज़्यादा सुविधा जनक है यह बात कितनी आसानी से ससुराल वाले कह देते है…
ऑफ़िस में देखती है की वर्क फ्रंट में इंपोर्टेंट असाइनमेंट्स बड़े ही आसानी से मेल कलीग्स को हैंडओवर किया जाता है…मीटिंग्स में ऐसा नहीं की उनकी बातों को नहीं सुना जाता है परंतु उनके सजेशंस को कितना सीरियसली लिया जाता है यह डिबेट का विषय हो सकता है और क्या वह जानती नहीं की यह सब कितनी बारीकी से किया जाता है?
लेकिन फ़ैमिली और वर्क फ्रंट में बैलेंसिंग करना भी तो एक आर्ट है जो वह बड़े ही बेमालूम तरीक़े से करती जाती है और जो काम उसे असाइन होता है उसे कम्पलीट करते जाती है…किसी बड़े प्लेटफार्म पर भाषण में यह सुनकर की वर्क फ्रंट में महिलाएँ ज़्यादा ऐफ़िशिएंट होती है वह मुस्कुरा देती है और सब फीमेल स्टाफ़ के साथ ज़ोर ज़ोर से तालियाँ भी बजाती है…
कितनी सारी बातें है?
क्या क्या कहे वह?
किस किससे कहे वह?
लड़कियों को बचपन से यही सिखाया जाता है की हँसते हुए ठहाके नहीं लगाना है…फिर वह कैसे खुलकर हँसे भला? भई मायके के संस्कार भी तो कोई बात होती है…हाँ, परिवार में कोई उदासी वाली बात तो नहीं हुयी ना फिर घर में सजसँवर कर रहना होगा… ससुराल की यही रीत भी है और हमारी संस्कृति का हिस्सा भी है।
वह भी इन सब रंगो में रंग जाती है…मैचिंग ईयररिंग और कलफ़ लगी साड़ी पहन कर आईने के सामने सुंदर सी काली आँखों में काजल लगा लेती है।होठों में मेबीलाइन की लिपस्टिक का लाल रंग का गहरा शेड लगाती है और गॉगल उठाकर बैग कंधे में टाँग कर ऊँची एड़ियों वाली सैंडिल में ठक ठक कर गाड़ी में बैठ कर ऑफिस के लिए निकल पड़ती है…एक और जंग जीतने के लिए…