मुहब्बत-10
मुहब्बत-10
चार दिन बाद
स्तुति अपने ऑफ पिरियड के समय टीचर्स रूम में अन्य शिक्षक- शिक्षिकाओं के साथ बैठ कर कुछ कर रही थी कि स्कूल का चपरासी रामस्वरूप उसके पास आकर बोला,
" मैडम जी, मास्साब आपको याद कर रहे हैं।"
रामस्वरूप प्राचार्य महोदय का खास चपरासी था तो उसका टीचर्स रूम में आगमन होते ही स्तुति समझ चुकी थी कि आज जरूर प्राचार्य जी की किसी पर विशेष कृपा होगी।
परंतु उनकी कृपादृष्टि तो स्तुति पर ही थी,यह बात जानकर वह अपना काम- काज छोड़कर उनके कमरे में चली गई।
स्तुति को भी उनसे कुछ बात करनी थी।
प्राचार्य तिवारी जो एक बड़ा सा तिलक लगाकर अपनी कुर्सी पर बैठे पान चबा रहे थे, स्तुति को देखते ही बच्चों की कुछ प्रैक्टिकल की फाइलें उसकी ओर सरकाकर बोले,
"आप तो विज्ञान की शिक्षिका है, तनिक मेरे बचवा के इन फाइलों को कल सुबह तक बनवा दीजिएगा-- बनवाना क्या है-- इनको भरना है बस--! बबलू की मास्टरनी उस मासूम पर बहुत चिल्लाती है! कल बबलू उसके मुख पर ले जाकर इनको फेंक आएगा-- आप कल सुबह तक इनको बना दीजिएगा! जाइए"
इन तिवारी जी की बातें करने का ढंग कुछ इस तरह का था कि सुनकर हमेशा से ही उन पर स्तुति को बड़ा क्रोध आता है। जैसे कि वे गलती से शिक्षक बने गए हैं-- और इसका दंड बाकी लोगों को देकर अपना दुःख हल्का करना चाहते हो।
वर्ना स्वयं शिक्षक होकर अन्य शिक्षकों के प्रति ऐसा अभद्र व्यवहार! आज तक शायद ही कोई शिक्षक करता होगा।
स्तुति ने ध्यान से देखा, कुल चार फाइलें थीं, जिनमें बारहवीं कक्षा के वर्ष भर के प्रयोगशाला-कार्यों को दर्ज़ करना था, जो एक दिन का काम कतई नहीं था। काफी कुछ परीक्षण करना था, डेटा लेने थे, फिर सोच- विचारकर उन प्रयोगों को सिलसिलेवार दर्ज़ करना था। पर यह सब किसको बताएँ, वहाँ सुनने वाला कौन बैठा था?
शायद साल भर तक इनका लाडला कक्षा में सोता रहा, अब जब टीचर ने फेल करा देने की धमकी दी तो तब जाकर जाग उठा होगा!
फाइलों पर नाम देखा तो बबलू के साथ उसके किसी दूसरे दोस्त की भी एक फाइल वहाँ पर रक्खी हुई थी। इसका मतलब बबलू के दोस्त का
काम भी स्तुति को ही करके देना था!! हद है।
और सबसे बड़ी बात यह थी कि यह सब करना किसी भी शिक्षक की ड्यूटि में शामिल नहीं था, फिर भी इस विद्यालय के प्राचार्य अकसर अपने मातहतों से ऐसे ही व्यक्तिगत कार्य करवा लेते थे! और वे लोग भी डर के मारे उनसे कुछ कह नहीं पाते थे।
स्तुति ने उनसे पूछा,
" सर, पिछले महीने जो काॅपियाँ मैंने जाँची थीं, उसका भुगतान अब तक नहीं मिला।"
" मिलेगा, मिलेगा,,, मैडम जी! इतनी कम उम्र में आपको पैसों की इतनी फिकर नहीं करनी चाहिए!!"
" वह मेरी माँ का ऑपरेशन करवाना है-- उन पैसों की सख्त जरूरत है,,,"
" ठीक है , ठीक है-- मिलेगा। अब आप अपनी कक्षा में जाइए।" कह कर उन्होंने इस बार भी स्तुति की पैसेवाली अर्जी को टाल दिया।
इन महोदय का एक विशेष गुण था, कि काम करवा लेने के बाद कभी भी किसी को उचित मेहनताना न देते थे।
ऊपर से प्रबंधन की ओर से शिक्षकों को जो वेतन दिया जाता था उन में से भी वे अपना हिस्सा काट लिया करते थे।
और इनकी शिकायत करके भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि इन्होंने प्रबंधन को अपनी जेब में भर रक्खी थी! और फिर शिकायत करने वाले को अपनी शामत नहीं बुलानी होती थी।
इनकी क्रूरता के किस्से सर्वविदित थे। कितने ही ऐसे शिक्षक थे जिनके छः छः महीने की वेतन बाकी थे, जब वे विवश होकर नौकरी से इस्तीफा दे दिए थे।
छुट्टी के समय तक स्तुति ने अपना मन बना लिया था, पहली तारीख तक वह भी अपना इस्तिफा दे डालेगी। माना कि इन चंद रुपयों से ही उसका घर सुचारु रूप से चल पाता था, माँ का विधवा पेन्शन तो भाई की फीस देने में चला जाता था। परंतु अब बहुत हुआ। कल से कोई और नौकरी तलाशेगी।
घर जाते समय रास्ते में उसे अपनी पुरानी सहेली लवीना से भेंट हो गई। लवीना उसके साथ स्कूल में पढ़ती थी। बातों- बातों में लवीना ने उसे बताया कि एक अच्छी सी जगह खाली है, अगर स्तुति करना चाहे तो वह उसकी सिफारिश लगा सकती है।
अब अंधे को और क्या चाहिए था ? स्तुति पूरा विवरण जाने वगैर ही वह नौकरी लेने को तैयार हो गई।
क्रमशः