Moumita Bagchi

Horror

3.1  

Moumita Bagchi

Horror

बरसात की एक रात

बरसात की एक रात

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एक हफ्ते के लिए बेटे के साथ माॅन्ट्रियाल आई थी। अनिरुद्ध के स्कूल का एक काॅम्पीटीशन था जिसका फाइनल यहाँ पर होना था। पति रवि भी आने वाले थे साथ में परंतु ऐन वक्त पर ऑफिस का एक प्रोजेक्ट आन पड़ा था जिसके लिए उन्हें एक हफ्ते के लिए रशिया चले जाना पड़ा। अतः मुझे ही मजबूरन ऑफिस से छुट्टी लेकर कनेक्टिकट से ड्राइव करके अनिरुद्ध को लेकर यहाँ आना पड़ा था।

मैं शहर के अंदर ड्राइव तो कर लेती हूँ, ऑफिस जो जाना होता है, रोज़। वैसे अमरीका में ड्राइविंग जाने बिना आप बिलकुल अपाहिज़ से महसूस करेंगे। लेकिन लांग ड्राइव पर अकसर रवि ही चलाया करते हैं। माॅन्ट्रियाल आते समय बेटे अनिरुद्ध के सहपाठी सैम्यूएल और उसकी मामा लेज्ली भी साथ आई थी। सैम भी उसकी टीम में था। लेज्ली के साथ होने से फायदा यह हुआ था कि उसने और हमने आधा-आधा ड्राइव कर लिया था। इसलिए बातों -बातों में सफर का कुछ पता ही न चल पाया।

अक्टूबर का महीना अंत हो रहा था। चारों तरफ बड़ी ही मनोरम हेमंत ॠतु छाई हुई है ! यहाँ के लोग इसे फाॅल कहा करते हैं। शीत ऋतु के आगमन से पहले वृक्षों के पत्ते, झड़ जाने से पहले सुंदर लाल वर्ण धारण कर लेते है। कहीं लाल, कहीं पीले और कहीं नारंगी तो कहीं भूरे--- पूरे के पूरे पेड़ इस समय इन्हीं रंगों से ढके होते हैं। लाल रंग की ही अधिकता रहती है इनमें। दूर से

देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वृक्षों ने कोई लाल चादर ओढ़ रखी हो। कनाॅडा को "मैपल पत्ते का देश" कहा जाता है। अतः आपको इस समय जगह- जगह लाल चादर ओढ़े छोटे- बड़े मैपल के पेड़ों के दर्शन हो जाएंगे।

काॅम्पीटशन के बाद हम दोनों माँ- बेटे ने यह तय किया कि रोज- रोज कनाॅडा तो आना नहीं होता है। फिर रवि भी इस दिनों घर पर नहीं है, तो क्यों न थोड़ा मन्ट्रियाल घूम लिया जाए? वैसे भी कल शनिवार है और सोमवार से पहले ऑफिस और स्कूल ज्वायन नहीं करना है हमें। तो वीकेन्ड को हमने यहीं बीताने का निश्चय किया। लेज्ली और सैम को भी इन्वाइट किया था परंतु उनको घर जाने की जल्दी थी। इसलिए अपने लिए एक गाड़ी का बन्दोबस्त करके प्रतियोगिता समापन के पश्चात् शुक्रवार शाम को ही वे दोनों निकल गए थे।

शनिवार का मौसम बहुत अच्छा था। सुन्दर धूप निकली हुई थी। हालाँकि दिन का तापमान भी - 2° सेल्सियस था। लोग कह रहे थे कि जल्द ही बर्फ-बारी शुरु होनेवाली है। परंतु हमे क्या? हमें तो अगले दिन ही यहाँ से निकल जाना था। हमने अच्छा मौसम देखा और दिन भर शहर घूमते रहे। माॅन्ट्रीयाल म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट, नाट्रा डेमस चर्च, बोटानिकल गार्डन और बायोडोम देखने के बाद जमकर भूख लग रही थी। एक फ्रेच रेस्टोरेन्ट में जाकर हमने तब लंच कर लिया। फिर हम माँ- बेटे ने घूम- घूमकर काफी शाॅपिंग भी की।

लेकिन शाम से ही मौसम खराब होने लगा था। इसलिए हम जल्दी ही होटल में लौट आए थे। कल भोर- भोर निकलना था। करीब आठ - नौ घंटे की लंबी ड्राइव थी। इसलिए डिनर करके हम जल्दी-से सो गए थे।

सुबह जल्दी निकलना तो था क्योंकि शाम होने से पहले मैं घर पहुँच जाना चाहती थी। आजकल सरदियों में चार बजते ही अंधेरा छाने लग जाया करता है। परंतु आज सुबह बड़ी देर से मेरी आँखें खुली थी। घड़ी में देखा तो दस बज रहे थे। तपाक् से विस्तर पर उठ बैठी। सात- आठ बजे तक होटल से निकल जाने की सोची थी! और अभी यहीं पर दस बज गया है!!

" ओह, शीट्! अभी ब्रेकफास्ट करके निकलते- निकलते साढ़े- ग्यारह- बारह तो आराम से बज जाएंगे।"

अनिरुद्ध मेरे से पहले जग चुका था। वह खिड़की के पास खड़ा होकर बाहर कुछ देख रहा था। हमारा होटल 402 नंबर हाइवे के पास था। शायद गाड़ियाँ देख रहा होगा! ऐसा सोचकर मैं पलंग से उतरी ही थी कि आवाज़ सुनकर अनिरुद्ध ने इधर देखा और खुशी से चहककर बोला,

" मम्मा देखो, स्नो फ्लेक्स।"

उसकी बात सुनकर मैं भी खिड़की के पास गई-

" ओह, माॅय गाॅड! " पूरी कायनात् बर्फ की चादर ओढ़े हुई थी। वृक्ष सारे सफेद, सारी बिल्डिंगे सफेद, पार्किंग लाॅट पर रखी सभी गाड़ियाँ तक बर्फ से सफेद पड़ चुकी थी।

"मम्मा, लगता है रात भर काफी बर्फबारी हुई है यहाँ !!"

" हूँ। "

अभी भी रुई के टुकड़ों के समान बर्फ के गोले आसमान से गिरे जा रहे थे।

टीवी ऑन किया तो दिन भर मौसम खराब रहने का फोरकाॅस्ट दिया जा रहा था। न्यूज रिडर मौसम की ऐसी खराब हालत में बिलावजह घर से बाहर न निकलने की हिदायतें दे रही थी।

" धत्त तरी की!! कल ही निकल जाते तो अच्छा था। नाहक, शहर घूमने के लिए रुक गए!! बड़ी बेवकूफी की!"

मन ही मन झुंझलाने लगी थी कि रवि का मास्को से फोन आ गया,

" अरे अनिता, तुम लोग अभी भी होटल में हो? टीवी पर बताया जा रहा है कि आज माॅन्ट्रीयाल का मौसम बहुत खराब रहेगा। जल्दी से निकल पड़ो। और चार बजे से पहले बाॅर्डर पार कर जाओ।"

" हाँ, ठीक है, तुरंत निकलते हैं।"

जल्दी- जल्दी हाथ चलाते हुए भी होटल से चेक- आउट करने में पूरा एक घंटा लग गया। हमें अमेरिका जाना है सुनकर वे लोग हमारे सफर के लिए शुभकामनाएँ देने लगे। पोर्टर ने अनिरुद्ध से कहा,

" संभलकर जाना, बेटा! मौसम आज बहुत ही खराब है। शांत रहना। और प्रार्थना करना।"

सचमुच आज का मौसम बड़ा भयंकर था। होटल छोड़ने के आधे घंटे बाद ही अंधेरा छाने लग गया था। तेज- तेज बर्फ के गोले गिर रहे थे। बर्फ के गोले गाड़ी की बिलकुल समांतराल रेखा में गिरे जा रहे थे, मानो वे पंक्तिबद्ध होकर हमारे आगे- आगे चलना चाहते हो।

एक हाथ की दूरी पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। आगे सड़क तय करने के लिए गाड़ी की हेडलाइट का ही भरोसा था और दिशा निर्णय के लिए जी पी एस के अलावा और कोई चारा न था। एक हाथ की दूरी पर आगे सड़क है अथवा खाई, कुछ भी खाली आँखों से देखकर पता नहीं चल पा रहा था। जी पी एस जहाँ हमें मुड़ने को कहता था हम वहीं मुड़ जाते थे।

तकरीबन तीन घंटा ड्राइव करने के बाद हम चाय के लिए एक जगह पर रुके। मौसम अब भी काफी खराब था। घर कब पहुँच पाएँगे यह मालूम न था। जीपीएस अमरीका का बाॅर्डर अब भी ढाई घंटे की दूरी पर दिखा रहा था। अगर रास्ता खराब हुआ तो इससे भी ज्यादा समय लग सकता है। इसलिए हमने कुछ स्नैक्स और पानी की बोतलें खरीद ली और कुछ शक्तिवर्धक ड्रिंक्स और न्यूट्रिशन बार भी पैक करा लिए।

दो घंटे चलने के बाद एक जगह पर पहुँचकर जीपीएस सिग्नल ने काम करना बंद कर दिया । अब तक चारों तरफ घुप्प अंधेरा था। हम राजमार्ग पर सीधे- सीधे चले जा रहे थे। अंधेरा इस तरह था कि आसपास कुछ भी ढंग से नहीं दिख रहा था। अनिरुद्ध डर के मारे चुप हो गया था। मैंने तब निश्चय किया कि इस अंधेरी रात में आगे बढ़ने का कोई मतलब नहीं ,कहीं पर रातभर के लिए रुक जाना ही सही रहेगा।

" अनि बेटा, देखो जरा कहीं आसपास कोई होटल या रेस्ट हाउस है क्या?" मैंने सामने सड़क से नज़र हटाए बिना ही उससे पूछा।

" कैसे देखूँ, मम्मा, नेटवर्क ही तो नहीं है।"

" कुछ देर पहले तो तुम कह रहे थे कि रेस्ट हाउस है पास में कोई? याद है कुछ वह कितनी दूर पर था? रोड साइन भी नहीं दिख रहा है कोई।"

" अरे , नेटवर्क वापस आ गया। हाँ मम्मा, आधे घंटे की ड्राइव पर बाईं तरफ एक रेस्ट हाउस है--- मम्मा आगे देखना!!-- संभलकर!!"

अनिरुद्ध के चीखने से मैंने झटपट ब्रेक लगा दी थी।

गाड़ी का इंजन एक अजीब सा आवाज़ निकालकल शांत हो गया था। सामने सूनसान सड़क पर एक सतरह- अठारह वर्ष की लड़की लिफ्ट के लिए हाथ दिखा रही थी। और वह अभी- अभी मेरी गाड़ी के नीचे आते- आते बची थी!! हे ईश्वर!

"अरे, ऐसी तूफानी रात में यह लड़की कहाँ से आई?"

मैंने शीशा नीचे किया तो वह लड़की मेरे पास आकर बोली। उसे सामने के रेस्ट हाउस तक जाना है, जो यहाँ से मुश्किल से दस मिनट की ड्राइव पर है। अगर लिफ्ट मिल जाए तो हमेशा वह मेरी शुक्रगुज़ार रहेगी।

मैंने उससे पूछा कि उसके साथ में कौन है?

उत्तर में उसने कहा कि वह अकेली ही है। उस रेस्ट- हाउस के केयर टेकर की बेटी है। वहीं रहती है। उसने अपना नाम बताया-- लिंडा।

एक पल के लिए मैं सोचने लगी। क्या पता लड़की सच बोल रही है कि नहीं? कहीं गैंगस्टाॅर हुई तो? फिर भी, उस अकेली लड़की को इस तूफानी रात में अकेला छोड़ देना दिल को सही नहीं लगा। रेस्ट- हाउस का नाम सुनकर एक आशा जगी कि शायद वहाँ रात को रुकने को मिल जाए! और मैंने उसे गाड़ी में बिठा लिया।

लिंडा ही राह दिखाती हुई रेस्ट हाउस ले चली। जीपीएस सिस्टेम फिर से डाउन हो चुका था।

लिंडा काफी मिलनसार लड़की निकली। उसने बताया कि वह सुबह सहेली के घर पढ़ाई करने गई थी। परंतु वापस जाते समय उसकी गाड़ी बिगड़ गई। इसलिए उसे सड़क पर ही छोड़कर वह लिफ्ट माँगने के लिए खड़ी थी। हमने थोड़ी दूर पर सड़क के किनारे खड़ी उसकी गाड़ी को भी देखा । तब उस पर से हमारा सारा शक दूर हो गया।

लिंडा ने हमसे पूछा कि हमें कहाँ तक जाना है। अमरीका सुनकर वह बोली कि आज रात को वहाँ न जाएं। मौसम का और बिगड़ने का अंदेशा है।

सच ही कह रही थी वह ।अब तक बिजलियाँ भी कड़कने लग गई थी। बर्फ की बारिश तो सुबह से लगातार हुई जा रही थी। रात को और भयंकर तूफान का अंदेशा मुझे भी अब होने लगा था।

अब हम रेस्ट हाउस पहुँच चुके थे। रेस्ट हाउस में हल्की सी रौशनी जल रही थी। चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। दूर से यह रेस्ट हाउस नज़र भी न आता था। शुक्र है कि हमें लिंडा मिल गई थी, वर्ना इस रेस्ट हाउस को ढूँढ पाना नामुमकिन था।

लिंडा ने अपने पापा मिस्टर स्मिथ से हमारा परिचय करवाया। पिता और पुत्री दोनों ने लिफ्ट देने के लिए बहुत बार हमें धन्यवाद दिया और एक रात के लिए उनके इस रेस्ट हाउस का अतिथि बनने का अनुरोध किया।

हम और क्या करते? आगे जाना मुश्किल था। इसलिए रात को वहीं रुकने का फैसला ले लिया। रेस्ट हाउस पुराने जमाने का था। रखरखाव के अभाव में थोड़ा टूट-फूट गया था। और इस समय पूरा खाली था।

पूछने पर,मिस्टर स्मिथ ने बताया कि गर्मियों के समय काफी लोग इधर आते हैं परंतु इस समय यहाँ कोई गेस्ट बमुश्किल ही मिल पाता है।

बहरहाल, हम काफी थके हुए थे। इसलिए चिकन सूप और सैन्ड्विच खाकर बेड पर लुढ़क गए। बेड बड़ा आरामदायक था। हालांकि हमारे कमरे में फर्नीचर नाममात्र को ही था। एक डबल बेड, कोने में एक क्लोसेट , एकमात्र चेयर और एक छोटा सा तिपाया।

" मम्मा लगता है, यह कमरा काफी समय से बंद पड़ा था। देखो, कुर्सी पर कितनी धूल जमी हुई है।" लेटे-लेटे अनिरुद्ध ने मुझसे कहा। नींद से मेरी आँखें तबतक बंद होने लगी थी। किसी तरह मैंने उससे कहा,

" बेटा, सो जा। सिर्फ रात भर का ही मामला है। भोर होते ही निकल लेंगे।"

सुबह जब आँखे खुली तो मौसम साफ हो गया था। सुंदर धूप निकल आई थी। हालाँकि तापमान अब भी माइनस पर ही था।बाहर का नज़ारा देखते ही मन खुशी से झूम उठा। यह रेस्ट हाउस घने जंगल के बीच में था। चारों तरफ प्रकृति अपनी सुंदर छटा बिखेरी हुई थी।

नहा-धोकर,साथ लाए हुए स्नैक्स से ब्रेकफास्ट करके जब हम रवाना होने को तैयार हुए तो पिता- पुत्री में से किसी का भी दर्शन न मिला। जीपीएस अब भी नदारद था। हम जल्दी ही इस जंगल से बाहर निकल जाना चाहते थे। हमने उन दोनों को काफी ढूँढा। नाम लेकर भी पुकारा उनको कई बार। पर वे कहीं न मिले!! इधर हमें देर हो रही थी। सो, हमने उन दोनों के लिए एक thank you नोट लिखा और गाड़ी लेकर निकल पड़े।

परंतु किस तरफ जाना था हमें यह पता नहीं चल पा रहा था। रात को तो लिंडा मार्ग बताकर ले आई थी। आधे घंटे के बाद मुख्य सड़क पर एक छोटा सा गेस- स्टेशन( पेट्रोल पंप) दिखा। गाड़ी का गैस भी कम हो चुका था।सो वहाँ रुककर गैस भरने के बाद जब हमने दुकानदार को पैसा थमाते हुए दिशा-निर्देश पूछा तो बातों- बातों में दुकानदार पूछ बैठा कि हम यहाँ कहाँ आए थे?

"रेस्ट हाउस" सुनकर वह पूरे एक मिनट तक हमें देखता रहा!!

फिर हमारे हाथों में चैंज के पैसे देता हुआ बोला,

" दैट हाउस इस हौंटेड!" ( वह भूतिया बंगला है।)

वर्षों बाद आज भी जब बरसात की उस रात को याद करती हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कैसे उस लड़की ( या भूत??) ने उस भयंकर तूफानी रात को हमारी जान बचाई थी!! हमें रातभर के लिए शरण दिलाई थी!!

भूत- प्रेत पर विश्वास न होते हुए भी उस घटना को मैं आजीवन भूल नहीं पाऊंगी!



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