Author Moumita Bagchi

Drama Romance Action

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Author Moumita Bagchi

Drama Romance Action

मुहब्बत: करोड़ों के मोल- 7

मुहब्बत: करोड़ों के मोल- 7

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पर स्नूपी का कहीं अता- पता नहीं था। नन्हीं सी बेजुबां जान न जाने कहाँ बह गया था। शनाया की किस्मत अच्छी थी कि एक पत्थर पर उसका फ्राॅक अटक गया था, जिससे वह पानी के साथ बह नहीं पाई, वहीं पर अटकी रह गई। वरना उसे भी बचाना मुश्किल होता। परंतु स्नूपी कहीं दूर चला गया था।

स्तुति उसके खोज में बहुत भटकी। उसे इस जगह का चप्पा चप्पा मालूम था। उसने पाँच किलोमीटर तक का लंबा चक्कर लगाया, पानी की गहराई में देखा, पत्थरों के ओट सारे टटोले, पर फिर भी जब स्नूपी का कहीं भी नामोनिशाँ नज़र नहीं आया तो वह लौट आई थी।

स्तुति का दम इस वक्त तक पूरी तरह फूल चुका था। वह बुरी तरह से हाँफने लगी थी। ऑक्सीजन की कमीं के कारण उसके हाथ- पैर धीरे- धीरे अब शिथिल होने लगे थे। किसी तरह से उसने अपने आपको को पानी के अंदर से खींचकर बाहर निकाला और वहीं किनारे पर आकर वह बेहोश हो गई।

उपस्थित कुछ महिलाओं ने तब तक शनाया को औंधा लिटाकर उसके पेट को दबा-दबाकर सारा पानी निकाल चुकी थीं। शनाया अब धीरे- धीरे होश में आने लगी थी।

अधमुँधी आँखों सी वह अब ताल के किनारे पर लेटी हुई

" सूपी", " सूपी" कह कर अपने प्यारे से चार- पैरों वाले दोस्त को आवाज़ दिए जा रही थी।

लगभग इसी समय कहीं से खबर पाकर शनाया की आया, कमली भागती हुई वहाँ पर पहुँची। उसकी तो शामत ही आई हुई थी, कहीं बेबी को कुछ हो गया हो तो मालिक उसकी जान ही ले लेंगे- यह सोचकर।

पिछले तीन दिन से,जबकि उसकी बहाली हुई थी, वह देख रही थी कि मालिक अपनी बेटी से कितना प्यार करते थे। एक छोटा सा मच्छर भी अगर शनाया को काट लेता तो मालिक पूरे घर को आसमान पर उठा लेता था।

तुरंत सारे घर पर जाल लगा दिये गये, फिर पूरे घर पर स्प्रे छिड़काकर सारे मच्छरों को खदेड़ दिया गया। शनाया के फ्राॅक में यूकेलिप्टस आयल की कुछ बूँदें लगा दी गई ताकि मच्छर उससे दूर ही रहे। इस पर भी चार- चार नौकरों को और इलैक्ट्रीक रैकेट देकर उस बच्ची के पीछे लगा दिया गया, वह जहाँ भी जाती नौकर उसके पीछे- पीछे रैकेट लिए पहुँच जाते, ताकि एक भी मच्छर शनाया के पास गलती से भी न आ जाए!

बहरहाल, कमली ने शनाया को ताल के किनारे लेटी हुई- " सूपी", " सूपी" पुकारते देखा तो उसने राहत की साँस ली और चली अपने मालिक को ढूँढने।

कमली को ज्यादा ढूँढना न पड़ा था क्योंकि रणधीर उसे भीड़ के पीछे घास की ज़मीन पर सिर पर हाथ रख कर बैठे हुए मिल गया था। रणधीर को वहाँ पर बैठे अपनी लापरवाही पर मातम मनाते देख कर कमली उसके पास जाकर धीमे से उसको पुकार कर बोली-

"मालिक उठिए, बेबी अब ठीक है!" और फिर उसने रणधीर को सहारा देकर उठा दिया और अपने साथ वहाँ तक लेकर आई जहाँ शनाया अब उठकर बैठी इधर- उधर ताक रही थी। वह भीड़ में से अपना कोई परिचित चेहरा ढूँढ रही थी।

तभी उसने आया कमली के साथ रणधीर को उधर आते हुए देखा। उसने अपने दोनों बाहों को फैलाकर कहा--

" पापा--"

रणधीर भी दौड़कर वहाँ पहुँच गया और उसने अपनी बेटी को गोदी में उठाकर कसकर गले लगा लिया।

बेटी को सलामत देखकर उसके अंदर का असहाय पिता बहुत खुश हो उठा। और वही खुशी अब उसकी दोनों आँखों से बहने लगी थी।

पिता- पुत्री के इस मिलन को देखकर लोग भी खुशी से अपने आँसू पोंछने लगे। अब धीरे- धीरे भीड़ वहाँ से छँटने लगी थी।

अचानक रणधीर को कुछ याद आया तो उसने कमली से पूछा-

" यह सब कैसे हो गया? तुम कहाँ पर थी? मैं तो शनाया को तुम्हारे हवाले छोड़कर गया था?"

" मैं तो, मालिक कहीं नहीं गई थी-- यहीं पास में ही थी--!" कमली डरते- डरते खुद के बचाव में झूठ बोल गई।

" नहीं पापा, आया नहीं थी, मैं और सूपी यहाँ बाॅल से खेल रहे थे---! पर सूपी कहाँ है-- सूपी ओ सूपी?" शनाया बीच में बोल पड़ी थी।

अब रणधीर को इतना गुस्सा आया कि उसने आया को एक थप्पड़ मार दिया-

" जानती है, तेरी लापरवाही की वजह से आज मेरी बेटी की जान भी जा सकती थी? तूझे तो मैं पुलिस के हवाले कर दूँगा!"

तभी भीड़ में से एक सज्जन निकलकर आए और रणधीर के कंधे पर हाथ रखकर बोले--

" अरे मिस्टर, इसे पुलिस के हवाले बाद में करना, पहले उसे तो देख लो, जिसने अपनी जान पर खेलकर तुम्हारी बच्ची की जान बचाई है। वह रही बेचारी, वो वहाँ पर ,,, लोकल लगती है,,,कब से पड़ी हुई है-- उसे पहले डाॅक्टर के पास ले जाओ!"

तभी उस सज्जन के पास खड़ी सिल्क की साड़ी में सुसज्जिता एक महिला ने रणधीर को याद दिलाया -

" और यह बच्ची भी काफी समय से गीले कपड़ों में है, आया से कहिए कि तुरंत उसके कपड़े बदल दे नहीं तो उसे सर्दी लग जाएगी।"

क्रमशः


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