VEENU AHUJA

Abstract

4.2  

VEENU AHUJA

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भूल भुलैया ( MA Z E )

भूल भुलैया ( MA Z E )

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रामदीन सुनार ने पोटली खोली और तराजू पर ढेर सारे सोने के टुकड़े गिरा दिए परन्तु मैं (एक सोने का टुकड़ा ) धीरे से वहीं नीचे गिर पड़ा तभी सोनू चाय लेकर आया और ये क्या ? अनजाने ही ठोकर से मैं दुकान के बाहर पहुँच गया था। हत _ भाग्य   मेरा अब क्या होगा?   कुछ क्षण पहले मैं फूल कर कुप्पा हो रहा था कि अब मेरा ज़ेवर बनाने में प्रयोग होगा, होसकता है कि मुझमें हीरा जड़कर कर्णफूल बनाए जाए जो किसी सुन्दरी के सौन्दर्य को द्विगुणित करें इससे मेरी भी साख बढ़ जाएगी परन्तु ओं - ये क्या ? किसी बाइक ने मुझे कुचल कर मेरी इच्छाओं के गुब्बारे की हवा फुर्र फुर्र से निकाल दीथी अब मेरा क्या होगा?  सड़क किनारे किसी भिखारी सदृश में अपने भाग्य को कोस ही रहा था कि फटे पुराने कपड़े पहने शायद, किसी चाट का ठेला लगाने वाले के बच्चे ने खिलौने की इच्छा को मेरे माध्यम से पूरा किया उसने  एक रस्सी में मुझे पिरोया और भागने लगा रोज यह उपक्रम पत्थर से करने का अभ्यस्त वह मेरी खट् -खट की आवाज से बेहद प्रसन्न था अचानक वह रस्सी को दाएं बाए दाए  इधर उधर जोरजोर से घुमाने लगा और वाह वाह के साथ हर चक्कर - की गति बढ़ाने लगा ' मेरा ( सोनेका टुकड़ा ) दिल धक् धक् कर रहा था कि अब मेरा क्या होगा ?

'आसमान से गिरा खजूर में अटका सदृश अचानक रस्सी ढीली होगयी और मै कीचड़ और सीवर से भरे नाले में गिर पड़ा ' । मैंने डर के मारे आँखे बंद करली और धारा के साथ तेजीसे निराश हो तैरने लगा मेरा अस्तित्व मिटने को था कि अचानक मेरी गति को विराम लग गया ' मैंने अपने को नाले के किनारे गीली मिटटी पर पाया ' एक लंबी दीर्घ स्वांस केसाथ स्वयं को समझाया - चलो कुछ दिन आराम से बीतेगे ( जैसे लॉकडाउन में लोगोने स्वयं को समझाया था। )

कुछ दो दिन बाद ' मुझे अपने आसपास हलचल महसूस हुयी किसी बच्ची ने मिट्टी के साथ मुझे भी अपने गमले में डाल दिया था मै प्रसन्न हो चला ' चलो, मैं किसी के घर के आंगन में पुष्पो के सानिध्य में रहूँगा ' ओह नही उस गुड़िया ने मिट्टी मे हाथ डाला पत्थर बाहर फेंके और मुझे ऊपर उछाल दिया बहुत ऊँचा दूर आसमान में --- - - - - और टपाक् - मैं बालकनी से नीचे खेल के मैदान में आ गिरा था, ओह सुकून की साँस ' खुली हवा आज़ादी का एहसास साथ में नित बच्चो का कलरव जीवन में और क्या चाहिए

   चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात बच्चे कभी पत्थर के मार्फिक ( तरह ) ठोकर मारते ' कभी फुटबाल सी किक एक दिन तो इंतहा हो गयी जब किकेट खेलरहे बच्चे लगातार जमीन पर मेरे ऊपरही बारबार अपना बल्ला ठोंकते रहे मैं खून के ऑसू पीकर रह गया कि कभी तो घूरे के भी दिन फिरते हैं।

कुछ महीनों बाद एकदिन मैदान की साफ-सफाई होनेलगी ' सुना स्वच्छ भारत अभियान के अन्तर्गत किसी कार्यक्रम के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी आ रहे हैं और मैं मैदान से कूड़े के ढेर में पहुँच गया ' प्रातः कूड़ा उठाने वाली एक बूढ़ी स्त्री ने औचक ही मुझे देखा उसकी आखें खुशी से चौंध गयी उसकी ऑखो में अनुभव की गर्मी थी ' शायद ' उसके समक्ष मेरी सत्यता उज़ागर हो गयी थी । अनुभव की गर्मी समझ की कितनी ही पर्तो को पिघला देती है , उसने इधर उधर देखा सतर्कता से चुपके से मुझे अपनी साड़ी के खोंचे मे खोंच दिया ' । किस्मत खराब ' अब मै , एक दीनहीन गरीब के झोपड़े के चावल के डिब्बे में पोटली के भीतर जीवन की सुबह का इंतजार करने लगा -- - - कभी तो सुबह आएगी --

कुछ महीना बाद उन बूढ़े हाथों ने मुझे उठाया और सियाराम ज्वैलर्स की दुकान में प्रवेश कर कर्णफूल बनाने का अनुरोध किया। एकबार फिर प्रसन्नता के हिंडोले (झूले ) में मैं झूलने लगा अरे वाह मेरेभी अच्छे दिन आएंगे - , सियाराम ने मुझे जाॅचा फिर उस बूढ़ी को फटकार लगायी - ' किसके घर से चोरी करके आयी है? झुर्रियो से भरे चेहरे ने लड़खड़ाती जिह्वा से बोला - ना ना ये तो मेरी नानी ने मरते समय मुझे दिया था गुडडन की शादी के लिए गड़वाने लाई थी, सत्य को उसने अपनी वाणी की करुणा से पूरी तरह ढॉप दिया था। सियाराम बोला इसकी बनवाई देनी होगी, बूढ़ी हड्डियाँ कसमसायी ' ऑखों की चमक बुझ सी गयी और फिर टूटे मन की किरचन को संभाला मुझे चुपचाप उस स्थान पर छिपा दिया, ' ।

लगभग ' डेढ़ माह बाद, मुझे किसी के जोरजोर से रोने की आवाज़ सुनाई दी, ' ( न न बूढ़ी को कुछ नही हुआ था। ) पता चला गांव में घनश्याम के खेत में लगी आग ने इस दीन परिवार के छोटे से खेत को जलाकर राख कर दिया था, चार दिन बाद, गुडडन की शादी तय थी, जिन्दगी के अमावस की काली रात में अब कोई चॉद उजाला नहीं कर पा रहा था '

दूसरे ही दिन उन थके हाथों ने मुझे पुनः उठाया और फिर मेरी पसंदीदा देहरी पर पहुंच कर बोली - इसे लेकर बाबू कुछ रुपए देदो तो गुडडन की शादी में कुछ इज्जत बच जाएगी। सियाराम ने कुछ रुपए देकर मुझे लिया और अलमारी में सुरक्षित

 रखदिया।

मैं एक ऑख से हँस रहा था ' दूसरी से अश्रु प्रवाहित हो रहे थे मैं दुःखी था उसे बूढ़ी औरत की बेबसी व लाचारी देखकर उसने दिलपर पत्थर रखकर मुझे सुनार को सौंपा था, मेरा मन बल्लिया उछल रहा था इसका कारण अब में जेवर बनूँगा हीरे के साथ जगमग करूँगा लोग मेरी प्रशंसा मे पुल बांधेगे आदि न था ' जीवन के उतार चढ़ाव की भट्टी मे तप कर मीठे पानी का पक्का घड़ा बन गया हूँ मुझे लोगों की प्यास बुझाना ही अपना धर्म लगने लगा है मेरा हिन्दुस्तानी मन खुश है कि वह किसी गरीब की इज्ज़त बचाने के काम आया।

जीवनके आरंभिक क्षणों में मैं, जिस ईश्वर को, भाग्य को बारबार उलाहना देरहा था उसे अपनी इस जीवनयात्रा केलिए सौ-सौ बार धन्यवाद देता हूँ अब मेरे अंदर किसी प्रकार की कोई ख्वाईश नहीं, मुझे इस दुनिया की भूल भलैया से निकलने का रास्ता मिल गया है मुझे ईश्वर सामने दिखायी दे रहे है, ' पर ' अफसोस रास्ता सामने है, मैं चल नहीं सकता शायद मेरी रुखसती का समय आगया है।


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