Author Moumita Bagchi

Drama Romance Action

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Author Moumita Bagchi

Drama Romance Action

मुहब्बत: करोड़ो के मोल- 5

मुहब्बत: करोड़ो के मोल- 5

4 mins
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रणधीर सिक्यूरिटी गार्ड के केबिन के पास वाली बेंच पर अपना दाहिना पैर बाये के ऊपर चढ़ाकर और बाई कोहनी को बेंच के पीठ टिकाने वाले हिस्से पर रख,निश्चिंत बैठा अपनी सेक्रेटरी, समांथा से फोन पर एकांत में अपनी कोमल भावनाओं को उड़ेल रहा था तभी उसने एक छोटी सी मंडली को भागते हुए उस तरफ आते हुए देखा।

मानव मन स्वाभाव से कौतुहली होता है तो रणधीर के मन में भी एक जिज्ञासा पनपी कि आखिर ऐसा क्या हो गया ?

उसने गौर किया तो देखा कि कुछ लोग भयानक उत्तेजित होकर हाथ- पैर हिलाकर वर्दीधारी सिक्यूरिटी गार्ड रामशरण को कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे।

जवाब में रामशरण ने अपना हाथ पलटकर अपनी असमर्थता जताई। फिर ज़रा बेरूखेपन से बोला-

" मैं इस मामले में क्या कर सकता हूँ ? पुलिस में खबर कीजिए। और उस बच्ची के रिश्तेदारों को ढूँढ निकालिए। यह सब मेरा काम नहीं है।" कह कर उसने निर्लिप्त मुद्रा में अपने दोनों हथेलियों के बीच में सुरति मसलने की क्रिया को ज़ारी रखा।

भीड़ में एक सज्जन अत्यंत क्रुद्ध हो गए और उन्होंने आकर रामशरण का काॅलर पकड़कर उसे झटके से खींच कर दोनों पैरों पर खड़ा कर दिया। इसके बाद उसे उसकी ड्यूटि याद दिलाते हुए फटकार कर कहा-

" इस पार्क में यदि कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसे संभालने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है, बुरबक! और इसके संबंध में प्राधिकारियों को सूचित करना,,,वह भी तुम्हारा ही काम है, समझे ?! अब जल्दी हमारे साथ चलते हो कि दूँ एक कान के नीचे ?"

और कुछ लोग भी अपनी आस्तीनें चढ़ाकर रामशरण के निकट आने लगे। समवेत जनता को अपने खिलाफ देखकर रामशरण अपनी सारी हेकड़ी भूल गया। इससे पहले भी वह कई बार भीड़ के आगे परास्त हो चुका था। इसलिए अपनी आवाज़ में विनम्रता लाते हुए वह उनसे बोला--

" चलिए न साहब, मैंने कब साथ चलने के लिए मना किया ?"

उन सब को चले जाते देख कर रणधीर, जो वहाँ पर बैठा यह दृश्य देख रहा था, वह भी सबके साथ यह सोचते हुए हो लिया कि चल कर देखूँ कि मामला क्या है ? कौन डूबने गया ताल में ?

परंतु ताल तक पहुँचने से पहले ही मार्ग में रणधीर को आलोच्य घटना का पूरा विवरण मिल गया।

उसने जैसे ही उस डूबती हुई बच्ची का विवरण सुना तो अनजाने में उसके अंदर का पितृ-हृदय एकबार आशंका से डोल उठा।

उसने कई सारे प्रश्न पूछे उन प्रत्यक्षदर्शियों से और जो जानकारी इकट्ठी कर पाया उससे यह निश्चित हो गया कि वह छोटी सी बच्ची और कोई नहीं बल्कि उसकी बेटी शनाया है!

और यह जानकर रणधीर ने अपना सिर पीट लिया!

" ओह गोड!! हाऊ ? ह्वाई ?!!"

और रणधीर सबसे तेज़ दौड़कर ताल तक पहुँच गया। वहाँ पहुँचते ही उसे ऐसी आवाज़ें सुनाई दी--

" अरे बेचारी, इतनी छोटी सी बच्ची, कितना पानी पी गई थी। ओह कितनी तकलीफ झेली होगी इस नन्हीं सी जान ने--" वगैरह वगैरह

तो रणधीर का दिल एकदम से बुझ गया। उसके पैरों ने वहीं पर जवाब दे दिए। वह अपनी खुद के अंश को इस हालत में नहीं देख सकता था।

इसलिए धीरे- धीरे रणधीर सबसे पीछे सरकता चला गया और जाकर घास पर बैठ गया। फिर उसने अपनी दोनों हथेलियों से मुँह ढक लिया।

सारिका की अनुपस्थिति में शायना की पूरी जिम्मेदारी अब उसी पर थी। उसने सबके सामने सीना ठोक कर बताया भी तो था उस दिन कि शायना की जैसी देखभाल वह कर सकता हैं वैसी उसकी मम्मा भी नहीं। फिर आज के बाद,, लोग उसे क्या कहेंगे ?!!

अफसोस कि आज एक पिता अपनी बेटी की रक्षा न कर पाया! एक बाप अपनी जिम्मेदारी निभाने में चूक गया था! इस तरह एक पापा की परवरिश हार मानकर वहीं बैठकर आँसू बहाने लगा।

रणधीर लगातार खुद को कोसे जा रहा था कि उसने क्यों अपनी तीन साल की बच्ची को छोड़कर कहीं गया!

क्यों इस पार्क में वह आया। और हथेलियों से अपने माथे को पीटने लगा।

अचानक उसे याद आया कि-

" अरे,, वह छोकरी भी तो साथ में आई थी--हाँ वह नैनी, जो परसो से काम पर लगी है,, क्या नाम है भला-- हाँ कमली-- ! आखिर वह कमली ने क्यों नहीं शायना ख्याल रखा ?"

और रणधीर आग्निनेत्रों से इधर- उधर कमली को ढूँढने लगा।

और उस तरफ स्तुति लहरों के साथ देर तक जूझती हुई आखिर शायना की चोटी पकड़कर उसे किनारे लाने में सक्षम हो गई थी।

क्रमशः


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