मुहब्बत-12
मुहब्बत-12
स्तुति का इंटरव्यू लाजवाब रहा, और उसे वह नौकरी मिल गई। हालाँकि उसका यह काम पिछले काम से बिलकुल भिन्न था और स्तुति को इस तरह के काम का पहले कभी अनुभव नहीं था, परंतु उसकी सादगी, ईमानदारी और स्मार्ट- उत्तरों की वजह से इस पद हेतु उसी का चयन हुआ। लवीना ने सही कहा था , करीब डेढ़ सौ लोग इंटरव्यू के लिए आए थे।
इंटरव्यू देते समय स्तुति ने यह महसूस किया कि सारे बोर्ड के मेम्बर उससे काफी इंप्रेस हैं। उसकी हर एक जवाब को सुनकर वे लोग सिर हिलाकर सहमति जता रहे हैं।
स्तुति ने यह भी नोटिस किया कि वे लोग उसे सहज महसूस कराने के लिए उन्हीं क्षेत्रों में से प्रश्न पूछ रहे थे जो कि स्तुति के कम्फर्ट ज़ोन में आते थे। उन लोगों की इस अनौपचारिक रवैये से स्तुति की कंपनी के बारे में एक अच्छी धारणा बनी।
शुरु में वह नर्वस जरूर थी क्योंकि छोटे शहर से आई थी।स्वाभाविक रूप से बड़े शहर के लोगों को लेकर काफी डर था उसके मन में। परंतु इंटर्व्यू के आखिरी चरण तक उसका सारा डर भाग चुका था और वह इस अपने नए पोज़िशन को लेकर काफी उत्साहित हो गई थी।
ऑफर पाकर स्तुति ने झट से जाॅब को एक्सेप्ट कर लिया। एक तो हाई सैलरी ऊपर से दिल्ली में आवास की सुविधा, साथ ही फ्रेंडली वर्क- कल्चर-- इन्हीं सब कारणों से स्तुति को इस नौकरी के लिए हाँ करने में देर नहीं लगी।
फिर तो स्तुति अपनी मम्मी के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गई। उसके मन में एक आशा थी कि एक- दो साल जाॅब करके वह इतने पैसे इकट्ठे कर लेगी कि मम्मी के पैरों का ऑपरेशन यहीं रहकर करवा सकेगी।
और अगर उसे दफ्तर से कुछ पैसे लोन में मिल जाए, तब तो सोने पे सुहागा हो जाएगा। परंतु वह जानती थी इसके लिए उसे खुब मन लगाकर काम करना होगा और प्रबंधन का विश्वास जीतना होगा।
दिल्ली शहर में चिकित्सा की अनंत सुविधाएँ थीं, इसलिए स्तुति की मम्मी सीता देवी भी खुशी से दिल्ली आ गई। आजकल वे लाठी के सहारे थोड़ा- थोड़ा चलने लगी थी।
उनकी सिर्फ एक ही चिंता थी कि उनका इकलौता बेटा सौष्ठव, वहीं काॅलेज के होस्टल में रह गया था, बस उसी बेटे की चिंता हर पल इस लाचार माँ को लगी रहती थी।
सीता देवी
ने लवीना से कहकर अपने दर्द के लिए कुछ होमियोपैथी की दवाएँ मँगवा ली थी। स्तुति ने उनके लिए एक मालिशवाली का और बंदोबस्त कर दिया था। कुछ दिनों की मालिश और उन दवाइयों का असर यह हुआ कि अब उनको दर्द से थोड़ी राहत मिलने लगी थी और लाठी के सहारे घर के अंदर चलने- फिरने में उनको फिर कोई दिक्कत न रही।
स्तुति पहले दिन मन में ढेर सारी उम्मिदें और अपने हाथ- पैरों में काफी ऊर्जा भरकर दफ्तर पहुँची। यह उसके लिए एक नई शुरुआत थी। किस्मत ने मौका दिया था अपनी ज़िन्दगी सुधारने के लिए, जिसे वह किसी भी कीमत पर गँवाना नहीं चाहती थी।
दफ्तर में उसे हरिप्रिया को रिपोर्ट करना था। हरिप्रिया एक मधुर मुस्कान लिए उससे मिली। वह पहले यहाँ की सेक्रेटरी थी। अब उसकी शादी तय हो गई थी। उसे शादी के लिए दो एक दिन के लिए चैन्ने निकलना था। फिर शादी के बाद वह अपने दूल्हे के साथ अमरीका में सेटल होने वाली थी, इसलिए उसने नौकरी से रिज़ाइन कर दिया था। अभी वह दो- एक दिन रुक गई थी, स्तुति को सारा काम- काज समझाने के लिए।
स्तुति ने हरिप्रिया के गले लगकर उसे शादी के लिए मुबारकबाद दिया। उसके अचानक इस तरह के अनौपचारिक व्यवहार से हरिप्रिया को पहले काफी ताज्जुब हुआ, परंतु स्तुति की बेतकल्लुफ व्यवहार देखकर अब वह खुश भी थी।
स्तुति को अपना कार्यस्थल बहुत पसंद आया था। उसका टेबल- कुर्सी, लैपटाॅप सबकुछ आधुनिक डिज़ाइन का और सुरुचिपूर्ण था। एच आर, रिकार्ड-रूम आदि सभी जगहों का घूम- घूमकर परिचय कराती हरिप्रिया स्तुति को लेकर अंत में काॅफी वेन्डिंग मशीन के पास ले आई। काॅफी पीते हुए उन दोनों को और कुछ लोगों ने ज्वाइन कर लिया था। सब लोग स्तुति का परिचय पाकर खुश हुए और उन्होंने उसका इस दफ्तर में स्वागत किया।
काॅफी समाप्त होने पर हरिप्रिया ने अपनी जेब में से मोबाइल निकालकर समय देखा और स्तुति से बोली--
" अब तक बाॅस अपने केबिन में आ चुके होंगे। चलो,
उनसे मुलाकात कर आते हैं। तुम अपना ज्वाइनिंग लेटर और कार्यभार टेकिंग ओवर का लेटर उन्हीं से ले लेना।"
स्तुति ने मुस्कारकर हरिप्रिया को सहमति दी। और दोनों बाॅस की केबिन की ओर चले।
क्रमशः