बीमार मानसिकता
बीमार मानसिकता
‘जन गण मन ....’ राष्ट्रीय गान के साथ तिरंगा नभ में लहरा उठा। तिरंगे में बंधे रंग-बिरंगे फूल धरा को चूमने लगे। भारत माता और वन्दे मातरम् की गूँज के साथ परिसर का वातावरण देश-भक्ति की भावना में सराबोर दिख रहा था।
“परिसर के सभी गेट खुले रहें।” युवा हाकिम ने अपने अर्दली को बुला कर यह निर्देश दिया।
“जी हजूर।” प्रत्युत्तर में अर्दली ने लंबा सलाम ठोका।
“सुनो, ध्यान रखना...भेद-भाव किए बिना सभी आगंतुकों को एक समान जलेबी मिलनी चाहिए। ” हाकिम ने आदेशात्मक स्वर में फिर से उसे कहा।
“जैसा आदेश हजूर का।”
इतना कहकर, अर्दली आफिस के चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों के साथ तत्परता से जलेबी बांटने में व्यस्त हो गया।
इधर, परिसर के प्रांगन में बच्चे अपने नन्हें हाथों में छोटे झंडे लेकर चहलकदमी कर रहे थे | देश भक्ति की धुन पर झाँकी का प्रदर्शन जारी था।रंगारंग कार्यक्रम के चकाचौंध से तिहत्तर साल का गणतंत्र भारत जवान दिख रहा था।
आगंतुक कार्यक्रम को देखने में आनंदमग्न थे। कार्यक्रम स्थल से दू..र, परिसर के एक कोने में खड़े दो आफिस के स्टाफ़,गणमान्य के स्वागत में आए नाश्ते के पैकेटों में से कुछ पैकेटों को, सभी की नजरों से बचाते हुए अपनी झोली में जल्दी से रख रहे थे।
तभी ...दर्शक दीर्घा के एक कोने में बैठी मीरा की खामोश नजरें उन तक पहुँच गयीं। वह विचारने लगी, तृष्णा और लालसा की गुलामी में जकड़ी ऐसी बीमार मानसिकता ... हमारे भारत को आजाद रख पाने में क्या सचमुच सक्षम है ? !”
परिसर में ' वंदे मातरम् ' का उद्घोष जारी था।
