Author Moumita Bagchi

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मुहब्बत: करोड़ो का मोल-8

मुहब्बत: करोड़ो का मोल-8

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स्तुति ने अपनी आँखे खोली तो खुद को एक विशाल कमरे की पलंग पर लेटा हुआ पाया। कमरा इतना बड़ा था कि वह जहाँ पर लेटी थी वहाँ से पूरा कमरा उसे दिख भी नहीं रहा था। और उस स्थान की खुशबू बेहद अपरिचित सी लगी।

अब धीरे- धीरे उसकी दोनों आँखें पूरी तरह से खुल चुकी थी। स्तुति ने गौर किया कि उस कमरे की सजावट पुराने जमाने की थी। ब्रिटिश स्टाइल की ऊँची- ऊँची सिलिंगें और उससे लटकते लंबे डंडे वाले पंखे आज कल सोलन में कम ही देखने को मिलते हैं। साथ में खूब बड़े और भारी मेहगनी लकड़ी के बने असबाब जैसे पलंग, किताबों की अलमारी, ड्रेसिंग टेब्ल सब कुछ रखा हुआ था वहाँ पर। कोने में एक फायर- प्लेस भी था जिसके ऊपर कुछ पारिवारिक तस्वीरें सुनहरे फ्रेमों में बंद करीने से सजाकर रखे हुए थे।

दिवारों पर कुछ तैल- चित्र लटक रहे थे जिनमें पूर्ण आदमकद साइज़ के कुछ अपरिचित लोगों के चित्र सुनहरे रंगों से बने हुए थे। उन तस्वीरों वाली पुरुष एवं महिलाओं के वेशभूषा एवं गहनों से उच्च घराना साफ झलक रहा था।

खूब बड़ी- बड़ी खिड़कियों पर भारी मखमली पर्दे लगे हुए थे जिससे कि बाहर की रौशनी अंदर नहीं आ पा रही थी। कमरे के अंदर प्रकाश और छाया का झीना सा आवरण तैर रहा था। सहसा स्तुति समझ नहीं पाई कि अभी दिन का समय है अथवा रात! उसके दिमाग में रह- रहकर यह एक बात कौंधने लगी थी कि-

"यह कौन सी जगह है? और वह यहाँ पर किस तरह आई?"

सोचते हुए उसने अपनी नज़रों को इधर- उधर घुमाकर उस स्थान का जायज़ा लेना शुरु कर दिया।

जब उठकर बैठ सकी तो स्तुति उस पलंग से उतरकर खिड़की के पास आ गई। पर्दा हटाकर दैखा तो बाहर सूर्य की रोशनी जगमगा रही थी। मतलब कि अभी तक दिन डुबा नहीं था।

खुद को आइने में जाकर देखा तो एक बेढंगे से मैक्सीनुमा ड्रेस उसके बदन पर पड़ा हुआ मिला।

--" यह किसका है? और मैंने क्यों यह पहन रखा है?"

स्तुति ने अपनी आँखें मूँद ली। उसने दिमाग पर ज़ोर लगाकर सीचने की कोशिश की तो उसे अपने चारों तरफ पानी ही पानी नज़र आया। लगा कि वह ठंडे पानी में तैर रही है। फिर सब कुछ धुँधला- धुँधला नज़र आने लगा और इस धुँधलके में किलकारी मारती हुई एक छोटी सी लड़की भी उसे दिखी।

" हाँ याद आया! कोई डूब रहा था और मैंने उसे बचाने के लिए पानी में छलाँग मारी थी--!" धीरे- धीरे स्मृति को सब कुछ याद आने लगा।

परंतु वह किसी तरह याद नहीं कर पाई कि इस घर तक कैसे आई।

खिड़की के बाहर का प्राकृतिक दृश्य देखकर उसे समझ में आया कि यह जगह उसका सोलन तो बिलकुल भी नहीं है।

ऊँचे हिमालय की चोटियों से ऐसा लगा कि जैसे यह शिमला के आसपास की कोई स्थान है! एक बार पापा- मम्मी और भाई के साथ वह छुट्टियों में शिमला घूमने आई थी। तब ऐसे ही पत्थरों से बनी बड़ी- बड़ी इमारतें उसपे देखी थी।

याद है, उन दिनों शिमला में काफी बर्फ पड़े थे। हालाँकि अभी बरसात का मौसम है। परंतु आज मौसम साफ है इसलिए बर्फ की जगह नीले आसमान में नाना आकार के सफेद बादल छाए हुए हैं!

" अरे आप उठ गई!?! कैसी तबीयत है अब आपकी।"

स्तुति ने पलटकर देखा। काली किनारी वाली सफेद सूती की साड़ी पहनी एक महिला ने उस कमरे में प्रवेश किया था, जिनके हाथ की ट्रे में दूध से भरा हुआ एक गिलास था।

" जी-- मैं-- ठीक हूँ!"

" यह लीजिए, गरम दूध पी लीजिए। आप जल्द ही स्वस्थ महसूस करेंगी।"

" मैं कहाँ पर हूँ?" स्तुति ने उस महिला से पूछा।

" आप इस वक्त शिमला के मशहूर सिंघानिया मैंशन में हैं।"

" ओह! पर,, मैं यहाँ पर कैसे आई?

" लंबी कहानी है। बताती हूँ। परंतु पहले आप यहाँ आ जाइए और यह दूध पी लीजिए।

" आप कौन- मेरा मतलब कि,,क्या आप यहाँ रहती हैं?"

" हाँ जी!" महिला यह कहकर पलंग पर बैठ गई। तब तक स्तुति ने भी वहाँ पर आकर दूध का गिलास उठा लिया था और वह उसमें दूध पीने लगी थी।

" तो हुआ यूँ था--" उस महिला ने कहना शुरु किया।

" कि आप सुबह शायना बेबी को बचाने के लिए आनंद-ताल में कूद पड़ी थी। आपने बेबी को ती बचा लिया परंतु खुद उसके बाद बेहोश हो गई थी। जब देर तक आपके होश नहीं आया तो सिंघानिया साहब आपको यहाँ अपने घर पर ले आए और आपको डाॅक्टर बुलवाकर दिखलाया। फिर आपको दवाएँ दी गई और इस वक्त आप दूध पीकर काफी स्वस्थ महसूस कर रही हैं।" कहकर वह महिला हँस दी।

जवाब में स्तुति को भी मुस्कुराना पड़ा। स्तुति ने फिर उनसे पूछा--

" वह बेबी, मेरा मतलब शायना--अब कैसी है?"

" बेबी बिलकुल ठीक है।"

" क्या मैं उससे एकबार मिल सकती हूँ? सिंघानिया साहब ने मेरी चिकित्सा के लिए इतना सब कुछ किया-- उनको भी एकबार थैन्क्यू बोलना चाहती हूँ!"

" पर आप तो साहब और बेबी किसी से भी इस वक्त नहीं मिल सकती हैं।"

" क्यों?"

" क्योंकि वे लोग यहाँ से जा चुके हैं।"

क्रमशः



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